रुही – एक पहेली: भाग-37

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कुछ और जो रह गया था
मोहित की दास्ताँ के साथ कुछ और भी दास्ताँ थी जो अधूरी रह गयी थी। मोहित के एक्सीडेंट के बाद जब रौशन को मालूम पड़ा तो वो हॉस्पिटल आया था,रूही के साथ। रूही नहीं आना चाहती थी पर आना पड़ा था। वहीँ राधा से उसकी पहली मुलाकात हुई थी। वहीं उसने दीपाली और भानु में अपने लिए लिए बेपनाह नफरत देखी थी। जाते-जाते उसकी नज़र राधा पर गयी थी तो वो अपने सीने से लगायी हुई थी एक किताब। वो किताब नहीं थी वो डायरी थी, जो पहली गिफ्ट थी रूही की तरफ से मोहित को। साथ ही ये भी कहा था, तुम बोलते इतना अच्छा हो, लिखते क्यों नहीं?

“लिखूंगा रूही, एक दिन हमारी कहानी लिखूंगा। तेरे नाम लिखूंगा। सब तेरे लिए”

बीच-बीच में कुछ पढ़ कर सुनाता था मोहित कभी-कभी तो, रूही शरमा जाती थी। डायरी राधा के हाथ में देख कर समझ गयी थी रूही कि राधा को पता है मोहित की रूही के बारे में। नज़रें नहीं मिलाई उसके बाद रूही ने और चली गयी थी, फिर नहीं आयी थी हॉस्पिटल वो। एक दो बार रौशन कुछ पेपर्स लेकर आया था। बाद में मालूम हुआ कि रौशन ने शातिरपना दिखाना शुरू कर दिया था और मोहित के बिज़नेस को हथियाने की कोशिश की थी। दुबई ऑफिस से जब खबर आयी भानु को तो दूसरे दिन ही उसने रौशन को सारे बिजनेस से बाहर करने की तैयारी शुरू कर दी थी। एक महीने बाद रौशन फिर से अपनी उसी पुरानी ज़िन्दगी में लौट गया था। बावजूद इसके की मोहित ने बहुत कुछ रूही के नाम कर दिया था, वो मोहित को देखने भी नहीं आयी एक भी बार। राधा ने काफी बार फ़ोन किया तो एक बार रूही कुछ पलों के लिए मिली थी एक साल बाद। और बताया था कि वो अब रौशन के साथ नहीं रहती। दोनों अलग हो गए है। राधा को पता था कि रूही और रौशन की जाती ज़िन्दगी में बहुत दरारें थी पर रूही अलग हो जायेगी नहीं पता था।

मोहित के पंचमढ़ी से सबको छोड़ कर जाने के बाद वाली होली पर राधा को जाने क्या सूझी कि वो उसी पुणे के रिसोर्ट गयी जहाँ मोहित और रूही ने अपनी होली मनाई थी। क्या खींच के ले आया था वहाँ राधा को वो आजतक राधा नहीं जान पायी पर कुछ था जो उसे वहीं धकेल के ले गया था। ग्यारह बजे के आसपास पहुंची। घूमती रही, मोहित के लिखे हर एक लफ्ज़ को जोड़-जोड़ कर देखती रही। सब कुछ वैसा ही था जैसा लिखा था मोहित ने। तस्वीर उतार कर रख दी थी मोहित ने। लगा ही नहीं कि पहली बार आयी है। गाड़ी लेकर ऊपर वीआइपी कॉटजेस की तरफ गयी और पार्क करके बाहर निकली तो एक कॉटेज के सामने उसी पहाड़ी की तरफ ताकती हुई रूही बैठी थी।

रूही क्या कर रही है यहाँ? पास आयी तो रूही ने पहचान लिया,
“अरे राधा तू?” फीकी सी मुस्कराहट के साथ पूछा रूही ने। दोनों ही क्या बोलते कि क्यों आये थे। उसके लिए जो था नहीं यहाँ, वहाँ, कहीं भी नहीं, किसी के पास भी। राधा को अब समझ आया कि उसे क्या खींच रहा था। वहीं बैठ गयी रूही के पास। आज वक़्त था, आज वो बिना जाने, जाने वाले नहीं थी कि उसने मोहित के साथ ऐसा क्यों किया था।
“सुनो रूही, मुझे तुमसे….”
बात बीच में काट दी रूही ने, “क्या करोगी जानकार राधा कि मैं ने क्या किया और क्या नहीं”

