रुही – एक पहेली: भाग-35
“तुम तो नहीं आने वाले थे”, दीपाली गुस्से में बोली
“तुम्हे अकेला कैसा छोड़ देता डार्लिंग” बैग रामसिंह ने उठाया और भानु आकर मोहित के गले लगा और बाजू में कुर्सी खींच कर बैठ गया। महफ़िल पूरी हो चुकी थी।
“हाँ भाई, दारू?” राधा उठी और अंदर निकल गयी। रामसिंह को कुछ कह सुन कर बाहर आयी। टेबल पर एक स्कॉच और दो वाइन की बॉटल्स सजी हुई थी। रामसिंह अंदर से बर्फ और गिलास ले कर आया और साथ में कुछ काजू और नमकीन।
“अबे, ये सूखा सड़ा खिलवाओगी राधा?”
“मैंने बोल दिया है, ज़रा रुकिए तो”
“आ गये नवाब साहब” दीपाली का कमेंट आया।
आठ बज रहा होगा शायद रात का। एक-एक दौर हो चुका था, दीपाली ने राधा को इशारा किया लेने का तो राधा ने मना कर दिया आँखों आँखों में। शबाना के आने के बाद से राधा कुछ अलग सा मह्सुस कर रही थी। वो तो अच्छा हुआ जीजी आ गई साथ में वरना उस से तो शबाना से बात भी नहीं हो पाती। कहाँ से शुरू हो बात कुछ हो नहीं पा रहा था। एक दबी सी ख़ामोशी सी छायी हुई थी। बातें कुछ हो रही थी पर होना कुछ और चाहती थी। दिल कुछ और ज़ुबान कुछ कह रही थी।
“बहुत बुरा किया मैंने तुम्हारे साथ मोहित” ये शबाना थी, “बहुत बुरा किया, समझने में बहुत बड़ी भूल कर दी मैंने”
आवाज़ भरभरा रही थी।
“मैं प्यार के मायने ही भूल गयी थी। सिर्फ मैं, मेरा प्यार और मेरी चाहते ही दिखती थी मोहित। तुम क्यों नहीं दिखे मुझे?
ज़िन्दगी तबाह कर दी मैंने कई सारी। हासिल क्या हुआ?”
रोने लगी थी शबाना। दीपाली पास आयी,
“संभालो अपने को शबाना”
“नहीं दीपाली, आज बोल लेने दे, वैसे ही बड़ी देर कर दी मैंने कहने मैं”
“तुमको मैं बांध कर रखना चाहती रही। तुम तो थे ही मेरे फिर ये इतनी बड़ी ग़लती कैसे कर गई मैं? जिन बातों पर हज़ार बार न्योछावर होती थी वहीं बातें क्यों तुम्हारे गुनाह लगने लगे थे मुझे और तुमने कभी रोक क्यों नहीं मोहित? मैं गलतियाँ करती गयी और तुम उनपर सब्र करते रहे। क्यों मोहित? क्यों नहीं मेरा हाथ पकड़ कर सामने बैठ कर समझाया मुझे? मैं तो बेवकूफी करे जा रही थी, तुम तो समझदार थे न? क्यों, मोहित क्यों नहीं रोका मुझे”
मोहित चुप था, क्या बोलता। आज इत्ते बरस बाद वो क्या पुरानी बातें याद दिलाता?
“मैं कैसे भूल गयी तुम्हारा वो हर बात पर कहना कि, चलो कोई बात नहीं, मैं मैंनेज कर लूंगा। तुम बस मैनेज करते रहे मोहित और मैं सर पर बैठती चली गयी। आज अफ़सोस नहीं कर रही मैं, अफ़सोस तो तीन साल पहले ही हो चुका था। गलती भी मान ली थी, ज़िन्दगी दोबारा जीना चाहती थी। अपने मोहित को फिर से पाना चाहती थी। उस मोहित को जो सबका था पर बस शबाना का नहीं। उस शबाना का नहीं जिसके लिए वो सब को छोड़ आया था एक ज़माने में। मुझे पता है मेरी ग़लतियाँ माफ़ी माँगने लायक नहीं पर मैं माँगना चाहती हूँ। उस रात भी जब मैंने पार्टी रखी थी, इसीलिए ही रखी थी। तुम्हारी शबाना, सबके सामने माफ़ी माँगकर नयी ज़िन्दगी शुरू करना चाहती थी तुम्हारे साथ। पर जब तक ऊपर वाला मुझे सज़ा देने के लिए तैयार हो गया था। तुम चले गए थे, तुम नहीं आये उस पार्टी में। और फिर बस एक फ़ोन आया था भानु का कि तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया है”
सब शांत होकर सुने जा रहे थे। दीपाली और भानु ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा कि शबाना माफ़ी भी मांगेगी। राधा एक कोने में चुप खड़ी हुई थी। दिल डूब सा जा रहा था उसका। रूही गयी और अब शबाना आ गयी।
आँखे भर आयी फिर उसकी और चेहरे पर मुस्कराहट तैर गयी।
“मैं शायद मोहित ही हूँ” बुदबुदाई वो, जिसे कुछ हासिल नहीं हुआ कभी। सब मिला पर कुछ हासिल न हुआ।
शबाना फिर बोली,
