रूही – एक पहेली: भाग-29
“आप को अपनी फिर से तबियत ख़राब करनी है न?” राधा बहुत गुस्से में थी।
“मैं कसम से किसी दिन इस डायरी में आग लगा दूंगी” मोहित सकपका गया।
इतना गुस्से में तो राधा कभी नहीं होती थी। चुपचाप उठा, नीचे गया, घड़ी में सुबह के तीन बज रहे थे। डायरी तकिये के नीचे रखी कि कहीं गुस्से में राधा आग ही ना लगा दे। करवट ली और सोने की कोशिश में लग गया।
बिजली कड़कने की आवाज़ से आँख खुली तो खिड़की से बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही थी और अँधेरा सा था। वक़्त का अंदाज़ा नहीं लगा पाया। लगा पाँच बज रहा होगा सुबह का। अलसाया सा उठा, बाहर गया, घड़ी देखी तो चौंक गया। एक बज रहा था दोपहर का। पहाड़ों की बारिश वक़्त को उलट पलट कर देती है। रामसिंह ने बताया राधा शहर गयी हुई थी और आज लौट कर आने वाली नहीं थी। मोहित को भूख सी लग आयी थी। रामसिंह को ब्रेड ऑमलेट बनाने को बोल कर बाहर आ कर बैठ गया।
सन्नाटा सा छाया हुआ था पूरा। घनघोर बारिश हुए जा रही थी।
मोहित अंदर आया और फिर डायरी खोल ली। यादों को बटोर रहा था या समेटने की कोशिश या अपने को लुभाने की, वो खुद नहीं समझ पा रहा था।
24th June 6 PM
मोहित अचानक मुड़ा और बोला चलो।
“कहाँ”
“अरे चल ना”
नीचे आयी तो सब उठ कर आ गए और सब साथ बोले “थैंक यू मैम”
बाहर आते हुए अटेंडेंट ने साथ में जोड़ा, “आपका बहुत सालों से इंतज़ार था मैम”
“साहब का सपना पूरा करने के लिए थैंक यू” मोहित मुस्कुराया, अटेंडेंट के कंधे पर हाथ रखा।
“मैं कहता था ना, सपने देखा करो, पूरे होते हैं, बस देखा करो”
गाड़ी नीचे इंतज़ार कर रही थी। मोहित ने रूही के लिए दरवाजा खोला, रूही मुस्कुरा दी।
“अटलांटिस” मोहित ने बैठते ही बोला।
गाड़ी चल दी। रूही रास्ते भर खिड़की के शीशे से मुँह लगाए रही बच्चों की तरह।
“ये वही होटल है ना जहाँ शाहरुख़ खान का घर है?”
“हा हा, हाँ वही आसपास”
“तू हर बात पर मज़ाक क्यों उड़ाता है मेरा स्वीटी?”
“अरे नहीं, बस मज़ा आ रहा है तुझे देख कर”
होटल पहुँच कर इस बार रूही ने आँखे बड़ी-बड़ी नहीं की, उसे उम्मीद थी कि जो भी होगा शानदार ही होगा। इतना तो जानती ही थी वो मोहित को। मोहित रूही को लेकर रूम में गया, जो पहले से उसने बुक कराया हुआ था।
टेबल पर एक पैकेट पड़ा हुआ था।
“Mr MOHIT” के नाम से। मोहित ने उठा कर रूही को दिया।
“तैयार हो जाओ, डिनर करने चलना है”
बड़ा सा सवाल था रूही की आँखों में,
“वो मीटिंग?”
