रूही – एक पहेली: भाग-27

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1 जून 2017

“बताओ भाई कैसे मैंनेज करोगे”
“आप ही सजेस्ट करो कुछ”
“ह्म्म्म….”
“मुझे भी नहीं समझ आ रहा”
“इम्पोर्टेन्ट दोनों ही बात हैं, ऐसा मौका नहीं आयेगा फिर”
“समझ रहा हूँ सर”

रौशन और मोहित के बीच कुछ गहन मश्वरा चल रहा था। अठारह जून को मोहित ने रौशन को फ़ोन कर के बोला था कि वो सिंगापुर में एक ऑफिस खोल रहे हैं और चाहते हैं कि रौशन वहाँ जा कर देख कर आये इंतज़ाम। आगे बातचीत में पच्चीस जून को जाना तय हुआ। करीब दो घंटे बाद मोहित ने टिकट और होटल की बुकिंग रौशन को मेल कर दी। रौशन को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि ऊपर वाला इतना कैसे मेहरबान हो गया है। मोहित ने ये भी कहा कि अभी कुछ फाइनल नहीं हुआ है, पहले रौशन मार्किट का सर्वे कर आये, अपनी रिपोर्ट तैयार करे तब ही बात कुछ आगे बढ़ेगी। रौशन का मना करना बनता ही नहीं था। रात को ही उसने रूही को खुशखबरी दी तो रूही भी भौचक्की रह गयी

उसी समय उसने मोहित को टेक्स्ट किया,“इतना कुछ क्यों कर रहा है रे मेरे लिए स्वीटी”
“तेरे लिए नहीं रे, अपने लिए कर रहा हूँ, हमारे लिए कर रहा हूँ”

पर इक्कीस जून को रोशन को फिर एक धमाका हुआ। पच्चीस जून को ही दुबई में एक गारमेंट्स की इंटरनेशनल कांफ्रेंस की डिटेल्स के साथ एक आर्डर आया। तीस लाख का का आर्डर था जिसकी लागत सब मिला कर के कुछ अठारह लाख थी, यानि की बारह लाख का सीधा प्रॉफिट था। जितना रौशन एक साल में कमाता था उतना सिर्फ एक आर्डर में मिल रहा था । रौशन के तो होश ही उड़ गए। मुश्किल ये ऑन पड़ी थी कि डेट्स क्लेश कर रही थी। रोशन को उस कॉन्फ्रेंस में अपने कस्टमर से मिल के डील पर साइन करने थे और कुछ माल दिखाना था।

बस इसी सिलसिले में ये ऊपर वाली बातचीत हो रही थी।
“तो फिर क्या करना है रौशन?”
“आप ही बताओ”
“देखो यार एक तरफ ईज़ी मनी है और एक तरफ फ्यूचर”
“वो तो है सर जी”
“तुम्हारा पार्टनर है कोई फर्म में?”
“हाँ जी रूही को बनवाया था ना आपने?”
“ओह हाँ”
“सर जी ऐसा नहीं हो सकता कि मैं रूही को दुबई भेज दूँ और खुद सिंगापुर चला जाऊं?”
“हम्म्म्म”
“हो सकता है सर जी ऐसा?”
“कह नहीं सकता मैं कि रूही हैंडल कर पायगी या नहीं”
“सर आप प्लीज थोड़ी हेल्प कर देना”
“अरे प्लीज न बोलो, क्या हेल्प चाहिए?” मोहित मुस्कुरा रहा था।
“सर जी, आपको उन कांफ्रेंस में थोड़ा रूही के साथ जाना होगा, आप पढ़ कर चेक कर लीजियेगा कागज़, वो साइन कर देगी”
“हम्म्म्म”
“सर जी प्लीज”
“अरे ऐसा न कहो भाई, पर आप पूछ तो लो रूही से कि वो आ पायगी?”
“अरे सर आप हाँ करो, मैं रूही को मना लूंगा। तीन चार दिन की ही तो बात है”
“अच्छा मुझे अपना प्रोग्राम चेक करने दो, शाम को बताता हूँ” मोहित ने फ़ोन काट दिया, कुर्सी से सर टिकाया, सिगरेट निकाली।
नटवर लाल के छलावे से कौन बचा था आजतक। क्या प्रोग्राम चेक करना था उसको। सारा प्रोग्राम उसी ने बनाया था, मेल उसी ने रौशन को डाली थी एक नयी फर्म के नाम से, उसी ने डेट्स फिक्स की थी सिंगापुर सर्वे कि जिस से दुबई कांफ्रेंस की डेट्स क्लेश करती।

