तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है

खिड़की से छनती धूप अब बिस्तर तक आ रही है
सिरहाने रखी चाय कब से धुआँ उठा रही है
तकिये से अब तक तेरे गजरे की खुशबू आ रही है
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है
शब्द अब खुद नहीं आते, बुलाने पड़ते है
गीत अब सूझते नहीं हैं, गाने पड़ते हैं
नींद आती नहीं तो ख़ाब भी बनाने पड़ते हैं
मेरी उदास शायरी भी तो यही बता रही है
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है
घर का कूलर भी ठंडक बस तेरे लिए करता है
अपने कमरे का बिस्तर मुझे रोज कहा करता है
वार्डरोब को मनाता हूँ तो आइना गिला करता है
ड्रेसिंग टेबल रह रह के तेरा अक्स दिखा रही है
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है
थक गया हूँ इन सामानों से ये कह कह के
पक गया हूँ इनके उलाहने सह सह के
सुनाई दे जाती है तेरी आवाज़ क्यों रह रह के
यूँ लगा तू गैलरी में मेरी नज़्म गा रही है
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है
वैसे तो सब कुछ है, कोई कमी नहीं है
पर रजाई में जाने क्यों पहले सी गर्मी नहीं है
तू नहीं है तो अब वैसी बेशर्मी भी नहीं है
चादर की सलवटें तेरा नाम लिखा रही है
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है
कवि – फिक्शन हिंदी (@fictionhindi)
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शानदार रचना