रूही – एक पहेली: भाग-21

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मोहित को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है।
रूही उठी और वाशरूम की तरफ बढ़ गयी।
“जन्मदिन मुबारक हो हीरो”

दूर से रूही की आवाज़ , पास आती सुनाई दी। और फिर पीछे से आकर रूही ने ढेर सारा गुलाल मोहित के गालों पर मल दिया। मोहित भड़भड़ा कर उठा , चेहरे से गुलाल साफ़ किया। आँखे खोली और पीछे से रूही ने फिर गुलाल मल दिया। मोहित थोड़ा पीछे हटा, उसे समझ नहीं आ रहा था। आँखें खोली तो सामने रूही। बिकनी में उसके सामने। हैरत से मोहित की आँखें खुली की खुली रह गयी। रूही को ऐसे न कभी देखा था और ना सोचा था , सपने में भी। हाँ, सपनो में भी वो साड़ी में ही आती थी। सामने रूही बिकनी में खड़ी, वही एक होंठ को दांतों से चबाती हुई। आँखों में कुछ खतरनाक सा तैर रहा था उसकी।

मोहित को जब तक होश आता तब तक रूही सामने उसके बैठ चुकी थी।
बाएँ पैर को दाएँ पैर पर चढ़ा कर, गॉगल्स सर पर अटकाए हुए, मुस्कुराती हुई।
“जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान”
मोहित को ना अपनी आँखों पर भरोसा हो रहा था और ना कानों पर। अभी दस मिनट पहले ही उसकी ज़िंदगी बर्बाद करके रूही अंदर गयी थी। उसकी ज़िंदगी से सारे रंग चुरा कर चली गयी थी और अब उसके सामने फिर बैठी थी रंगो का गुलदस्ता बनकर सारे फूल मोहित पर लुटाने के लि ।
रूही नाम था उसका , पहेली – एक , अनसुलझी सी जिसे मोहित पिछले नौ साल से सुलझाने की कोशिश में लगा था और खुद उलझता जा रहा था। वेटर बियर की बोतल सामने रख गया। रूही ने बोतल उठाई ,
“चियर्स डार्लिंग” और गटागट करके आधी बोतल एक बार में अंदर ।
मोहित बुत की तरह से बैठा था , रूही उठी। इस तरह रूही को पहली बार देखा था मोहित ने।
आँख हटाना नहीं चाहता था और देख पाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ताम्बई रंग था रूही का , पास आई ,कान के पास मुँह किया , कान में सरगोशी सी की,

“मैं ही हूँ तुम्हारी रूही, बेबी…सपना नहीं है ये …देखो, छूकर ,मुझे” फिर मोहित के कान को हलके से काटा।
“यकीन हुआ ना अब मेरी जान को?” मोहित के रोंगटे खड़े हो गए। एक झुरझुरी सी छा गयी , हिल सा गया। रूही फिर सामने बैठी थी। अब दाएँ पैर को बाएँ पर रखे हुई थी। सामने मोहित की जान निकली हुई थी। प्लेट पर से काजू उठाने को झुकी , मोहित की नज़रें फिर रूही के ऊपर।
रूही के झुकने से जो नुमायां हुआ वो मोहित के चेहरे पर पसीना ले आया। अचानक रूही ने प्लेट पर झुके-झुके नज़रें ऊपर की, एक आँख दबाई, फिर बोली,
“ज़िंदा हो अभी तक जान?????”

