रूही – एक पहली: भाग-3
30 दिसम्बर 2009
रूही ने मोहित को कॉल किया,
“There is a good news, i am expecting and you are the first person i am sharing this”
मोहित ड्राइव कर रहा था , उसने कार रोकी और कहा, “रूही फिर से बोलो”
“मै माँ बनने वाली हूँ”
मोहित ने बधाई दी, 31 को टेक्स्ट किया, जवाब नहीं आया।
1 जनवरी को कॉल किया, जवाब नहीं आया।
मोहित ने ढेर सारे टेक्स्ट किये।“Failed”
हुआ क्या था आखिर?
रूही ने कदम बढ़ा लिया था,पीछे की तरफ,मोहित ने कदम बढ़ा लिया था अपनी बर्बादी की तरफ और ये नया साल बड़ा ही मुबारक़ बन के आया था मोहित के लिए।
14 फरवरी 2010
होली, दीवाली, दशहरा सभी त्यौहार निकलते गए। रूही ने जैसे ठान ही लिया था कि मोहित से वास्ता नहीं रखना है। मोहित रोज़ फ़ोन करता और 100 बार में से एक बार रूही उठा लेती।
“मोहित मै बिज़ी हूँ, बाद में कॉल करुँगी”
और फिर वो बाद कभी नहीं आया।
मोहित के काम पर असर पड़ने लगा था। मोहित ने घर जाना लगभग बंद कर दिया था। कभी कभी जब इंद्र की याद आती तो चला जाता वरना ऑफिस में ही सो जाता,जागता रहता। रूही को टेक्स्ट करता रहता, इस उम्मीद में कि जवाब आयगा। जन्मदिन पर सब कुछ ठीक करने के इरादे से एक बार फिर मोहित ने फ्लाइट पकड़ी। ढेर सारे गुलदस्ते रूही के घर पर पहुँचने लगे थे बीती रात से। सुबह उसी बेमुराद होटल से रूही को कई सारे कॉल किये।
रूही ने शाम को फोन उठाया,
“रूही क्यों कर रही हो ऐसे। क्या गलती है मेरी?” रो रो कर पूछ रहा था मोहित उस शाम
रूही ने सुना, बोली “मुझे ये मजनू गिरी पसंद नहीं है बिलकुल,मै वैसे ही अपनी ज़िन्दगी से परशान हूँ। मुझे और परेशान ना करो प्लीज़। मुझे जिंदा रहने दोगे या नहीं तुम?”
मोहित ने फ़ोन रखा, फ़ोन के पास वाले सोफे पर धम्म से बैठ गया, ये उसकी रूही थी?
मोहित ने रूही को ऐसा बना दिया था?
रूही फ़ोन रख के मुड़ी, एक कोने में सारे गुलदस्ते एक के ऊपर एक पड़े हुए कराह रहे थे। रूही ने उन फूलों पर से नज़रे फेर ली और कमरे से बाहर निकल गयी।
आवाज़ों से आप दूर जा सकते हैं, कान पर हाथ रख लीजिये। अनदेखा कर सकते है किसी को भी, नज़रे फेर लीजिये। किसी की महक से कब तक बचोगे आप और मोहित की खुशबु रूही को सुनाई दे रही थी , बस मोहित दिखाई नहीं दे रहा था।
फ्लाइट ली उसी वक़्त मोहित ने वापिसी की और लौट आया।
लौटा था मोहित फिर से वही टेड़ेमेढे रास्तों पर….
