साहुन – भाग 1

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सुरेश: साहुन भउजी आज कहाँ बिजली गिराते हुए चली जा रही हो?

साहुन: साथ चलो, बताती हूँ।

सुरेश: बाबू ठाकुर वाले के हाथ बुलावा भेजोगी तब आऊंगा।

सुरेश की पत्नी: साहुन बूढा गयी हैं। क्या बेचारी की मरने की उम्र में उल्टा सीधा मज़ाक करते हो।

सुरेश: मज़ाक क्या तुम खुद ही पूछ लो, डगरू बाबू दद्दा वाला है। और इसके जैसे चरित्र वाली औरतों की उम्र बड़ी लंबी होती है। क्यो भउजी?

साहुन: हां, गांव घर मे मज़ाक के अलावा बाकी भी क्या है। वैसे आज अगर बाबू ठाकुर जिंदा होते तो आपकी यह मजाक करने की हिम्मत नहीं होती सुरेश ठाकुर। अच्छा जाते जाते एक और बात, आज आपका भतीजा डगरू खून की सजा काट कर वापस आ रहा है। यह कह कर साहुन मुस्कुराते हुए वहां से चली जाती हैं।

(कहानी अतीत में लगभग 45 साल पहले)

ठकुराइन: साहुन का कुछ पता चला?

साहू: कहाँ भउजी, अब ससुरी चाहे घर वापस आए या चाहे पटरी के नीचे आकर मर जाये, मुझे कुछ लेना देना नहीं है।

ठकुराइन: मुझे तो उसकी चाल चलन से लगता था कि एक दिन भाग ही जाएगी। तुम्हारे साथ नहीं निभने वाली थी।

साहू: बिरादरी वाले खार खाए बैठे हैं। जाने कब हुक्का पानी बन्द कर दें। यह बात जान गए है कि नीची जात की थी और हम झूठ बताकर ब्याह लाए थे। ससुरी भागी भी तो अपनी से भी नीच जात वाले के संग।

ठकुराइन: तुम्हारी बिरादरी के हिसाब से बढ़िया सुंदर थी, वरना तुम्हारा दिमाग ऐसे खराब नहीं होता। खैर, ये बातें छोड़ो। ठाकुर बाहर बैठे हैं, जाओ ये चाय दे आओ और वापस आते वक़्त बाहर वाले ताख पर से अपना कप उठा लाना।

साहू चाय लेकर बाबू ठाकुर के पास जाता है। तभी उसके चचेरे भाई की बेटी चिल्लाते हुए आती है और कहती है; ” दद्दू, चाची वापस आ गयी हैं।“ इतना सुनकर साहू सर पकड़ कर ठाकुर के पास ही जमीन पर बैठ जाता है। वह बिलखने लगता है और कुछ बड़बड़ाता है। उठता है और ठाकुर से कहता है; “भइया, आज ससुरी को ज़िंदा नहीं छोडूंगा”। और आगे बढ़ता ही है कि ठाकुर की गरजती हुई आवाज उसके कानों में पहुंचती है; ” तुम कुछ नही करोगे। चुपचाप उसे यहां लेकर आओ।”

साहू हाथ जोड़कर ठाकुर के सामने से चला जाता है। ठाकुर का दिमाग सन्न था। वह सोच रहे थे कि साहुन सामने आएगी तो क्या वह आपा खो देंगे। आगे उसके मन ने उससे साहुन की पैरवी की; “क्या तुम सच मे उसके चेहरे को देखकर अपना गुस्सा कायम रख सकोगे? तभी अहम ने जोर से मन को झाड़ा; ” किसी लायक नहीं है वह, और ठाकुर आज अगर साहू उसे मार भी दे तो तुम उसका हाथ नहीं पकड़ोगे। तुम यहाँ के ठाकुर हो, ऐसे कैसे किसी छोटी जात वाली के बारे में तुम्हारा मन पसीज सकता है। और वो भी उस खुदगर्ज औरत के लिए जो पति छोड़कर किसी गैर मर्द के साथ भाग गई थी। मन आगे जिरह करता है; “पर उसके मन मे कुछ तो था तुम्हारे लिए ठाकुर, उसके मंझले बेटे डगरु को जब भी लोग ‘ठाकुर का है’ बोलकर चिढ़ाते थे तो वह मुस्कुराती थी, यह कैसे भूल सकते हो।“

