रूही – एक पहेली: भाग-30
25th June
पूरा दिन काफी तेज़ी से गुज़रा, ऑफिस गए, कुछ कागज़ साइन करवाये रूही से, लंच किया। शॉपिंग करवाई रूही को जो कि उसका फेवरिट शगल था। वो मना करती रही मोहित पैक करवाता रहा। जब थक गए तो बैठ गए। रात की फ्लाइट थी, जो कि रूही को नहीं पता था। मॉल से जब एयरपोर्ट पहुंचे तो रूही चौंक गयी।
“कहाँ जा रहें हैं?”
“पुणे”
“क्याआआआ”
“हाँ”
“आजा”
“पर मेरी तो दो दिन के बाद की फ्लाइट है”
“कोई नहीं एक दिन पहले सही, चल तो”
पुणे पहुंचे, मोहित होटल में रुका, रूही सीधे घर गयी। रौशन को फ़ोन किया, बताया कि वो लौट आयी है, सारा काम हो गया।
रौशन खुश था, वो अभी सिंगापुर में दो दिन और घूमने वाला था।
रूही बहुत खुश थी। मोहित अभी दो दिन और पुणे में था।
मोहित बहुत-बहुत खुश था। उसकी ज़िन्दगी दो दिन और बढ़ गयी थी।
उसे लगा था मोहित ने उसके बर्थडे के लिए उसे दुबई बुलाया है। पर मोहित को पता था कि रूही अपना बर्थडे अपनी फॅमिली के साथ मनाती है। शायद इसलिए वापिस आ गया था।
“प्यारा है रे स्वीटी तू” रूही बुदबुदाई। मन तो उसका दुबई में रहने का ही था पर।
26th June
कोई दरवाज़े पर था, मोहित उठा, खोला।
“रूही? तू?”
“रूही का जन्मदिन मुबारक हो स्वीटी” मोहित के बासी होंठों को अपने होठो से ताज़ा किया और बोली
“कैसा लगा रूही का गिफ्ट स्वीटी?” मोहित तो उम्मीद नहीं कर रहा था इतनी सुबह।
रूही का ये अपना सा होटल था, आकर पसर कर फर्श पर कार्पेट बैठ गयी और टीवी देखने लगी।
“कॉफ़ी बनाऊं?”
“सिर्फ कॉफ़ी हीरो?”
“कुछ खाना है?”
“हाँ”
“क्या”
“तुझे” और फिर वही रूही का ठहाका।
मोहित मुस्कुरा दिया, कुछ संजीदा था वो आज। मोहित ने कोल्ड कॉफ़ी आर्डर की रूही के लिए और खुद वाशरूम में चला गया।
“टाइम लेकर आई है या भागना है?
“ना ना, फुल टू फ्री हूँ, रोशन तो आज रात आयेंगे”
“चल फिर मंदिर चलते हैं, तू ये पहन ले”, मोहित ने एक साड़ी रूही की तरफ उछाली।
रूही ने नज़रें तिरछी की “तू कितना प्लान करके रखता है रे चीज़ों को?
मोहित सिर्फ मुस्कुरा दिया। सुर्ख पीला रंग आजतक कभी पहना नहीं था रूही ने। पहन कर देखा, अच्छी सी लग रही थी, पर्स में से निकाल कर हल्का सा मेकअप किया और बस तैयार थी रूही। मोहित जब तक अपना सफ़ेद कुरता पजामा पहन चुका था। रूही का हाथ पकड़ा मोहित ने और लिफ्ट की तरफ निकल लिया। रूही को लग रहा था कि मामला कुछ अलग सा है, इतना संजीदा कभी होता नहीं था मोहित। रूही ऐसे समय मोहित को छेड़ती नहीं थी, बस हाथ थाम लेती थी और मोहित की उंगलियों में अपनी उँगलियों को उलझाये रहती थी।
मंदिर गए, दर्शन हुए, पुजारी अब पहचानने लगा था। रूही का हाथ पकड़ कर मंदिर की परिक्रमा की। रूही बस तीन परिक्रमा तक साथ रहती थी फिर बैठ जाती थी। मोहित पूरी सात बार परिक्रमा करता था। ना कभी मोहित ने पूछा कि रूही क्यों रुक जाती है, ना रूही ने बोला, जानते दोनों ही थे। पुजारी ने मोहित को टीका लगाया और जब रूही को लगाने को हुआ तो मोहित ने रोली लेकर अपने हाथ से रूही के माथे पर छोटी सी बिंदी लगा दी। रूही चौंक तो गयी पर बोली कुछ नहीं। ये पहले कभी नहीं हुआ था। ऐसे मूड में जब भी मोहित होता था, रूही डरी डरी सी रहती थी। ये वाला मोहित वो स्वीटी नहीं हुआ करता था। ये अलग सा जुनूनी मोहित हुआ करता था जो किसी की सुनने वालों में नहीं होता था। मोहित का दूसरा हाथ कस कर पकड़ लिया रूही ने जब मोहित टीका लगा रहा था। मोहित ने थाली में से पेड़े का छोटा सा टुकड़ा लिया, रूही को खिलाया और फिर बाकी खुद ले लिया। मंदिर से बाहर आकर रूही ने कार में आकर पूछा,
“क्या बात है स्वीटी, तू ठीक है ना?”