4 दिन बाद मोहित को पैरालिसिस का माइल्ड अटैक पड़ा, लेफ्ट साइड ने काम करना बंद कर दिया था। हॉस्पिटल में एडमिट हुआ, किसी को कुछ खबर नहीं थी। इंद्र स्कूल टूर पर था और शबाना को जानना नहीं था कुछ। मोहित ने हिम्मत कर के अपने को ठीक किया। घर लौटा, काम पर जाने लगा पर काम तो अब समझ में आना बंद हो गया था। 2010 जा चुका था, साथ ही रूही भी चली गयी थी। कब 2011 आया और चला गया। रूही को पता ही नहीं चला कि मोहित भी चला गया साथ में।
और रूही तो कहीं और ही थी। मोहित ने बिना पूछे रूही को अपने सपने में शामिल किया था, सज़ा तो मिलनी बनती ही थी न। मोहित की आँख खुली तो ना सपना था और ना थी रूही।
अजीब सी पहेली थी वो, मोहित को बदल कर खुद बदल गई।
और फिर मोहित ने एक दिन आख़िरकार जॉब ही छोड़ दी। घर पर शबाना और इंद्र अपनी अपनी ज़िन्दगी जी रहे थे। इंद्र समय से पहले समझदार हो चुका था। शबाना को फर्क पड़ता था पर बोलती नहीं थी। रात रात भर जाग जाग कर पथरीली आँखों से मोहित का इंतज़ार करती पर कभी मोहित आता तो अपने कमरे में चली जाती।
वहां मोहित कॉल कर लेता था, रूही फ़ोन उठा लेती थी।
“कैसे हो?”
“अच्छा हूँ”
“काम कैसा चल रहा है?”
“मस्त”
“तबियत कैसी है?”
“झक्कास” बस यही बातचीत होती थी।
2011 भी चला गया और 2012 भी ऐसे ही जा रहा था । हदें उनकी होती है जो जीना चाहते है। जो हर पल मौत के इंतज़ार में हों वो तो कुछ और ही होते हैं। उस तरह की शै से उपर वाला भी बेपनाह मोहब्बत करता है। उसे बड़ा मज़ा आता है लुकाछुपी खेलने में। जब वो शै मरना चाहती है तो ज़िन्दगी से मिलवा देता है। जब वो शै जीना चाहती है तो मौत का आँचल थमा देता है। ये मोहित तो वैसे ही दीवानो की फेरहिस्त में अव्वल नंबर वाली शै था। ऊपर वाले का फेवरिट खिलौना। न खेलूंगा और ना खेलने दूंगा किसी और को टाइप। इस दीवाने ने एक कदम और बढ़ाया फिर एक दिन 2011 और 2012 के बीच में …
मोहित उस रोज़ सुबह अच्छे से तैयार हुआ, रूही के लिए सिलवाया जोड़ा बैग में रख कर मंदिर पहुंचा और पुजारी को कहा कि शादी करनी है।
पुजारी ने पूछा “वधु कहाँ है”
मोहित ने बैग खोल कर जोड़ा निकाला और कहा “ये है”
पुजारी हँस पड़ा, साहब मज़ाक न कीजिये, ऐसे कहाँ होती है शादी, पर मोहित की ज़िद और गाँधी जी के चमत्कार के आगे झुकते हुए आख़िरकार पुजारी ने हार मान ली। पूरे विधि विधान से मोहित ने रूही के जोड़े के साथ ब्याह रचाया। मंदिर के सात फेरे लिए और मोहित ने शादी कर ली अपनी रूही के साथ।
वो रूही जिसे कुछ नहीं पता था,वो रूही जो कहीं थी ही नहीं,वो रूही जो प्यार में यकीन रखती ही नहीं थी, वो रूही जो मोहित को, उसके प्यार को ठुकरा कर कब की जा चुकी थी। वो रूही,जो सिर्फ एक पहेली थी।
सिर्फ एक पहेली …
शाम को अपने दोस्तों को पार्टी दी, खूब खानापीना मस्ती शराब और फिर सबसे गले मिलकर चला आया। वो जिसे दीवाना कहते है, पागल कहते है, बावला कहते है वही हो गया था मोहित। उस दिन से दोस्तों से मुलाकात बंद,घर पर फ़ोन करना बंद। उसने अपनी एक दुनिया बसा ली थी जिसमे रूही उसकी हमसफ़र बन गयी थी। वो उसके साथ खाता, बातें करता, घूमता,नाराज़ होता। साहिबी नदी का वो कोना उसका सबसे ख़ास होता था जहाँ वो हर शनिवार की रात को जाकर रूही को ख़त लिखता था। उसकी दुनिया में रूही शुक्रवार को उस से रूठ कर चली जाती थी और वो शनिवार को उसको मनाने पहुँच जाता था। पर रूही को नहीं आना था और रूही नहीं आई।
कैसे आती? कहाँ खबर थी उसको कि उसके पीछे कितना कुछ हो गया।
क्या करती वो?
उसे नहीं था प्यार मोहित से।
कोई ज़बरदस्ती थी क्या?
