रुही – एक पहेली: भाग-36

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सुबह सब उठे तो मोहित बाहर बैठा सब का इंतज़ार कर रहा था।
कॉफ़ी पीते-पीते मोहित ने कहा, “नहा धो लो सब फिर मंदिर चलते हैं”
ये काफी अचानक सा था।
“कोई ख़ास बात मोहित? भानु ने कॉफ़ी का सिप लेते हुए कहा?”
“हाँ, कल कुछ बात अधूरी रह गयी थी। उसको पूरा करना है। शबाना ने कुछ पूछा था, माँगा था मुझसे”
कल रात की बात पर फिर माहौल थोड़ा सा गंभीर हो गया था। कितने ही रिश्ते थे जो उलझे पड़े थे और उन सब का एक एक करके सुलझना ज़रूरी था। अभी तो रूही थी, शबाना थी, राधा थी और थी मोहित की ज़िन्दगी आगे की। वो भी पहाड़ जैसी।
“दो गाड़ियों में चलेंगे”, मोहित का फरमान आया, “मैं और भानु एक गाड़ी में, बाकी लोग दूसरी में”
रास्ते में मोहित और भानु की ज़्यादा बातचीत नहीं हुई और यही अमूमन तौर पर होता था। शाम की आरती के वक़्त तक वो लोग पहाड़ी पर महादेव के मंदिर पहुँच चुके थे। सब सस्पेंस के मारे मरे जा रहे थे। राधा की जान सबसे ज़्यादा सूखी हुई थी। आरती के बाद, मंदिर के गलियारे में सब प्रसाद खा रहे थे।

“मैंने कल तुम्हारी बात सुनी शबाना” मोहित ने शुरु की बात, “तुम माफ़ी माँगने आओगी ये तो कभी सोचा ही नहीं था, ये सब मेरे लिए बहुत दूर की बात थी। तुम्हारा आना ही काफी था मेरे लिए और तुम को दिल में मलाल रखने की ज़रुरत नहीं। तुम्हे ऊपर वाला माफ़ी दे चुका है वरना तुम कल रात मेरे सामने ही नहीं होती”

रही बात राधा को अपनाने की, मोहित रुका, राधा की साँसे थमी फिर, “मैं रूही का ज़िन्दगी भर रहूँगा वो चाहे मुझे मिले न मिले”
मोहित दो पल के लिए रुका, राधा की ओर देखा,

“मेरा ऐसा हमेशा से मानना था, पर पिछले कुछ वक़्त में ज़िन्दगी ने बहुत करवटे बदली हैं। बहुत कुछ उथल पुथल हुआ है।
और कल रात मैं रूही को विदा कर चुका हूँ। पर जितना मैं अपने को जानता हूँ और ऊपर वाले को, मैं अभी कोई वादा नहीं कर सकता। मैंने रूही को बेपनाह मोहबत की है। मैंने उसे न पाकर भी पा लिया था। वो साथ न रहकर भी साथ रहती थी।
इतनी जल्दी से मैं वो तिलिस्म तोड़ नहीं पाउँगा। पर मैं वादा करता हूँ राधा से, अगर कभी ऊपर वाले ने मौका दिया तो राधा के साथ अपनी बची खुशी ज़िन्दगी बिताऊंगा। पर राधा, वो राधा की तरफ मुड़ा और हाथ पकड़ कर बोला, जीवन साथी बनने से पहले एक अच्छा सा दोस्त बनूँगा। अगर आज मैंने तुमसे अपनाने का कोई वादा किया तो ये एहसान उतारने वाली बात होगी जो तुमने मेरे ऊपर किये हैं। तुम्हारे किये को एहसान कह कर उनकी तौहीन नहीं करना चाहता मैं”

साँस ली मोहित ने,
“मुझे वक़्त चाहिए अपने लिए, अपने वजूद से रूही को मिटाने के लिए और अगर ऐसा नहीं किया तो मेरा और राधा का रिश्ता बेमानी होगा। मैं आज राधा से प्यार करता हूँ या नहीं मुझे नहीं पता, मैं तीन साल से राधा के साथ था चैबीसों घंटे का साथ था और समझ सकता हूँ राधा के दिल को। कभी-कभी राधा बोलते-बोलते रूही भी निकल जाता होगा, मुझे तो पता भी नहीं चला होगा पर राधा पर क्या गुज़री होगी, ये समझ सकता हूँ। बहुत तकलीफ होगी रूही को मिटाने में पर सच यही है कि मैं कोशिश करूँगा। तब तक राधा ने अगर मेरा इंतज़ार किया तो मैं लौट के आऊंगा लेकिन अगर मैंने आज झूठ बोला तो ज़िन्दगी नरक हो जायेगी एक बार फिर किसी की”