ठाकुर के विचार उसे परेशान कर ही रहे होते हैं कि साहुन के रोने की आवाज आती है। अहम और मन दोनों शांत हो जाते हैं। विलाप ध्वनि तेज़ होती जाती है जिससे पता चलता है कि वह बस सामने आने वाली ही है। ठाकुर की दिल की धड़कन इतनी धीमी हो जाती है, जैसे सांस आनी बंद हो रही हो। सर की सन्नाहट बरकरार होती है। शरीर लगभग शिथिल होता है। आँखे बेकाबू होकर बाहर निकलने को हो रही होती हैं कि सामने साहु बढ़ता हुआ दिखता है। उसने साहुन के बाल पकड़े हुए थे। उसी जोर से वह जमीन में घिसटती हुई साहुन को खींचता हुआ ला रहा था।

“छोड़ उसको साहू”; ठाकुर के मुंह से ये बेकाबू शब्द फूटते हैं।

ठाकुर आगे साहू से कहते हैं; “यह तमीज है तुम्हारी बात करने की, साले गंवार के गंवार ही रहोगे। भागो यहां से वरना जूता बाजार लगा दूंगा। जा अपनी भउजी को बुला कर ला।”

ठकुराइन आती हैं। ठाकुर उससे साहुन को अंदर ले जाने को कहते हैं।

थोड़ी देर बाद ठकुराइन वापस आती है और कहती हैं; “पानी वानी पिला दिया है, कसमें उठा रही है कि इस बार जो साहू उसे रख ले तो दुबारा नहीं भागेगी। बेचारी वहां भी बहुत मार खाई है। नाराज़ मैं भी थी पर हालत देख कर तरस आ रहा है।“

साहू: भउजी उसको देखकर तो हम भी बेचैन हुए पर इस भगोड़ी के चक्कर मे मेरा हुक्का पानी बंद हो जाएगा। भला कैसे इसको रख लूं।

ठाकुर: तुझे बस इसी बात की चिंता है? उससे भागने की वजह पूछी?

साहू: भैया आप क्या चाहते हैं, क्या पूछू। नीच थी ससुरी, भाग गई। कैसे आत्मा को मनाऊं।

ठाकुर: तुम साले बड़े पंडित के लौंडे हो। और सुन बे आत्मा वाले, मुझे उसके भागने की वजह जाननी है। चाहे तुम पता करो या तुम्हारी भउजी। तुझे दुबारा दुल्हिन लाने के पैसे मैं नहीं देने वाला।

ठकुराइन: ठाकुर आप एक बार बात करके देखिए ना। आपकी इज्जत में सब सच सच बोल देगी। वैसे भी अपने पति से ज़्यादा सम्मान आपका करती है।

यह सुनकर ठाकुर के मन मे तनिक संतोष होता है, चेहरे के भाव छिपा कर आगे वह कहते हैं; “अगर तुम दोनों के बस का नहीं है तो मैं बात करूंगा। बुलाकर लाओ उसे।“

साहुन कमरे के भीतर आती है। पलकें झुकाये बस रो रही होती है। उसकी बांह और चेहरे पर मार के निशान ठाकुर के मन को कचोट रहे हैं। ठाकुर पीठ कर खड़े हो जाते हैं।

ठकुराइन और साहू बाहर आंगन में बैठे विचार कर रहे हैं कि अंदर क्या बात हो रही होगी। साहू कहता है कि भैया बहुत गुस्सैल हैं, मेरी ज़िंदगी की चिंता में भले माफ कर दें। ठकुराइन कहती है कि ससुरी मेरा आधा काम बंटा लेती थी। ठाकुर के लिए कच्ची महुआ की दारू भी पका लेती थी। क्या टोना टटका करके ले गया वह हरामजादा। शकल देख कर तो तरस आ रहा है मुझे।