आप किसी को प्यार करो तो ये कहाँ से ज़रूरी है कि वो भी आपको प्यार करे।
नहीं हुआ उसे मोहित से तो नहीं हुआ ना।
और हो गया मोहित को रूही से तो इसमें मोहित की भी क्या ग़लती थी?
हाँ, पर एक ग़लती हो, गयी थी मोहित से ,उस कमबख्त ने रूही से पूछा नहीं था कि,”रूही, क्या मै तुम्हे प्यार कर सकता हूँ?”
कमबख्त इश्क कमीना इश्क़, इस बार जरा ज्यादा ही सर चढ़ गया था। मन करता था कि एक बार पूछ ही ले रूही से कि,
“तुम्हारा इंतज़ार करूँ या मौत का?”
कहना चाहता था कि “मौत पर यकीन ज़्यादा होने लगा है रूही, वो पहले आयेगी देखना और तुम तब भी इंतज़ार कर रही होगी”
फिर सोचता था, खामोश ही रहूँ तो ज़्यादा बेहतर है बातों ने ही तो रूही को रुलाया है और चुप रह जाता था मोहित।
उधर इंद्र में जान अटकी रहती थी मोहित की। उस रोज़ बारिशों का ही मौसम था, शायद जाती हुई बारिशें। अब बारिशों के जाने का इंतज़ार सबसे ज़्यादा मोहित को ही रहता था। सब कुछ ख़तम करने से पहले मोहित उस दिन इंद्र को साथ लेकर गया।
सुबह से लेकर शाम तक खूब मस्ती,ढेर सारी शौपिंग। इंद्र के लिए सब कुछ एक दम से नया नया था। बहुत दिनों बाद उसके पप्पा घर आये थे। रात को लौटते हुए मोहित ने पुछा,
“इंद्र, किसके साथ रहना है तुमको माँ के साथ या मेरे साथ?”
इंद्र ने मासूमियत से जवाब दिया “आप दोनो के साथ” और फिर मोहित 2 साल बाद रोया,इतना रोया, इतना रोया कि इंद्र घबरा गया। मोहित ने संभाला अपने को बोला चलो घर चले। मोहित ने रूही को फ़ोन किया,नहीं उठाया तो रूही को टेक्स्ट किया।
तीन दिन तक मोहित ने इंतज़ार किया, जवाब नहीं आया। उसने अपने पुराने मालिक साहब को कॉल किया।
“साहब मुझे काम चाहिए”
उसके बाद मोहित ने रूही वाला टेक्स्ट देखा “SMS Failed”
काश, वो टेक्स्ट रूही को मिल गया होता। मोहित के पास रूही का ईमेल एड्रेस नहीं था, वरना 17 पार्ट्स का वो टेक्स्ट नहीं करना पड़ता मोहित को। मोहित को नहीं पता था कि रूही किस हाल में थी। मोहित को कहाँ पता था कि रूही की मोहब्बत, रूही पर ही भारी पड़ने लगी थी। मोहब्बत की भी एक मजबूरी होती है जनाब और मजबूरी हमेशा से मोहब्बत पर भारी पड़ी है ।
झूठ सिर्फ मोहित को ही बोलना आता था ऐसा नहीं था। रूही को भी आता था। दूसरों से ज़्यादा अपने से झूठ बोलती थी। मास्टरी हासिल थी उसे अपने को धोखा देने में। रूही की मजबूरियों का किसी को नहीं पता था। वो सब रूही के दिल में दफ़न हो चुकी थी। जिस प्यार ने मोहित को बर्बाद करने में कसर नहीं छोड़ी थी, उसी प्यार ने रूही को ज़िन्दगी भर के लिए तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ दिया था।
रूही को भी प्यार हुआ था। हाँ,मोहित से ही हुआ था और जान से ज़्यादा हुआ था। 2012, उमस भरी रात, तारीख याद नहीं।घंटी बजी मोहित के मोबाइल की ,
“रूही कालिंग”
मोहित चौंक गया, कॉल बैक किया, रूही ने तुरंत फ़ोन उठाया।
“कहाँ हो तुम?”