तो ये सब रूही का ड्रामा था???मोहित की समझ में सब आ रहा था अब। वो फ़ोन करना, ढेर सारे टेक्स्ट, फ़ोन न उठाना, जवाब न देना, और फिर फ़ोन बंद कर देना।
रूही को पता था कि मोहित को कैसे अपने जाल में फंसाना था।

रूही ने फिर जाल बिछाया था और मोहित एक मासूम से पंछी की तरह से फंसता चला गया। रूही की बोतल सामने खाली हो चुकी थी। धूप जा रही थी , पूल में वो जोड़ा अभी भी अपने में मग्न था।
बच्चे अब पूल से निकल कर दूसरी तरफ लॉन में चले गए थे जहाँ डीजे लगा हुआ था। इक्का दुक्का ही लोग थे अब पूल के आसपास। शायद बारिश भी होने वाली थी,ऊपर वाले का भी मन था आज होली का।
“कैसी रही सर जी?” रूही बोली
“बकवास”, मोहित का गुस्से से जवाब आया ,कस के ठहाका लगाया रूही ने।
“हर बार तुम्ही जीतो हीरो ऐसे थोड़ी ही होगा, सौ सुनार की और एक लुहार की सुना हो ना? बस आज मैंने सब बराबर कर लिया” मोहित को अब गुस्सा आने लगा था।

“तुझे पता है पिछले बारह घंटो में मेरा क्या हाल हुआ है? सौ बार मरा हूँ पर तुझे क्या, तुझे तो अपने मन की ही करनी होती है ना?”
रूही मुस्कारए जा रही थी।
“हँस मत, मैं गुस्सा हूँ”
“हाय-हाय, क्यों रे ? पसंद नहीं आई मैं तुझे?” रूही का चुहलपना बढ़ रहा था, मोहित का गुस्सा कम हो रहा था।
“अच्छा बताओ कैसे गुस्सा कम करूँ? यहीं सज़ा दोगे या पूल में” रूही ने फिर आँख फड़काई अपनी। लगता है आज वो क़त्ल का मूड बना कर आई थी। हर बात पर उसका जवाब का इशारा कुछ और होता था।
“मुझे नहीं सुननी कोई बात तेरी, तू बहुत गन्दी है”
“अच्छा बाबा ना सुनो, पर देख तो लो ना यहाँ” नहीं मान रही थी आज रूही। उठी, फिर से पास आने को हुई मोहित के तो मोहित खड़ा हो गया। जाने को हुआ तो रूही ने पास खींच लिया।
एक दम पास आ गयी सामने मोहित के और उसने दोनों हाथ मोहित की कमर में डाल दिए।
“हाज़िर है बंदी”
बियर महक रही थी रूही की साँसों से, बातों से और आँखे लाल थी।
“जो चाहे सज़ा दे लो जान ,जो चाहो , जैसे चाहो , जैसा मन हो, जितना मन हो”
मोहित तपने लगा था। रूही की बाहों की क़ैद से अपने को आज़ाद किया, टेबल पर रखा हुआ गुलाल उठाया और रूही के गालों पर मल दिया। रूही ने आँखें बंद कर ली थी । रूही को रंगने की शुरुआत हो चुकी थी। रंगने आई थी मोहित को रूही या खुद रंगना चाहती थी। होना क्या था, हो क्या रहा था और होने क्या वाला था।

बारिश एक दम झम्म से शुरू हो गयी। रूही ने मोहित का हाथ पकड़ा और दौड़ कर शेड में आ गई ।
बारिश आज तेज़ ही होनी थी , बहुत तेज़ और सब कुछ बह जाने वाला था।