“सुनो राधा, तुम्हारे प्यार ने ही मुझे मजबूर किया है की मैं ये सब वादा कर पा रहा हूँ तुमसे। एक बात का यकीन रखना तुम्हे ज़िन्दगी भर पछतावा नहीं हीने दूंगा की तूने मुझे प्यार किया था। मेरा क्या है….बोलते बोलते चुप हो गया था। उम्मीद है मेरी इस ईमानदारी को तुम लोग समझोगे”
सब चुप थे, पता सबको था की मोहित से रूही का दूर जाना शायद कभी न हो पर मोहित के मुँह से ये सुन लेना ही एक उम्मीद जगा गया था राधा को। पहाड़ी से नीचे पहुंचे तो मोहित बोला, “चल भानु छोड़ के आ मुझे”
भानु कुछ नहीं बोला, दीपाली कुछ बोलने को हुई तो भानु ने चुप करा दिया।
“बाद में बताता हूँ”
शबाना की हिम्मत ही नहीं थी पूछने की। फिर मोहित शबाना की तरफ मुड़ा, मुस्कुराया, “शब्बो तुम तुम ही हो। दूजा कोई नहीं। तुम्हे तो पता है कि मोहित अपने रिश्ते तोड़ता नहीं। तुम बहुत आगे निकल चुकी हो। तुम्हारा आना ये बता रहा है कि अब रिश्ते नाते तुम्हारे लिए सब बेमानी है। तुम्हारा रास्ता अब कुछ और ही है। तुम्हारे चेहरे पर सुकून दिख रहा है जो मुझे पहले कभी नहीं दिखा। तुमने प्यार तो खो दिया मोहित का, पर एक दोस्त पा लिया है आज। अपना ध्यान रखना। कभी लगे कि मेरी अब ज़रुरत है ज़िन्दगी में तो ढूंढ लेना मुझे कहीं। मिल ही जाऊंगा तुम्हे तो”

राधा पास आयी और बोली, “कहाँ जा रहे हैं आप?, कब आयेंगे?”
“फिलहाल मुन्नार जा रहा हूँ, कुछ दिन वहीं कहीं रहूँगा फिर कहाँ जाऊंगा पता नहीं”
“मुझे कॉल करेंगे ना आप” राधा की आवाज़ डूबने लगी थी।
मोहित का दिल भर आया, पक्का किया और बोला,
“अगर वापिस बुलाना है तो जाने दे अभी मुझे अकेले।भगवान तेरे साथ है राधा, तेरा बुरा नहीं होगा। भरोसा रख मेरा, ”ऊपर वाला अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं करता”इतना बुरा भी नहीं हूँ कि तू भी छोड़ कर चली जाए”

इस से पहले कि आँसू आते मोहित के, मुड़ा, दीपाली के गले लगा, शबाना के पास आया। उसके सर पर हाथ फेरा, दोनों हाथों में उसकी हथेली ली। मंदिर के दहलीज पर सर टिकाया और गाड़ी में बैठ गया।

पीछे नहीं मुड़ा फिर वो। भानु की गाड़ी पहाड़ों की पगडंडियों से धूल उड़ाती हुई जा रही थी। मंदिर के घंटे बज उठे ।
राधा मुड़ी, हाथ जोड़े और बोली, “चलो जीजी, फिर करती हूँ इंतज़ार”

राधा ने तय कर लिया था कि वो इंतज़ार करेगी। मोहित के आने का और फिर उसके बाद मोहित जो कहे सो कहे।
पर वो यहीं पंचमढ़ी में रहकर मोहित का इंतज़ार करने वाली थी। मोहित की यादें उसके लिए बहुत थी। पिछले कई साल तो वो मोहित को बिना हिले डुले देखते आयी थी और अब तो ऊपर वाले ने उसको सामने लाके खड़ा कर दिया था। आज उसने मोहित के मुँह से अपने लिए एक वादा पाया था। बहुत था राधा के लिए अपनी ज़िन्दगी बसर करने के लिए……

वो गांव के बच्चे जो रोज़ उसके पास आ जाते थे, अब उनको अपना परिवार बनाएगी, उनको लिखायेगी, पढ़ाएगी कुछ काबिल इंसान बनाएगी। उसने मोहित की एक बात गाँठ बाँध ली थी आज और बस अब उसी के सहारे ज़िन्दगी काटने वाली थी।

“ऊपर वाला अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं करता”

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

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