“ह्म्म्म.. क्यों?”
“तुझे पता नहीं ना, मैं डर जाती हूँ जब तू ऐसे करता है”
“क्या हुआ बब्बल?” मोहित ड्राइव कर रहा था।
“तुझे क्या हुआ है स्वीटी, बता ना?”
“अरे कुछ नहीं, सब ठीक है। चल तुझे कुछ दिखाता हूँ”
थोड़ी देर में शहर के बाहर की तरफ को जा रहे थे वो, ओशो आश्रम की तरफ।
“कहाँ ले जा रहा है स्वीटी?”
“चल तो”
मोहित अब नार्मल सा हो रहा था। मोहित ने जब कार रोकी तो नया सा अपार्टमेंट था कोई।
“मंत्री रिवरव्यू”
ज़्यादा आवाजाही नहीं दिख रही थी, शायद ज़्यादा लोग नहीं बसे थे अभी वहाँ। शहर से दूर था तो हरियाली काफी थी और शोरगुल तो रत्ती भर नहीं। मोहित ने कार पार्किंग में लगाई, अपना बैग उठाया, रूही बाहर आयी।
“चलो ज़रा, काम है”, मोहित बोला।
“किसी से मिलाना है?”
“हाँ” लिफ्ट में जा कर मोहित ने 27th फ्लोर दबाया। रूही आईने में देख रही थी अपने को। कैप्सूल लिफ्ट थी जिस से बाहर का सब साफ़ दिख रहा था। ऊपर जाते हुए पुणे के पूरे लैंडस्केप को साफ़-साफ़ देख सकती थी। एक तरफ शहर दिख रहा था और एक तरफ छोटी सी नदी बहती हुई।
“बहुत प्यारी जगह है रे ये स्वीटी”
लिफ्ट रुकी तो मोहित बाहर आया। छः फ्लैट्स थे उस फ्लोर पर, मोहित कोने वाले तक आया।
“2706”
“रूही-मोहित”
नेम प्लेट देख कर लड़खड़ा गयी रूही।
“किसका घर ये मोहित?
“तेरा पगली”
“हैप्पी बर्थडे”
“क्या??????????”
चाभियाँ निकाल के दी मोहित ने रूही को।
“तू कहती थी ना कि काश एक छोटा सा प्यारा सा घर होता जहाँ सिर्फ तुम और मैं होते। भले ही कभी रहते नहीं पर हमारा होता वो घर। ये है तेरा वो वाला घर रूही, तेरे जन्मदिन का तोहफा”
रूही ने दरवाज़ा नहीं खोला, पीठ टिका कर खड़ी हो गयी दरवाज़े से। आँखों में लंबे-लंबे आँसू अटके हुए थे।
“क्या करे जा रहा है स्वीटी तू पिछले दिनों में”
“तुझे हुआ क्या है?”