“मुझे समझ आ गया था उसी रात कि अब तुम जा चुके हो। जितना तुम्हे जानती थी कि तुम जाने में बहुत वक़्त लगाते हो पर जब एक बार चले जाते हो तो लौट कर कभी नहीं आते। उस रात मैं पहली बार हारी थी मोहित। और तुम्हे पता है कि मुझे हराने वाला कौन था? मैं खुद, मेरा प्यार, मेरी ज़िद। तुम तो शिकायत भी करना बंद कर चुके थे। मैंने ऊपर वाले से मिन्नतें मांगी थी कि मुझे एक मौका दे दे माफ़ी माँगने का पर तुमने वो मौका भी छीन लिया था उस रात।
जब खबर आयी तुम्हारे एक्सीडेंट कि तो समझ आया की ऊपर वाला तुम पर मेंहरबान है मेरे पर नहीं। मुझे ज़िन्दगी भर जलने के लिए छोड़ कर जाने वाले थे तुम मोहित। ऊपर वाले से चीख-चीख कर पूछा कि इतनी बड़ी सज़ा क्यों मुझे?
माफ़ी भी नहीं माँग पायी थी मैं और फिर जब पिछले हफ्ते भानु का फ़ोन आया की तुम होश में आ गए हो तो बस…
शायद मैं फिर ज़िंदा हो रही हूँ मोहित, मुझे जीना है फिर से”
राधा की आँख से एक कतरा बह गया। मोहित ने अभी तक कुछ भी नहीं कहा था।
“मुझे माफ़ करोगे मोहित? शबाना बोली।
“वो तो मैं कब का कर चुका शबाना”
“ऐसे नहीं मोहित कड़वाहट के साथ नहीं”
“मैं तुम्हे जानती हूँ मोहित और जितना मैं जानती हूँ उतना ना तो तुम्हारी रूही कभी जान पायी और ना राधा”
शबाना का चेहरा शांत था लेकिन अब सब के चौंकने की बारी थी। मोहित संभल कर बैठ गया। राधा ने दीवार कस कर थामी। भानु और दीपाली चुप थे।
“मुझे माफ़ करोगे मोहित?
मोहित उठा, पास आया शबाना के, राधा का दिल हलक को आया। हाथ पकड़ा शबाना का और मुस्कुरा कर कहा,
“मेरे दिल में अब किसी के लिए कोई कड़वाहट नहीं। सच कह रहा हूँ। तुम गलत नहीं थी, हमारा वक़्त गलत था। इतना ही साथ था हमारा शबाना”
“थैंक यू मोहित, थैंक यू सो मच, तुम्हे पता नहीं तुमने आज क्या दिया है मुझे। तुम तो हमेशा से देते ही आये हो मुझे, वो भी बिन मांगे और आज मैं तुम्हे कुछ देने आयी हूँ और वो भी बिन मांगे। मैंने जान लिया पिछले खोये हुए बरसों में कि प्यार होता क्या है। प्यार तो वो था जो तुम करते थे, मैं तो बस तुम्हे पाने की कोशिश में लगी रही। वो पाना नहीं होता है मोहित वो तो बस खोना होता है। प्यार तो तुमने किया था। बस देते रहे लेकिन मुझे ही नहीं दिखा। चलो जाने दो। तुमने मुझे माफ़ किया, शायद अब ऊपर वाला भी मुझे मेरे गुनाहों कि माफ़ी दे दे। मैं आयी तो हूँ तुम्हे कुछ देने पर वादा तुम्हे करना पड़ेगा कि मना नहीं करोगे”
माहौल अलग सा ही था। दीपाली कब से शांत बैठी थी। पहली बार हुआ था कि भानु ने शबाना को बीच में नहीं टोका था।
राधा एक कोने में अपनी ज़िन्दगी को हाथ से जाते हुए देख रही थी।
शबाना ने चुप्पी तोड़ी फिर से अपनी,
“तुम राधा को अपना लो मोहित” मोहित कुर्सी से गिरते गिरते बचा।
राधा को खड़े-खड़े चक्कर आ गया। भानु दीपाली अभी भी अपना गिलास थामें धीरे-धीरे चुस्की लिए जा रहे थे। कोई असर नहीं था उनपर। शायद शबाना और दीपाली की बात पहले ही हो चुकी थी।
“तुम राधा का हाथ थाम लो मोहित। इस से अच्छा जीवनसाथी तुम्हे कोई नहीं मिलेगा, बहुत प्यार करती है, निश्चल भाव से।
इसे तुमसे कुछ भी पाने की कोई उम्मीद नहीं थी जब तुम अस्पताल में थे, इसने सिर्फ तुम्हारी आत्मा से प्यार किया है। मैंने अपनी आँखों से देखा है, सुना है और महसूस किया है इसकी आँखों में। ये दीवानी है मोहित तुम्हारी। तुम्हारा अक्स है ये मोहित और अपने अक्स को अपने से दूर नहीं रखते। ना नहीं कहना मोहित, बस यही माँगने और यही देने आयी हूँ। तुमने आज तक मेरी कोई बात नहीं टाली बस ये आखिरी बात और मोहित”
जब शबाना रुकी तो हाँफ रही थी। मोहित शबाना को ताके जा रहा था, उसने मुड़ कर देखा पीछे राधा वहीं दीवार से टिकी हुई थी, आँखों से गंगा जमना बहती हुई। ये क्या नया मोड़ आ गया था ज़िन्दगी का अब। ये भी लिखा हुआ था ऊपर वाले ने???
