साहुन – भाग 3

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गतांक से आगे

साहुन: …पर बाबू ठाकुर के जीवन मे मेरे उस प्रेम का कोई स्थान नहीं था। परिवार, समाज और रुतबा सब उनके पास था। मेरे पास उनके सिवाय कोई नहीं। जब मुझे गाँव से निकाला गया था, तब डगरू को उनके पास छोड़कर जाना मेरी मज़बूरी थी। मुझे पता था कि ठाकुर का गुस्सा क्षणिक है और वह मुझे वापस ले आएंगे। मुझे तब प्रेम नहीं था पर वापस आने के बाद हर दृष्टि से वह मुझे भगवान लगे। वह भगवान जिसका मेरे जीवन में श्राप था। और राम कसम भैया मुझे ठकुराइन दिदिया से कोई बैर नहीं था। मुझे उनके घर छोड़कर जाने के विषय में कुछ नहीं पता। ठाकुर से मेरी कुछ बात हुई थी और उसके बाद मैने स्वयं को उनके जीवन से अलग कर लिया।

सुरेश ठाकुर: तुम्हारे आने की खबर ने गाँव-जवार में हलचल मचा दी थी। मुझे याद है वह दिन। पूरे गाँव के बीच पंच बैठे थे, साहू बिरादरी, बगल के गाँव के पंडित और गुनी ठाकुर के चारों भाई थे। बाबू भैया ने दहाड़ते हुए साहू को समर्थन दिया और कहा कि यह अपनी पत्नी को गाँव में लाएगा। वह वैसे ही रहेगी, जैसे पहले रहती थी। सब डरते थे। किसी ने बस इतना कहा कि साहू का अब बिरादरी से हुक्का पानी बन्द है। बाबू भैया को इस बात की परवाह ही कब थी। उन्हें सिर्फ तुम्हारी परवाह थी। ख़ैर, अब तुम जाओ। मुझे कई काम निपटाने हैं। हम बाद में तुम्हारे ज़मीन का मामला देखेंगे।

साहुन के वापस जाने के बाद माला आगे बात बढ़ाने की कोशिश करती है।

माला: जीजी को कब पता चला?

सुरेश ठाकुर: जब यह घटना हुई तब मैं छोटा था। मैं यह सब देखकर बहुत विचलित हुआ। दौड़ते हुए ठकुराइन भौजी के पास पहुँचा। मैंने चिल्लाते हुए उन्हें कहा कि भैया उसे वापस ला रहे हैं। उत्तर मिला: हाँ, जानती हूं। लाने दो। मैंने फिर कहा कि भाभी आप नहीं जानती कि वो आपका घर बर्बाद कर देगी। भौजी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा सुरेश भैया। ठाकुर मुझी से प्रेम करते हैं। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की पर वह नहीं मानी। उन्होंने कहा कि मैं चाचा बनने वाला हूँ, इसलिए वह कुछ महीनों के लिए अपने मायके जाएंगी। मैं हाथ पाँव पटकने लगा किन्तु भौजी का निर्णय अडिग था। उन्होंने मुझे कुछ और बातें कही जो मैं कभी नहीं भूल पाया।

“साहुन और मुझमें कई फ़र्क़ हैं। मुझे उससे नफरत नहीं है और ना ही मैं इस मामले में उससे कोई बात करूँगी। सबसे बड़ा फर्क हम दोनों की परवरिश में रहा। जब उसे खेत मे काम करना और पुरुषों के बराबर बोझा उठाना सिखाया गया होगा, तब मैं मान पर प्राण देने की सीख ले रही होंगी। रही बात ठाकुर की तो एक पति अपनी पत्नी और बच्चों से ही प्रेम करता है। बाहरी औरत चाहे कितनी भी आकर्षक हो और पत्नी कितनी भी जटिल, पति पत्नी को ही चुनता है। फ़िर मैंने तो ठाकुर से सदैव प्रेम किया है। यदि उनसे कहा जाए कि वह मुझे छोड़कर साहुन या अन्य किसी स्त्री को चुनें तो तुम्हे क्या लगता है कि वह ऐसा करेंगे?”