“यही हूँ, मुंबई में”
हुआ हूँ था कि पिछले दो सालों में पहली बार ऐसा हुआ था कि मोहित ने रूही को कॉल नहीं किया था तीन दिन तक।
मोहित बेनागा कॉल करता था,रूही कभी जवाब देती थी कभी नहीं पर मोहित रोज़ कॉल करता था। अपने हाल बताता था टेक्स्ट पर, पर पिछले तीन दिन से उसने चुप्पी साध ली थी और रूही ने इसलिए कॉल किया था।
“मैं बाहर जा रहा हूँ रूही”
“कहाँ?”
“जापान”
“क्या???”
रूही चौंक गयी “क्यों जा रहे हो?”
“मेरी नई जॉब लग गयी है”
“तो तुम चले जाओगे?”
“हाँ रूही, अब बस जाना है” रूही शांत थी, उसे पता था कि मोहित क्या कह रहा था।
उसे पता था कि मोहित क्यों ऐसा कह रहा है।
उसे पता था कि मोहित ऐसा क्यों कर रहा है।
रूही से नहीं रहा गया बोली, “मेरी एक आखिरी बात मान लो”
“हाँ, बोलो” मोहित ने कहा
“तुम जापान नहीं जाओ ना प्लीज़”
मोहित मुस्कुराया,
“कब टाली है रे तेरी बात,नहीं जाऊंगा” रूही का ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
“मैं कल कॉल करुँगी” रूही ने दुसरे दिन कॉल किया, मोहित का मोबाइल बंद था। चार दिन बाद रूही के मोबाइल पर एक अजीब सा नंबर आया,
“00011111” कालिंग , काट दिया उसने, फिर आया ,फिर काट दिया ,फिर आया, रूही ने डरते डरते उठाया, मोहित था दूसरी तरफ,
“मोहित बोल रहा हूँ मैं,दुबई से बोल रहा हूँ। रूही, मैंने तुम्हारी बात मान ली है। मैं जापान नहीं गया,मैं दुबई आ गया हूँ। अपना ध्यान रखना और फ़ोन काट दिया”
यहाँ मोहित जा चुका था और वहां रूही आ चुकी थी।
एक मोहब्बत ने आखिरी सांस ली थी उस दिन और एक मोहब्बत ने दस्तक दी थी।
एक ऐसा रिश्ता टूटा था जिसका कोई नाम ही तय नहीं हो पाया था।
दोस्त? रूही थी, मोहित नहीं था।
मोहब्बत? मोहित करता था, रूही नहीं करती थी।
क्या कीजियेगा आप बताइये?
कुछ रिश्ते नाम नहीं सुकून की तलाश में अपने आप बन जाते हैं और फिर नाम देने के सिलसिले में टूट ही जाते है,बे आवाज़ टूट जाते हैं, कई दिलों को हमेशा के लिए दफ़न हो जाने के लिए।
वही हुआ था उस दिन, कुछ दफ़न हुए थे तो कुछ कफ़न लेकर आगे बढ़ गए थे।
लेखनी ज़बरदस्त है आपकी, बहुत ही भावुक कर देते हैं
किसी किसी रिश्ते में एक सकून का जो एहसास होता है ना…. उसको नाम ना दिया जाए तो ही… अच्छा है,,,,
Superb story..
“यहाँ मोहित जा चुका था और वहां रूही आ चुकी थी।
एक मोहब्बत ने आखिरी सांस ली थी उस दिन और एक मोहब्बत ने दस्तक दी थी।”
ऐसी टूटने की उपमा बड़ा अद्भुत है, कोई आखिरी सांस ले और कोई पहली लेकिन जिसके कारण यह सब था वह स्वप्न ही अधूरा रह गया… एक सबकुछ छोड़कर हृदय में पल्लवित स्वप्न कोपलों को साकार करना चाहता और एक के पास अभी कुछ और था खोने को और यही महीन सा भ्रम चट्टान बन गया मिलन में… अद्भुत रचना बड़ा आनंद आया पढ़ कर और साथ ही एक सीख भी मिली जो आगे जीवन में बहुत जरुरी हैं|
लेखक महोदय का हृदय से आभार, उन्होंने यह रचना पाठकों के लिए उपलब्ध कराया 🙏🙏
बहुत दिल से पढ़ रहे हैं आप मित्र …
Kuch rishte sukun talaashte hai naam nahi … 👌👍