रूही – एक पहेली: भाग-28
मोहित एअरपोर्ट पर इंतज़ार कर रहा था। रूही बाहर आयी तो सीधे दौड़ कर मोहित के गले लग गयी।
मोहित ने कान में कहा, “मैडम ये दुबई है, ज़रा ध्यान से”
रूही समझ गयी, अलग हुई लगेज उठाया और सवाल किया आँखों से कि कहाँ अब?
मोहित ने जवाब दिया हाथ की ऊँगली अपने सीने पर रख के कर, “यहाँ अब, आज कल और हमेशा”
होटल के रास्ते भर रूही बच्चों की तरह खुश होती रही, कभी इस खिड़की से बाहर देखे, कभी दूसरी से।
कभी एक दम से कोई बड़ी सी बिल्डिंग देखती तो चीख ही निकल जा रही थी उसकी। बार-बार थैंक्स बोलती रही मोहित को। रूही एक छोटी सी बच्ची बनी हुई थी जो गाँव के बाहर पहली बार मेले में आयी थी।
“रूही की ख़ुशी” बस यही होना था मोहित को।
रूही जब-जब ऐसे खुश होती थी, मोहित के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून छा जाता था।
“तू तो बहुत बड़ा आदमी हो गया है रे स्वीटी।, मोहित की बड़ी सी गाड़ी देख के बोली थी रूही।
मोहित मुस्कुरा दिया था। क्या होती है बड़े आदमी कि परिभाषा? जो होता है वही जानता है या जो सब खो देता है वो जानता है या जो सब पाने के बाद लुटा देता है वो।
मोहित अंदर से लुट चुका था कब का। ये गाड़ी बंगला उसे कभी अपना नहीं बना पाए, कभी नहीं बाँध पाए उसे, ज़िन्दगी की रौनके उसे कभी नहीं लुभा पायी। वो बस अटक के रह गया एक शै पर। एक पहेली में उलझ कर रह गया। रूही को सुलझाना तो अब शायद ऊपर वाले के बस की भी बात नहीं थी तो फिर मोहित तो एक बित्ता भर का था। हयात में जब दाखिल हुए तो रूही बोली,
“इतना महँगा होटल स्वीटी?”
“शांत रह”
“अरे क्या ज़रुरत है रे”
“चुप रह ना”
“ओके बाबा” फिर बोली,
“तू सच्ची बहुत बड़ा आदमी बन गया है रे, बाबा मेहर करें हमेशा तेरे ऊपर” और अपनी आँख बंद करके बुदबुदायी कुछ। होटल पहले से बुक था, सीधे इक्यावनवें फ्लोर पर जाकर लिफ्ट रुकी जो उस फ्लोर तक के लिए प्राइवेट लिफ्ट थी। उस फ्लोर पर पर सिर्फ एक ही सुइट था। लिफ्ट के बाहर निकल कर रूही मोहित के पीछे-पीछे हो गयी। सूट के बाहर लिखा हुआ था,
“Mr Mohit”
“ये तेरा खुद का है स्वीटी?”
“अबे नहीं रे कंपनी का है”
“चल झूठे, नाम तो तेरा है”
“हाहाहाहा” मोहित हँस दिया। मोहित ने रूही को कार्ड दिया खोलने को रूम। रूही ने जैसे ही अंदर कदम रखा, उसकी आँखें ऐसे फैली जैसे अभी बाहर आ जायेंगी। होटल का रूम था या एक पूरा घर। कदम रखते ही बाएँ हाथ पर एक कोने से दूसरे कोने तक काँच की दीवार, दो दीवारों से लगे हुए सोफे उनके सामने ग्रैंड पियानो। आगे बड़ी तो अंदर तीन दरवाज़े और थे।
“ये होटल है या घर तेरा?”
अंदर एक मास्टर बैडरूम था, एक म्यूजिक रूम था और था एक जिम। जिम के अंदर गयी तो छोटा सा पार्लर और मसाज रूम भी था।
“बाप रे, क्या है ये?”
मास्टर बैडरूम में पहुंची रूही तो देखा, बड़ी सी बालकनी में मोहित खड़ा हुआ सिगरेट पी रहा था।
रूही की बड़ी-बड़ी आँखें को देख कर मोहित को हँसी आ गयी।
“स्वीटी, ये कैसा रूम है रे?”
“हा हा हा” मोहित बस हँस दिया।
“अच्छा लगा तुझे?”
“अच्छा? बाप रे बाप, मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि होटल ऐसे भी होते है। कितना है पर डे?”