“मैं बस जानना चाहती हूँ, रूही। पता नहीं दिल नहीं मानता कि जो हुआ वही हुआ था या सच कुछ और था”
रूही की आँखें डबडबा गयीं। “जाने दे राधा, अब रहा क्या?”
“नहीं रूही, जानना है मुझे, वरना मुझे चैन नहीं आयेगा। मेरा दिल नहीं मानता है। मैंने तुम्हे मोहित की आँखों से देखा है और उसकी आँखें झूठ नहीं बोलती”
रूही मुसकुराई, पास आयी राधा के और गले लगा लिया, “आजा अंदर चलते है”
राधा अंदर गयी तो वही सब था जो उसका देखा हुआ था मोहित की नज़र से, वही कमरा, वही सब। बस टेबल पर एक केक पड़ा था।
“हैप्पी होली, हैप्पी बर्थडे स्वीटी”
राधा चौंक गयी।
रूही मुस्कुराई, “आज मेरे स्वीटी का जन्मदिन है वही मनाने आयी थी”
रूही ने गुलाल लिया और राधा के गाल पर लगा दिया। राधा ने रूही को कस के भींच कर अपने गले से लगा लिया।
“तुम दोनों ही पागल थे रूही, पर तुम अभी भी हो”
“तुम कम हो क्या राधा?” रूही बालकनी में जाकर खड़ी हो गयी।

“जानती हो न भाई को?”
“हाँ, राधा बुदबुदाई, ”मोहित”
“हाँ मोहित, राधा। नाम ही सिर्फ एक होता तो कुछ बात थी, यहाँ तो मेरी सारी पुरानी ज़िन्दगी लौट-लौट के आ रही थी।
किसी भी मोहित के पास रूही नहीं थी और मेरे पास दो-दो मोहित और फिर एक रोशन। मैं बंट के रह गयी राधा। मैं सबको अपना बनाना चाहती थी पर मैं किसी की ना हो पायी। मुझे सब चाहिए था, अपना घर परिवार, मेरा प्यार और एक वो जिसके साथ मैं ज़िंदा रहती थी। मुझे रोशन भी चाहिए था जो मेरे बच्चों का बाप था, मुझे वो मोहित भी चाहिए थे जिसने मुझे प्यार करना सिखाया और वो मोहित भी जो मेरा दीवाना था। मैं इतना आगे निकल गयी कि फिर हिम्मत नहीं हुई सच बोलने की किसी से। बस वक़्त का इंतज़ार करती रही पर वक़्त नहीं आया उसके पहले स्वीटी आ गया था”

“मैं बस, मैं नहीं समझा पाऊँगी राधा। मैं बस ऐसी ही हूँ। तुम मुझे स्वार्थी कह सकती हो पर मैं जीना चाहती थी। क्या गलती थी मेरी? मैं सब को सब तो दे रही थी। किस को कमी होने दे मैंने राधा? मैंने मोहित को वो सब दिया जो उसकी ज़िन्दगी में नहीं था, मैंने उसके लिए अपने पति को धोखा दिया। अपने परिवार को अँधेरे में रखा पर मोहित को सब दिया। मैंने स्वीटी को वो सब दिया जो उसकी ज़िन्दगी में नहीं था,मैंने उसके लिए अपने प्यार को धोखा दिया। अपने परिवार को अँधेरे में रखा पर स्वीटी को सब दिया”

राधा सुन रही थी। क्या थी ये रूही। कितनी आसानी से अपनी बात कह डाली।
“राधा, मैंने क्या ग़लत किया?” कहते कहते अब रूही राधा से आँखें नहीं मिला पा रही थी।

नहीं मिला सकते आप आँख दूसरे से, दूसरे से क्या, आप अपने आप से नहीं मिला सकते क्यूंकि जो सच्चाई आप जानते है वो सिर्फ आप ही जानते है। दुनिया को झुठला सकते हैं आप, अपने को नहीं। रूही, राधा से झूठ बोल सकती थी, रूही से नहीं। राधा को पता था कि रूही के पास बोलने को कुछ नहीं था,

“उस दिन स्वीटी ने मुझे मौका ही नहीं दिया कुछ बोलने का, वरना मैं मना लेती उसे, मुझे पता था कि कैसे मनाना है उसे”

इस रूही से प्यार करता था मोहित?
राधा को अब सोच कर ही घिन आ रही थी।

“मैं अगर उस दिन स्वीटी को बताती कि भाई मेरी मजबूरी है तो वो मान जाता पर उस बेवक़ूफ़ ने मौका ही नहीं दिया, वो भाई को स्वीकार कर चुका था राधा। लगा था बाद में मना लूँगी। बहुत यकीन थ अपने प्यार पर। पूरा यकीन कि मेरा स्वीटी मुझसे दूर नहीं जा पायगा पर उस दिन चला गया। दिन बाद पता चला कि उसका बाहर निकलते ही एक्सीडेंट हुआ था। ग़लती मेरी सिर्फ इतनी थी कि झूठ बोला था मैंने उस से। छुपाया था अपने स्वीटी से। वो भी इसलिए कि मैं नहीं चाहती थी कि मेरी स्वीटी को दर्द हो।“

राधा सन्नाटा खाये सुन रही थी। मोहित ने जो समझा था जाना था इस रूही को वो शायद कोई और ही रही होगी
ये वो रूही नहीं थी। ये अगर पहेली थी तो इसका ना सुलझना ही अच्छा हुआ मोहित के लिए।
रूही फिर आगे बोली, “मैं बस आज निकल रही हूँ यहाँ से, आज आखिरी दिन था पुणे में, आज स्वीटी के जन्म दिन के लिए रुकी थी। बच्चे हॉस्टल में है। रौशन ने दूसरी शादी कर ली थी, डाइवोर्स के छः महीने के बाद ही। मोहित मेरे लिए इतना छोड़ कर गया है कि शायद मुझे और मेरे बच्चों को कभी कोई कमी ही महसूस नहीं होगी। जाते जाते भी अपना फ़र्ज़ निभा गया था मोहित”