“हो तो गयी ऑफिस में”
“जाओ तैयार हो जाओ”
मोहित ने अपना लैपटॉप में कुछ किया कुछ मेल्स के जवाब भेजे।
रूही निकल कर आयी अंदर से, जेड ब्लैक शार्ट ड्रेस, घुटने से ज़रा सी ऊपर। आँखों में ढेर सारा काजल और वो सब कुछ जो रूही जानती थी कि मोहित को पसंद आने वाला था। मोहित ईज़ी चेयर पर पड़ा हुआ था। पास बुलाया उसे और कहा
“ये क्या लगा है आँख पर”
रूही पास आयी तो खींच लिया अपने ऊपर मोहित ने…. और रूही कौन सा मना करने वाली थी।
“कमीने हो तुम स्वीटी”
“वो तो हूँ ही” फिर जैसे तूफान आ आया। उस तूफ़ान का सामना रूही ने पहले नहीं किया था अपनी ज़िन्दगी में। स्वीटी का ये रूप वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी। इतना नादान सा भोला सा दिखने वाला। रूही उन पलों को पहले कभी नहीं जी थी। मोहित उसके अंग-अंग में सीसा उड़ेल देता था। मिन्नतें करती थी रूह दूर जाने की तो पास आता था , पास आने की मिन्नतें करती थी तो दूर चला जाता था।
और फिर जब रूही की जान निजलने को होती ही थी तो हलके से छोड़ देता था और सिगरेट के कश लगाने लगता था। रूही की इन ऊपर नीचे चलती हुई साँसों से बड़ा प्यार था उसे। रूही जब तक उसे घसीट कर नहीं ले जाती थी रूही की मिन्नतें नहीं मानता था। रूही मोहित के पागलपन की दीवानी थी और मोहित रूही के अपने पीठ में हुए नाखूनों वाले मोहरबंद दस्तावेजो का, उसके उन दांतों का जो मोहित के कंधे में अनगिनत निशान बना चुके थे। रूही अब निढाल होकर मोहित के सीने से सटी हुई थी।
“तो ये था तुम्हारा डिनर?”
“ना-ना, चलते हैं”
“रुक मैं ज़रा फ्रेश हो लूँ”
रूही की लिपस्टिक पूरी ख़राब की मोहित ने और भाग गया अंदर।
“मुझे पता था, रूही चिल्लाई, तू मौका नहीं छोड़ेगा कमीने”
नीचे लॉबी से ही बीच पर जाने का रास्ता था। जब तक नीचे आये, हलकी सी रिमझिम शुरू हो चुकी थी। रूही बीच पर जाने से कतराने लगी, बोली,
“ड्रेस खराब हो जायगी स्वीटी”
“हो जाने दे, चल साथ”
“कौन होता है बारिश में बीच पर पागलों के अलावा?”
पहले तो रूही कसमसाती रही और फिर मान गयी। मोहित बियर की बास्केट लिए खड़ा था। उस बीच पर एक कोने से दूसरे कोने पर वाक करते हुए, बियर पीते हुए, भीगते हुए जाने कितनी बार रूही ने मोहित के होठो को भिगोया होगा, ये मोहित को भी याद नहीं था। उस एक घंटे की बारिश में आग लगने वाली थी तभी बारिश हलकी होने लगी। रूही पाम के पेड़ के नीचे लेकर गयी मोहित को, पेड़ के तने से टिकाया मोहित को और उसका हाथ अपने सर पर रखवाया।
“कसम खा, तू कभी रूही को छोड़ कर नहीं जायेगा”
“और तू, रूही?”
“तू मेरी छोड़, मैं तो रूही हूँ ना?”
“मतलब?”
“कुछ मतलब-वतलब नहीं, बस तू कसम खा कि तू नहीं छोड़ेगा मुझे”
मोहित मुस्कुराया,
“तुझे छोड़ा तो ये जीना छोड़ दूंगा रूही कसम खIता हूँ तेरी”
“बस”, रूही खुश थी”
और मोहित ????
मोहित को अपना अंत पता था।
मोहित ने हाथ पकड़ा और बीच क्लब की तरफ ले गया। एक तौलिया से रूही बाल पोंछे, दूसरी से अपने। जब-जब मोहित रूही को बच्चों की तरह ट्रीट करता था, रूही एक दम से और बच्चा बन जाती थी। चुप से खड़ी हो जाती थी। मोहित जब रूही के पैरों की तरफ बढ़ा तो रोक लिया रूही ने।
“बहुत पाप चढ़ा चुका है मेरे ऊपर स्वीटी तू, अब ना कर। नहीं हूँ इस लायक, तू समझता नहीं रे”
इस बात पर मोहित हमेशा रूही के होंठों पर अपनी ऊँगली रख देता था। आज अपने होंठ रख दिए। रूही को शांत कर दिया उस क्लब के कोने में मोहित ने।
“डिनर?”