“इतनी जल्दी में क्यों है तू रे”
“तू पागल था, पता था पर ये तो कुछ और है स्वीटी”
“क्यों कर रहा है ये सब तू”
मोहित मुस्कुराया, “दरवाज़ा खोल”
रूही ने मोहित का हाथ थामा, स्लाइडिंग डोर था,दरवाज़ा खोला धीरे से।
अंदर पैर रखने को हुई, रंगोली बनी हुई थी। एक पीतल का लोटा रखा हुआ था चावल से भरा हुआ।
रूही ने मोहित का हाथ ज़ोर से भींच लिया, फिर मोहित की तरफ देखा। मोहित रूही की बाहें थामें हुआ था, रूही ने पैर से लोटे को लुढ़काया।
दो आँसू लुढ़के….मोहित के।
एक छोटा सा खूबसूरत सा स्टूडियो अपार्टमेंट था। एक लिविंग रूम जो सामने ही था। सामने की दीवार पर रूही के महावर से रंगे हुए पाँव के बहुत खूबसूरत फ्रेम में जड़ी हुई तस्वीर। रूही आगे नहीं बढ़ पायी, वहीं ज़मीन पर धम्म से बैठ गयी दोनों हाथ अपने गालों पर रखते हुए। मोहित दूर खड़ा हुआ रूही के चेहरे को देख रहा था। थोड़ी देर बाद रूही उठी। लड़खड़ा रही थी रूही। मोहित हाथ थामे हुए था। एल शेप में सोफे, एक ईज़ी चेयर जो मोहित की सबसे बड़ी कमज़ोरी थी। दो दरवाज़े और दिख रहे थे और बाजू में बालकनी थी। बालकनी का दरवाज़ा खोल कर बाहर आयी। दो कुर्सियां और एक गोल मेज लायक जगह थी।
नीचे नदी बहती हुई और दूर तक सिर्फ पेड़ और पगडंडियां। किचन इतना तैयार कि बस गैस चालू करो और खाना बनाओ।
किचन के दरवाज़े पर रूही की एक बड़ी सी तस्वीर नुमायां हो रही थी जिसमें वो अपने फेवरिट स्टाइल में बैठ पालथी मार कर गोल गप्पे खा रही थी।
“मेरी हिम्मत जवाब दे गयी स्वीटी अब, मेरा हार्ट फेल हो जायेगा”
रूही की साँसे बहुत तेज़ हो रही थीं। वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गयी। मोहित बाजू में आया तो उसकी गोद में सर रख कर लेट गयी। मोहित का हाथ अपने सीने पर रख कर बोली,
“मर जाउंगी मैं स्वीटी, बस कर अब, बस कर”
“मैंने किया क्या है बब्बल?”
“ये सब क्या है स्वीटी? ये घर, ये मेरे तेरा नाम, ये सब क्या है? क्या चाहता है तू रे?”
“तुम्हे”
“स्वीटी, तुझे पता है मैं……..”
मोहित ने रूही के होठो को अपने होंठों से ढक दिया। रूही शांत हो गयी थी।
“अंदर नहीं चलोगी रूही? अभी और भी है”
“रहने दे स्वीटी ज़िंदा प्लीज”
“उठ ना प्लीज” रूही फिर उठी, मरने के लिए। रूही को आगे किया मोहित ने।
“दरवाज़ा खोल”
“नहीं तू खोल”
रूही मोहित के पीछे छुप गयी जैसे की कोई भूत निकलने वाला हो उस कमरे से। मोहित ने दरवाज़ा खोला, आगे बढ़ी रूही, अँधेरा था। सिर्फ एक बेड दिख रहा था। मोहित ने रूही को ले जाकर बेड पर बिठा दिया। रूही ने ठंडी साँस ली।
“अँधेरा क्यों है इतना यहाँ स्वीटी?”
“जला ले लाइट, बगल में है स्विच”
रूही ने ऑन किया और मुड़ी तो फिर एक बम फटा।
सारी दीवारों पर सिर्फ रूही, रूही और रूही के अलावा कुछ नहीं। दाएँ-बाएँ की दीवारों पर रूही के पोट्रेट्स थे। सामने की दीवार पर रूही की उन हज़ारों फोटो को मिला कर बनाया गया एक पूरा कोलाज जो पूरी दीवार पर छाया हुआ था। ये वो तस्वीरें थी जो मोहित ने पिछले सालों में रूही के जाने-अनजाने ली हुई थी। रूही ने लगभग सारी तस्वीरें देखी हुई थी पर इस रूम में अपने को देखना?
ये उसकी कल्पना से परे था। देखती रही, देखती रही, फिर अपना मुँह घुटनो में छुपा लिया, सिसक रही थी।
“क्या हुआ बब्बल?”
“इन्तहा हो गयी स्वीटी” तू नहीं समझेगा” गले से लग गयी।
“इतना क्यों प्यार करता है रे”
आँख खुली तो चौथी दीवार पर नज़र गयी जो सिरहाने थी। उस पर मोहित और रूही साथ में, ऊपर से नीचे तक।
“ये हमारी ”जन्नत” है रूही”
“नहीं स्वीटी, ये कुछ और है”
“चल तू यहाँ से”
“अब बस, घर जाना है”
“क्या हुआ बब्बल, अच्छा नहीं लगा?”