“भानु, तुम्हे कुछ कहना है?” मोहित ने पूछा।
भानु ने गिलास रखा, दीपाली की और देखा और कहा,
“मान जाओ शबाना की बात अगर तुमको लगता है तो, इस बार मैं तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूँ”
मोहित थोड़ी देर शांत रहा।
“हम कल सुबह बात करें इस बात पर, मोहित ने बात ख़त्म कर दी वहीं पर।
राधा सीधे मंदिर के अंदर भाग कर गयी, दरवाजा बंद किया और फफक फफक कर रो पड़ी।
ख़ुशी या डर?? ये तो उसे भी नहीं पता था कि वो खुश हो सकती है या नहीं? पर दो दिन से जैसा मोहित ने किया था, वो कुछ भी फैसला ले सकता था। उस दिमागी हालात में उम्मीद यही थी कि वो वही फैसला लेता जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। बस इस बात से ही राधा ने उम्मीद लगा रखी थी। बाहर महफ़िल जमी रही। इतना भारी माहौल था, हल्का करने के लिए भानु ने कुछ बिज़नेस की बातें छेड़ दी। हँसी भी हुई, कुछ मज़ाक भी। सब ठीक हो रहा था, जैसे सब अच्छा होने वाला था। दीपाली शबाना के बाजू में आकर बैठ गई, कुछ खुसुर पुसुर चलती रही। थोड़ी देर बाद शबाना उठ कर राधा के कमरे में पहुंची। राधा की लाल आँखें उसकी पूरी दास्ताँ सुना रही थी। शबाना ने राधा का हाथ पकड़ा और खिड़की के नज़दीक ले आयी। बाहर बादल छाये हुए थे। ऊपर इशारा किया शबाना ने और बोली,
“कोई बाँध पाया है बादलों को राधा आजतक?” राधा ने कोई जवाब नहीं दिया।
“रोक कर रख पाया है इनको कोई, कोई भी इनकी मंज़िल तय कर पाया है आज तक राधा?”
राधा ने सर उठाया और समझने को कोशिश की ज़रा।
“मोहित बादल है राधा, रुकेगा नहीं, रोकोगी तो खो दोगी। मैं गलती कर चुकी हूँ, खो दिया उसे। मोहित ने खुद गलती की और खो दिया रूही को। अब तुम ये गलती न करना। आज मैंने जो कहा मोहित कि वो तुम्हे अपना ले, वो शादी नहीं है पागल। तुझे अगर मोहित का साथ एक दोस्त के रूप में भी मिल जाए तो किस्मत समझना। मैं तो पा नहीं पायी उसे, ना पति और ना दोस्त। अगर मोहित ने तेरा हाथ थाम लिया तो समझना कि पा लिया तूने उसे। उसे रोकना नहीं, खींचना नहीं।
बादल रुकते नहीं पगली। उनकी जो तबियत होती है वैसा होने दो, तभी बरसते हैं। मोहित के रिश्ते आजीवन होते है। अगर उसने मेरी बात मान ली तो बस समझ ले मिल गया तुझे वो। उसे हाँ कहने दे पहले”
राधा सुन रही थी पर समझ नहीं पा रही थी। शबाना भी ये समझ रही थी। शबाना ने राधा को गले लगाया और बोली,
“यकीन रख बस। ऊपर वाला अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं करता”, ये मैंने मोहित के मुँह से कई बार सुना है। यकीन रख बस”
शबाना ने राधा के सर पर हाथ फेरा और बाहर चली आयी।
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