मुझे उस वक़्त तक नहीं पता था कि बाबू भैया किसे चुनेंगे। भौजी अपने मायके चली गयीं।

माला: जेठ जी ने उन्हें नहीं रोका?

सुरेश ठाकुर: रोका था पर वह नहीं रुकीं। भौजी के जाने पर गांव के सभी लोगों ने यही सोचा कि अब प्रेम कहानी शुरू होगी। साहू को भी इस बात की भनक थी। वह बहुत शराब पीने लगा था। एक दिन ख़बर आयी कि कच्ची दारु पीने से वह चल बसा। अब तो कोई दरार भी नहीं बची थी। भैया साहुन की बराबर मदद करते रहे पर भौजी के जाने का दुख उनके चेहरे पर दिखने लगा था। मुझे उनसे नफ़रत थी पर तरस भी आने लगा था।

माला: जेठ जी ने जीजी की बहन से शादी कैसे की?

सुरेश ठाकुर: धनन्जय के पैदा होते ही भौजी चल बसी थीं। बच्चा कौन पालता? उनके पिता जी ने बच्चे के साथ उनकी छोटी बहन को भेजा। कुछ दिन तक उन्होंने वो बच्चा और घर संभाला। फ़िर उन्हें लेने भैया के ससुर आये तो बाबू भैया ने उन्हें अकेले वापस जाने को कहा।

माला: साहुन ने ऐतराज नहीं किया?

सुरेश ठाकुर: वह थी कौन? एक लालची औरत, उसे भैया से मोह से अधिक लालच प्रिय था।

इधर साहुन खटिया पर पड़ी अतीत की बातें सोच रही होती है। ख़याल ना चाह कर भी वहीं पहुँच जाते हैं कि ठाकुर के साथ होने के सपने कैसे स्वतः साहू को उसके जीवन चित्र से अदृश्य कर देते थे। अतीत की साहुन मानो आँखों के समक्ष होकर कई बातें स्वीकार कर रही हो और स्वयं से कह रही हो कि ठाकुर ने घर, ज़मीन और दुकान सब कुछ व्यवस्थित कर दिया था। अब मैं उनके लिए पूरी तैयार थी। मैं जानती थी कि वो मुझे प्रेम करते है और चाहती थी कि वह अब मुझे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं पर ऐसा नहीं हुआ।

उन्होंने मुझे मेरे अतीत से जोड़कर देखा। मैं उनके लिए एक पल में ही अनजान बन गयी थी। वो कमरा भी अब मेरा प्रभाव छोड़ चुका था। मुझे ठाकुर मजबूर दिख रहे थे। पहली बार ऐसा लगा कि उन्होंने मुझे मन से नकार दिया। ठकुराइन दिदिया की मौत का ज़िम्मेदार वह मुझे कैसे मान सकते हैं। बच्चा जनने में कई बार औरतों की मौत हुई है। और अगर उड़ते उड़ते डगरू की बात ठकुराइन दिदिया को पता भी चल गई तो क्या हुआ। हमारे बारे में जानती तो वह थीं ही। घर वापस आकर साहू के चिल्लाने पर अगर मैंने उसे वह शराब दे भी दी तो इसका गुनहगार मैंने ठाकुर को तो नहीं मान लिया। मैं उनसे बैर भी क्यों रखती। उनके नहीं अपनाने से न मेरा जीवन समाप्त हुआ और ना ही जीवन की जरूरतें।

तभी डगरू की आवाज़ सुनकर अतीत की साहुन वाली तंद्रा टूटती है।

डगरू: अम्मा चाह पिहौ?

साहुन : नै, चिलम लाओ।

(समाप्त)

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