मोहित फिर हँसा, “पता नहीं बब्बल”
“बता ना स्वीटी”
“अरे पता नहीं सच्ची”
बात आयी-गयी हो गयी। मौसम दुबई का इन दिनों सूखा सा ही रहता था पर उमस कुछ ज़्यादा थी इन दिनों। रात को तेज़ सी बारिश हो जाती थी आधा एक घण्टे को और आज उमस कुछ ज्यादा थी। रूही आधा घण्टे तो पूरे घर में ही हाय राम, हाय राम करती घूमती रही, जब आकर बैठी तो मुस्कुरा रही थी। मोहित अपनी डेस्क पर कुछ काम कर रहा था। पीछे से आयी, गले में बाहें डाली,
“तू बहुत बड़ा आदमी बन गया रे स्वीटी” मोहित मुड़ा तो रूही ने मोहित का माथा चूम लिया। मोहित ने टेबल पर से कोई बटन दबाया और रूही का हाथ पकड़ के सोफे पर ले आया। उसकी गोद में सर रख कर लेट गया।
आज मोहित को बहुत तसल्ली सी थी, सब कुछ शांत सा, कोई हड़बड़ नहीं। रूही मोहित के बालों में हाथ फेरती रही। तभी डोर बेल बजी। मोहित ने लेटे-लेटे मोबाइल पर बटन दबा का डोर खोला। कोल्ड कॉफ़ी आयी थी रूही के लिए। मुस्कुरा दी रूही, मोहित उठा ,
“चलो कॉफ़ी पियो और तैयार हो जाओ”
“ऑफिस चलना है”
“वाकई में मीटिंग है स्वीटी? रूही मुस्कुराई?”
“हाँ रे”
“मैं झूठ भी सच्चा बोलता हूँ”
“कमीना”
“हा हा हा”
करीब एक घण्टे बाद रूही और मोहित दोनों तैयार थे। मोहित सोफे पर बैठ इंतज़ार कर रहा था जब रूही फॉर्मल्स में बाहर आयी। पहली बार मोहित ने रूही को फॉर्मल्स में देखा था। काली स्कर्ट, वाइट टॉप और काला ब्लेजर। आँखों में काजल, गले में पतली सी चेन और टॉप्स कानों में। कॉफ़ी कलर की लिपस्टिक और हील्स पहने हुए। मोहित का दिल हलक तक आ गया।ये और नया रूप। रूही को पता था, मुस्कुराई वो,
“पता था चौंक जाओगे। मैं भी चौंक गयी अपने को देख कर, काफी सालों बाद ऑफिस के लिए तैयार हुई हूँ”
“CEO लग रही हो किसी टॉप क्लास कंपनी की” मोहित बोला।
“हूँ नहीं क्या?” रूही हँसी।
“है रे, ये सब तेरा ही तो है”
“तुझे पता है, स्वीटी, मेरा सपना था जब जॉब करती थी कि बहुत मेहनत करुँगी और किसी दिन किसी कंपनी की सीईओ बनूँगी। पर घर द्वार में ऐसी उलझी की बस…” उदास सी हो गयी थी रूही थोड़ा और मोहित को रूही की उदासी बर्दाश्त कहाँ थी।
पास आया, रूही के गालों को अपने हाथों में लिया,
“सपने तो एक पल में पूरे हो जाते हैं झल्लो”
नीचे शोफर इंतज़ार कर रहा था।
“भगवान जाने कौन सी गाड़ी है”, रूही बुदबुदाई।
बीस मिनट के रास्ते में रूही बस मोहित का हाथ थामें आँखें बंद करे बैठी रही और मोहित बस मुस्कुराता रहा।
WTC दुबई में मोहित का ऑफिस था। मोहित ने रूही को हिलाया। रूही जैसे सपने से जागी। मोहित ने अपना कार्ड दिया बोला, “अड्रेस देख”
रूही ने देखा, पढ़ा, फिर मोहित की तरफ देखा,
“तो?”
“फिर देख”
रूही ने फिर देखा।
27th ब्लॉक, 6th यूनिट, 80th फ्लोर
हे भगवान! हे भगवान!!
“ये तो मेरा बर्थडेट है स्वीटी” चिल्लाई जोर से रूही।
“shhhhhhhhhhhhhhhhhhhh”
मोहित के जल्दी से रूही का हाथ दबा दिया। रूही ने ऐसा दीवानापन न पढ़ा था, न सुना, था न देखा था।
“क्या था ये स्वीटी?”