रूही बोले जा रही थी,
“घर” वैसे ही है। हिम्मत नहीं हुई जाने की। एक केयर टेकर रख दिया है, हफ्ते में एक बार जाकर सफाई कर आता है।
मैं कसौली जा रही हूँ। बच्चों का एक बोर्डिंग है वहीं वार्डन की जॉब मिली है, बस वक़्त काटना है। स्वीटी को पहाड़ों से नदियों से बहुत प्यार था, तो बस उन्ही पहाड़ों में रहना चाहती हूँ। थमी रूही,
“कैसा है तेरा मोहित अब राधा?” रूही की रुकी-रुकी सी आवाज़ निकली।

अब रूही की आंख्ने, उसकी आवाज़ कुछ और ही बयान कर रही थी, पहेली फिर गुत्तम गुत्था हो रही थी।

क्या जवाब देती राधा। बताया उसने वो पता नहीं कहाँ गया है। सबसे दूर कुछ दिन और शायद तुम्हे ही तलाश करेगा। राधा की आवाज़ में घबराहट थी।
रूही मुस्कुराई,
“मैं अब कभी नहीं मिलूंगी उसे और तुझे कसम है तेरे मोहित की जो कभी बताया कि हमारी आज कोई बात भी हुई थी या तू मेरे से उसके जाने के बाद मिली थी। मेरा जाना उसके जीने के लिए बहुत ज़रूरी था। ये तुम नहीं समझोगी”

शाम होने को थी। रूही ने काटेज बंद की, केक उठाया और मुस्कुरा कर राधा को दे दिया।
“ये अब सब तेरा है राधा। शायद मेरे जाने से पहले ऊपर वाले ने आज तुझे मिलाना लिखा हुआ था”
रूही ने कार स्टार्ट की और फिर बाहर निकल कर आयी,
“सुन राधा, इधर आ” राधा पास आयी।
रूही ने राधा का हाथ आने सर पर रखा और कहा,
“तू जानती है न कि तेरा मोहित इस रूही के लिए मरता था और मरता है भी। तुझे कसम है इस रूही की किअपने मोहित का इंतज़ार करना। वो आयेगा, रूही को विदा करके। वो आयेगा ज़रूर, मेरी मोहब्बत से ज़्यादा उसकी नफरत में ताकत है।
वो आयेगा राधा, बस सब्र रखना। “अच्छे लोगों का बुरा नहीं होता”, ऐसा मेरी स्वीटी कहता था हर बात पर। मुझे आज के बाद मिलने की कोशिश नहीं करना। तुझे देख कर आज बहुत तसल्ली हुई है। अब मेरा स्वीटी ठीक हाथों में है”

राधा आँखें फाड़े सुन रही थी इस पहेली को।

“राधा, मुझे पता था कि मैं आग से खेल रही हूँ। जल जाउंगी एक दिन ये भी पता था पर उस तपिश की आदत पड़ गयी थी। बर्बाद हो जाउंगी ये भी पता था, पर स्वीटी को नहीं छोड़ पा रही थी ना मोहित को और ना ही रोशन को” रूही मुस्कुराई।

“पता है मैं बुरी नहीं बहुत बुरी हूँ। पर क्या करूँ राधा, ये ही हूँ मैं, प्यासी सी नदी। बस मेरे स्वीटी का ध्यान रखना, राधा”
रूही मुड़ी, कार स्टार्ट की और बिना एक बार भी पीछे देखे हुए आगे बढ़ गयी।

पहेली अपना आखिरी छोर छोड़ के चली गयी थी। राधा केक हाथ में लिए उस काटेज के बाहर खड़ी थी।

रूही के अलफ़ाज़, रूही की आँखें ,रूही के आँसू, रूही का गले लगाना, सब अलग दास्ताँ कह रहे थे। रूही कहना कुछ और चाह रही थी, कह कुछ और रही थी या दिखाना कुछ और चाह रही थी और दिख कुछ और रहा था। राधा जिस पहेली को समझने का दावा करने लगी थी, आज उस से बड़ी पहेली अपने दिल और दिमाग में लेकर जा रही थी। पहाड़ी पर से मंदिर से घंटी की आवाज़ सुनाई दी।
भगवान भी मोहर लगा चुका था अब राधा की किस्मत पर, रूही की किस्मत पर और मोहित की किस्मत पर।

अब ऊपर वाले को तय करना था कि अच्छा कौन है और किसका बुरा नहीं होने देना है।
आज तीनों अच्छे थे।
रूही,
मोहित,
और राधा भी।

अब ऊपर वाले को इन तीनों में से किन्ही दो का अच्छा करना था।

इस बार खिलौना ऊपर वाले को मात देने को तैयार बैठा था।

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

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