मोहित ने रूही की लिस्ट निकाली।

1. बारिश में भीगना था, हाथ खोल कर गोल गोल घूमना था, मोहित के साथ
2. किसी बीच पर रात के घनघोर सन्नाटे में बियर पीना, मोहित के साथ
3. खेतों में फसलो के बीच दौड़ लगाना, मोहित के साथ
4. मोहित के शहर जाना, मोहित के साथ
5. मोहित को उसके ऑफिस में देखना बैठे हुए
6. कभी इंडिया से बाहर नहीं गयी, बाहर जाना था उसे, मोहित के साथ
7. स्कूबा डाइविंग करनी है, मोहित के साथ
8. डिस्को जाना है,मोहित के साथ

एक झटके में रूही के सारे सपनो को साकर कर देने का प्लान था मोहित का। मोहित कभी भी कुछ छोटे स्केल पर नहीं करता था । मोहित जो करता था वो बस आसमानी होता था, जूनून वाला, दीवानेपन वाला…

सच्चा प्यार तो आपको जनाब, हर गली के नुक्कड़ पर सब्ज़ी ख़रीदता मिल जायगा और मोहब्बत किसी सिनेमाघर के कोने वाली सीट पर आहें भरती मिल ही जाती है मैंटनी शो में। बस नहीं मिलता है तो इश्क़ जो असल में कमबख़्त भी है और कमीना भी पर अगर मिल गया तो यक़ीन जानिए कि आपको फ़ना होने में उतना वक़्त भी नहीं लगेगा जितना आप एक बुलबुले को छूकर, उसको नेस्तनाबूद करने में लगते हैं।
और जूनून??
उसका तो कोई ना ओर है न छोर, ना आदि, ना अंत उसको बखान कर पाना तो शायद मुमकिन ही नहीं..

अभी रूही को कुछ नहीं पता था। शाम को मोहित के पास रौशन का फ़ोन आया,
“सर जी कुछ हुआ?”
“अभी देखा नहीं मैंने, रात को बोलता हूँ”
पैसे की खनक आदमी को अँधा बना देती है, कुछ नहीं दिखता। रौशन को भी कुछ नहीं दिख रहा था।
रात रौशन ने फिर फ़ोन किया,शायद पीये हुए था और रूही भी साथ थी। खूब दुआएं दी मोहित को कि आप जब से मिले दुनिया ही बदल गयी।आपने हमारे परिवार को कहा से कहाँ पहुंच दिया। आप नहीं होते तो क्या होता, आप भगवान् हो ,मेरा सब आपका है।
मोहित का मन हुआ पूछे,
“रूही भी?”

फिर रौशन ने रूही को फ़ोन थमा दिया । थैंक यू सर कह कर रूही ने फिर से रौशन को फ़ोन थमा दिया। मैंने चेक कर लिया है रौशन, कुछ मीटिंग्स है पर मैं वक़्त निकाल लूंगा थोड़ा।

“थैंक यू सर, थैंक यू सर, थैंक यू सर, थैंक यू सर, थैंक यू सर…..” दारू थैंक्स देती रही मोहित को।
रूही के टेक्स्ट आये जा रहे थे, “तू बाज नहीं आयेगा स्वीटी”
“कमीना है रे तू”
“कितना ड्रामा करता है रे”
“कोई क्रिमिनल है क्या तू?”
“इतनी प्लानिंग करता है”
‘क्यों रे?”

मोहित ने एक जवाब दिया,

“तेरे लिए बब्बल’

24 जून 2017

रूही और रौशन साथ निकले घर से, रास्ता एक ही था पर मंज़िल अलग अलग। रौशन जा रहा था सिंगापुर और रूही आ रही थी दुबई । रौशन रास्ते भर समझाता रहा कि मोहित सर का अच्छे से ध्यान रखना और उनको नाराज़ नहीं करना।

“ये नाराज़ नहीं करना” वाली बात से बहुत नफरत थी रूही को, उसे इस बात के मायने पता थे पर इस बार वो नाराज़ नहीं हुई।
“मैं ध्यान रखूंगी आपके मोहित सर का रौशन, आप फ़िक्र न करें” और बहुत बड़ी वाली स्माइल रूही के चेहरे पर फ़ैल गयी।
एयरपोर्ट पहुँच कर रूही ने मोहित को टेक्स्ट किया, “आ रही है तेरी बब्बल”
जवाब आया , “आ जा’
मोहित और रूही के सपनो की दुनिया फिर बसने वाली थी कुछ वक़्त के लिए और अब ये घंटो के लिए नहीं कुछ दिनों के लिए बसने वाली थी। ऊपर वाला मोहित को अच्छे दिन दिखा रहा था जिस से कुछ दिनों बाद फिर से एक नया खेल रचाये।

कुछ नया सा करने का मन होगा ऊपर वाले का भी..
डुगडुगी शायद बिना बजे बोर होने लगी थी …

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

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