मोहित आगे चला जा रहा था बैग कंधे पर टाँगे हुए। लिफ्ट के पास रुक कर पीछे मुड़ा। रूही वहीं खड़ी थी,
मोहित ने इशारे से बुलाया। रूही मोहित के शहर में थी, इंडिया से बाहर थी, मोहित के ऑफिस में जाने वाली थी, पर अभी कुछ और बाकी था।
लिफ्ट रुकी, अस्सीवें फ्लोर तक वही लिफ्ट जाती थी। लिफ्ट के बाहर अटेंडेंट था, उसने मोहित का बैग लिया और दरवाजा खोला। रूही ने अंदर कदम रखा तो पूरा स्टाफ खड़ा था जैसे रूही का इंतज़ार कर रहा था। ढेर सारे क्यूबिकल्स थे, करीब सौ के आसपास। मोहित सीधे अपने रूम में चला गया पर सारे स्टाफ ने रूही को घेर रखा था। सब इतने आदर और प्यार से बात कर रहे थे जैसे बहुत पहले से जानते हो रूही को। रूही को कुछ अजीब सा लगा, सोचा स्वीटी से पूछेगी। उसी फ्लोर से ऊपर की और सीढ़ियाँ गयी हुई थी, अटेंडेंट ने रास्ता दिखाया और रूही सबको हेल्लो करती हुई आगे निकल ली। पूरे फ्लोर की दीवारें काले सफ़ेद रंग की कुछ पेंटिंगस से भरी हुई थीं। हलकी हलकी कुछ तस्वीरें। रूही ने ध्यान से देखा तो फिर चौंक गयी।
उसके झुमके,
उसकी चूड़ियों वाली कलाइयाँ
उसके कंगन वाली कलाइयाँ,
उसकी आँखें,
उसके हवा में उड़ते हुए बाल, उसकी शक्ल के अलावा सब कुछ था उन दीवारों में। ये कहाँ आ गयी थी वो। कुछ नहीं समझ पा रही थी रूही। ये कैसी दीवानगी थी स्वीटी की। जिसमें कुछ न हासिल होते हुए भी उसने सब हासिल कर लिया था। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जान हलकी हुई जा रही थी उसकी कि पता नहीं अब क्या देखना बाकी रह गया है। ऑफिस के कमरे के बाहर नेम प्लेट की जगह लिखा हुआ था “घर”….
अंदर गयी तो मोहित बीच कमरे में खड़ा इंतज़ार कर रहा था। सीधे अपनी बाँहों में भर लिया।
“कभी नहीं सोचा था रूही कि ये सब दिखा पाउँगा तुझे। आज मेंरे सपनो में और पर लगा दिए तूने, अब तो मैं दुनिया भी जीतने के ख्वाब देख सकता हूँ”
रूही सन्नाटे में खड़ी हुई थी।
“ये ऑफिस है स्वीटी?”
“हाँ”
“नीचे दीवारों पर, वो सब?”
“तुम हो रूही, यहाँ, वहाँ, सब जगह”
“तू पागल है रे स्वीटी”
उस फ्लोर पर सिर्फ मोहित का रूम था, तीन बड़ी-बड़ी दीवारें काँच की। सिर्फ मोहित के सामने वाली दीवार पर एक बड़ी सी स्क्रीन लगी हुई। किसी और दीवार पर कुछ नहीं। बड़ी सी टेबल और सामने दो कुर्सियाँ। रूही का हाथ पकड़ कर मोहित लेकर आया और अपनी कुर्सी पर बैठा दिया। रूही की आँखें नम हो चली थी। मोहित के चेहरे पर ऐसी चमक कभी पहले नहीं देखी थी उसने। रूही की आँखों पर मोहित ने धीरे से अपना हाथ रखा। फिर एक सेकंड बाद आँख खोली तो कमरे में अँधेरा था।
धीरे से स्क्रीन पर वो तस्वीर उभरी जो मोहित ने सबसे पहले अपने मोबाइल से ली थी और फिर अगले पंद्रह मिनट मोहित ने वो पूरी ज़िन्दगी स्क्रीन पर उतार का रख दी जो उसने रूही के साथ जी थी। कुछ वो तस्वीरें जो रूही ने आजतक नहीं देखी थी। वो स्क्रीनशॉट जो पता नहीं मोहित ने कब ले लिए थे। मोहित रूही के पीछे खड़ा था,रूही उसका हाथ जकड़े हुई थी। आँखों से एक टपका, फिर दूसरा टपका। मोहित ने लाइट जला दी और रूही को उठा लिया कुर्सी से। अपनी बाँहों में भर लिया। रूही ऐसे गले लगी हुई थी जैसे कभी अलग ही न होना चाहती हो। मोहित के रूम में फ़ोन पर एक अलग सी टोन आयी। मोहित ने फ़ोन पर कुछ टाइप किया और बोला। चलो लंच करते हैं सब इंतज़ार का रहे हैं। नीचे कैंटीन थी, सब साथ ही खाते थे, ऐसा मोहित ने बोला था। नीचे आयी तो सामने एक बड़ा सा केक रखा था।
“वेलकम बैक टू ”घर” लिखा था।
तो यहाँ सब को पता था कि वो कौन थी। क्या-क्या पता था?
सहमी हुई, सकुचाई सी रूही ने केक काटा। ढेर सारी तालियां हुई और फिर लंच हुआ। मोहित के साथ रूही फिर ऊपर आ गयी। मोहित दीवार से बाहर देखता हुआ कुछ सोचता हुआ खड़ा था। रूही मोहित की कुर्सी पर अब किसी नए पल के इंतज़ार में थी।
आज तो आप चौंका दिये एकदम… रईसी का अद्भुत वर्णन के साथ रूही और मोहित के विस्मय, हर्ष आदि को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया आपने… एक दम फिल्म की तरह चल रहा था दिमाग में… गाड़ी… बिल्डिंगें… और भावों का अनूठा संयोजन आनंद आ गया…
अगले भाग की प्रतीक्षा में… 🙏
Mujhe to laga tha ki Saturday Sunday off ho shayad, lekin…..
Thank you…
shrimaanshimaan@gmail.com