उधर कमरे में

ठाकुर: क्या पूछूं तुमसे ? क्या कमी थी यहां? खाना, कपड़ा बाकी समान क्या नहीं था? तुम्हें क्या चाहिए था? और भागी भी तो वापस क्यों आयी? और अब क्या उम्मीद? मेरे कहने से भी साहू तुम्हे अब नहीं अपनाएगा और पंच उसका हुक्का पानी बंद कर देंगे। और मैं उसे समझाऊं भी तो क्यों।

साहुन सिसकती हुई कहती है; “वो हमको बेच देता, इसलिए वापस भाग आये ठाकुर।

तो गयी क्यों उसके साथ?; ठाकुर ने पूछा।

साहुन: हम कुछ सोच नहीं पाए, बस चले गए।

ठाकुर: इतनी भोली तो नहीं लगती हो।

साहुन: तो पीठ कर क्यों खड़े है, मेरी तरफ देखकर बताइए कि भोली नहीं लगती हूँ तो कैसी लगती हूँ।

ठाकुर: भले कभी हमारी बात नहीं हुई है या मैंने प्रत्यक्ष रूप से जाहिर नहीं किया है पर साहुन तुम भी जानती हो कि तुमने किस प्रकार मेरा मन तोड़ा है। साहू माफ भी कर दे, मैं कैसे करूँ।

साहुन: साहू से मुझे माफी नही चाहिए। और आप चाहो तो मेरी जान ले लो।

ठाकुर: बहुत चालक हो। बड़ी खूबी से जानती हो कि जो ठाकुर तुम्हारे खींचते हुए बाल नहीं देख सकता, वह भला तुम्हारी देह से प्राण खींच सकता है। और तुम तो निष्ठुर हो। आज यहां आयी हो, कल किसी और के साथ भाग सकती हो।

साहुन: भागना पेशा नहीं है मेरा। 9 साल से निभा रही हूं ये शादी। और आपको क्या लगता है, आप जब मेरी ओर देखते थे तो मैं भी तो आपको पलट पलट कर देखा करती थी।

ठाकुर: वह तो शायद इसलिए कि मैं ठाकुर हूँ और तुम्हारा पति मेरे लिए काम करता है। कोई दूसरा ठाकुर होता तो उसको भी तुम ऐसे ही देखती।

साहुन: अगल बगल वाले कम कोशिश नहीं किए थे।

ठाकुर: तो क्यों नहीं रह गयी उनके पास।

साहुन: वो ठाकुर थे पर उनके माथे पर आप सी चमक और आंखों में आप सा प्रेम नहीं है।

“तुम मुझे कमज़ोर कर अपनी चाल चल रही हो। मैं ये नहीं होने दूंगा। तुरंत यहां से जाओ। चाहे साहू रखे तुम्हे या वो जिसके साथ तुम भागी थी”; ठाकुर ने बात खत्म की।

ठाकुर आगे चिल्ला कर साहू को पुकारते हैं।

अगले दिन पंचायत के समक्ष साहू कहता है कि वह साहुन को घर से निकाल रहा है। और बच्चे भी साहुन के साथ ही चले जाएंगे। शाम को मंझला बेटा डगरू जिसकी उम्र मात्र 6 बरस है, ठाकुर के पास आता है और जमीन पर बैठ जाता है।

ठाकुर बच्चे को देखकर उससे पूछते हैं; “तुम मां के साथ क्यों नहीं गया।“

बच्चा: मां ने कहा था कि आपके पास आकर रहूं।

ठाकुर: साहू ने तुझे मार दिया तो?

डगरू: मां ने कहा था कि आप मुझे बचा लोगे।

ठाकुर: और क्या कहा था मां ने?

डगरू: उसने कहा था कि जिस तरह उसके पास आपकी अंगूठी निशानी है, उसी तरह मैं उसकी निशानी बन आपके पास रहूँगा।

क्रमश: …

साहुन – भाग 2

साहुन – भाग 3

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