“ना रे पागल, ये अच्छा नहीं तो और क्या होगा? ये तो मैं बयान भी नहीं कर सकती कि क्या है”
“फिर क्या हुआ”
“कुछ नहीं, इधर आ, मेंरे पास बैठ स्वीटी प्लीज, इधर आ” रूही थरथरा रही थी।
होंठ कुछ कहना चाह रहे थे, नहीं कह पायी, कुछ बोलना चाह रही थी, नहीं बोल पायी।
अब मोहित घबरा गया, आकर बैठा पास। रूही ने कस कर उसे सीने से लगा लिया। लगी रही गले।
“तू समझ ही नहीं रहा है स्वीटी, ये सब क्या कर दिया तूने”
और अचानक फिर चुप हो गयी, शांत, बिलकुल शांत। तकिये से सर टिका कर लेट गयी। मोहित को अपनी गोद में लिटा लिया था उसने। उसके बालों पर हाथ फेरती रही। सामने की दीवार पर नज़रें थी उसकी। थोड़ी-थोड़ी देर बाद मोहित के गाल पर एक बूँद टपकती, मोहित पोंछ लेता। थोड़ी देर बाद रूही मोहित की बाँहों में सिमटी पड़ी थी, निढाल।
मोहित लगाए रहा उसे अपने सीने से। आज जब रूही उसकी बाँहों में सिमटी पड़ी थी तो मोहित को कुछ और एहसास हो रहा था। ये कोई और थी। ये कसक रूही की पहले कभी नहीं देखी थी मोहित ने।
“चल तेरा किचन शुरू करती हूँ”
“मेरा सिर्फ?” मोहित बोला।
रूही मुस्कुराई…
“हमारा नहीं बब्बल?
जवाब नहीं आया। मोहित कुछ नहीं बोला, वो भी मुस्कुरा दिया। रूही गयी, किचन में जो छोटा सा मंदिर था, वहाँ से घंटी बजने की आवाज़ आयी और फिर अगरबत्ती की खुशबू।
“इधर आ स्वीटी”
मोहित गया तो रूही सर पर पल्लू डाले मंदिर के सामने बैठी हुई थी,
“बैठ इधर ज़रा”
मोहित बैठ गया। अपना पल्लू पकड़ाया रूही ने और इशारा किया सर पर रखने को। अब मोहित रूही के पल्लू तले बैठा हुआ था। रूही की छाँव में तो बरसों से था पर आज उसके पल्लू में भी सिमट आया था। मोहित कुछ सोच कर मुस्कुराया।
रूही ने कुछ मंतर-वन्तर पढ़े और मुड़ कर मोहित के टीका लगाया।
“अब उठ, ऐसे ही बैठा रहेगा क्या?” मोहित हँसने लगा।
“अच्छा सा लगा रूही, घर जैसा लग रहा है आज पहली बार” रूही मुस्कुरा रही थी।
मोहित बालकनी में सिगरेट जलाने चला गया। रूही ने आवाज़ लगाई,
“आजा स्वीटी”
मोहित अंदर आया। एक ट्रे में दो कटोरी में सूजी का हलवा रखा था।
“मीठा बनाते हैं सबसे पहले नए घर में”
मोहित बैठा और अपने हाथ से पहले रूही को खिलाया और फिर एक चम्मच खाकर बैठ गया।
“अब?”
“तू बता क्या चाहता है?”
“तुझे”
“चल हट, एक ही गाना गाता रहता है”
“और कोई गाने लगूं?”
“जान ले लूँगी तेरी स्वीटी, कहीं और नज़र डाली तो”
फिर कहते-कहते रूही शांत हो गयी, नज़रें चुराई और ट्रे उठा कर किचन में चली गयी। मोहित पीछे-पीछे आया,
“क्या हुआ?”
“कुछ नहीं रे, इतना हक़ थोड़े ही ना है मेरा तेरे पर स्वीटी”
“सब तेरा है बब्बल”
“अच्छा छोड़, आ,नीचे चलते है थोड़ा, अच्छी सी जगह है, पीछे वाक करके आते हैं”
मोहित, रुही और एक पहेली एकदम उलझी हुई… खूबसूरती से गढ़ी गई पहेली…
अगले भाग की प्रतीक्षा में…