““लेग पीस?” रूही ने ओनी बायीं आँख मिचकाई। बियर फिर बोलने लगी थी रूही की।
मोहित हँस दिया, हाथ पकड़ा रूही का बोला,
“चल फिर”
रूही मोहित के कंधे पर सर टिकाये हुए चल रही थी। रूम में पहुँच कर मोहित ने डिनर आर्डर किया और जब तक रूही ने फ्रिज से निकाल कर एक बोतल और गटक ली थी। सोफे पर पालथी मार कर बैठना चाहा तो बैठ नहीं पायी ड्रेस की वजह से। ड्रेस ऊपर चढ़ाई और मोहित की तरफ देखा, जीभ निकाली और मोहित को इशारा किया। मोहित ने जवाब में दोनों आँखें बंद की और हवा में ही चूम लिया रूही को। मोहित ने अपने लिए स्कॉच का पेग बनाया और वही रूही के पास ज़मीन पर बैठ गया।
“यही ज़िन्दगी मांगी थी मैंने रूही ऊपर वाले से”
“मिल गयी ना तुझे स्वीटी”
“काश, ज़िन्दगी भर के लिए मिल जाती बब्बल”
“तूने माँगा था स्वीटी?”
बात तो सच ही थी।
मोहित तो बस हर बार कुछ पलों के लिए ही डरते-डरते माँगता था ऊपर वाले से रूही को। और कुछ पलों के लिए आजतक मिलती रही रूही।
ये क्या किया था मोहित ने आजतक?????
“आज माँगता हूँ रूही तुझे हमेशा के लिए”
“देर कर दी तूने स्वीटी” रूही उठ गयी।
“चल खाना लगा”
कुछ अजीब से पल थे वो। कुछ लिखा हुआ था उन पलों में जो रूही मोहित को दिखाना चाहती थी पर मोहित को नहीं दिख रहा था। कई बार यूँ ही होता था जो आज हुआ। रूही कुछ ऐसा बोलती थी जो सिर्फ रूही सुलझा सकती थी। रूही की पहेली को सिर्फ रूही सुलझा सकती थी। डिनर पर दोनों शांत थे। सोते समय मोहित ने एक नोट दिया रूही को अपने हाथ से लिखा हुआ।
मेरी प्यारी बब्बल
तुम्हे याद हो, ये तुम्हारे सपनो कि लिस्ट तुमने बनवाई थी।
1। बारिश में भीगना था, हाथ खोल कर गोल गोल घूमना था, मोहित के साथ
2। किसी बीच पर रात के घनघोर सन्नाटे में बियर पीना, मोहित के साथ
3। खेतों में फसलो के बीच दौड़ लगाना, मोहित के साथ
4। मोहित के शहर जाना, मोहित के साथ
5। मोहित को उसके ऑफिस में देखना बैठे हुए
6। कभी इंडिया से बाहर नहीं गयी, बाहर जाना था उसे, मोहित के साथ
आज सारे पूरे कर दिए।
कुछ और हो तो बताना।
“स्वीटी तुम्हारा”
रूही को समझ नहीं आया कि वो क्या करे इस आदमी का।
क्या है ये आदमी?
पागल है?
दीवाना है?
बावला है?
कोई कैसे, कैसे कर सकता है किसी को इतना प्यार????
बस रूही ने मोहित को कस के भींच लिया, उसके माथे को चूमा और बोली,
“बस बाबा से यही दुआ है कि अब जब भी तू जिस भी जन्म में मिले पूरा मिलियो स्वीटी। तुझे आधा अधूरा देना बहुत बड़ा पाप है जो मैं करे जा रही हूँ। तेरी इस मोहब्बत मुझे डराने लगी है स्वीटी। कुछ अनर्थ ना हो जाए। बहुत डरने लगी हूँ कल से स्वीटी”
मोहित ने रूही को अपने गले से लगाया।
“सो जाओ परी”
“आजा, सोते हैं”
Ye to29 hona chahiye tha,story to kaafi badi Paheli banti ja rahi hai