ऊपर वाले का शायद ऐसा ही इशारा था। रूही अंदर गयी और मोहित के लिए शॉर्ट्स ले आई।
“यहीं बदलोगे या अंदर जाना है?” कहाँ बाज आने वाली थी रूही ।
मोहित इस रूप में रूही को देख कर दंग हो चुका था, अंदर गया और हिचकते हुए बाहर आया।
शार्ट में रूही के सामने आना बहुत बड़ी बात थी, पर आज सुबह से जो कुछ हो रहा था उसके सामने मोहित का रूही के सामने शार्टस में आना कुछ भी नहीं था। मोहित को रूही ने देखा और मुस्कुरा दी।
“जवानी गयी नहीं हीरो तेरी अभी तक” फिर आया एक डायलाग रूही का।
आज मोहित के मुँह से एक भी जवाब नहीं निकल रहा था। रूही की उस बिकनी ने मोहित के मुँह पर ताला लगा दिया था। रूही ने मोहित का हाथ पकड़ा, दौड़ लगायी और दोनों सीधे पूल में। मोहित का हाथ पकड़े-पकड़े तैरते हुए पूल के दूसरे किनारे पर गयी जहाँ बार था। दोनों हाथ पूल के प्लेटफॉर्म पर टिकाये और बियर का इशारा किया। वेटर जादू के ज़ोर की तरह हाज़िर हुआ एक दम। एक बोतल मोहित के हाथ में एक रूही के हाथ में। बारिश और तेज़ हो गयी थी। कोने वाला जोड़ा थक गया था शायद और थकान उतारने अपने घोंसले में गायब हो गया था। डीजे की आवाज़ में होली का मौसम घुला हुआ था,हो ली वाले गानो की लिस्ट में से कुछ अपने मन से लगा दिया था।

“खेलें दुःख सुख आँख मिचोली ,यारा रंग है उसका न्यारा।
प्याला छिड़के अपने करम का ,रंग दे सब संसारा। ।
मेरा मुर्शिद खेले होरी,
मेरा मुर्शिद खेले होरी। ।

मोहित अब थोड़ा संभल चुका था।
पूल के अंदर दोनों सीढ़ियों पर बैठ चुके थे। सीने तक दोनों पानी में डूबे हुए थे ।
“क्या था ये सब रूही?” अब मोहित के मुँह से बोल फूटे
“बस मेरा मन था तेरा जन्मदिन मनाने का”
“मेरा जन्मदिन? आज थोड़े ही ना है”
“आज ही है इडियट, तूने बताया था ना कि होली वाले दिन पैदा हुआ था तू”
अब मोहित के चौंकने की फिर बारी थी। तो ये माज़रा था इसलिए गुलाल लगते हुए वो बोली थी।
रूही ने ये सब मोहित के जन्मदिन के लिए किया था। कभी बताया था मोहित ने की हिंदी तिथि के हिसाब से उसका जन्मदिन होली वाले दिन पड़ता है और आज रूही ने उसके सौ सरप्राइज के बदले में एक सरप्राइज से सब बदला निकाल लिया था। रूही ने अपनी बोतल खत्म की और मोहित को उसी कोने में छोड़ कर तैरती हुई दूर के कोने में चली गयी।

मोहित ने कभी न सोचा था और न कभी पूछा था की क्या रूही को तैरना आता है। दिख रहा था कि बहुत अच्छे से तैर लेती थी। अच्छों-अच्छों को डुबो देने की ताकत थी रूही में इस तरह बिकनी में तैरते हुए। रूही का रोज़ जिम जाना बेकार नहीं गया था। इस मूरत पर ऊपर वाले ने नक्काशी करते हुए कुछ ख़ास रहमत बरती थी। सारी बारीकियां तरीके से,सलीके से अपनी जगह आज भी थी। वक़्त की मार ने इस मूरत को अभी भी बेरंग नहीं किया था। जिन-जिन कंगूरों को जहाँ जितना होना था, सब सलीके से,अपनी-अपनी जगह चाक चौबंद। कहीं कुछ नक्काशियां ज़्यादा नुमायां थी, ज़्यादा , थोड़ी सी ज़्यादा।
मोहित को जो भी पसंद था ज़्यादा ही पसंद था। रूही को भी पता था ये शायद। जलपरी को भी मात कर देने पर उतारू थी आज रूही। अपने वो सारे करतब दिखाने के बाद फिर रूही पास आई मोहित के।
बियर मोहित के हाथ से ली, खाली की बची हुई , आँख दबाई।
“और कुछ देखना है हीरो?” फिर हंसी और दूर तैरती हुई चली गयी ।
मोहित को वो जलपरी भा गयी थी। पर जलपरी आज शिकार करने खुद आई थी ये मोहित को नहीं पता था। मोहित को उसके ही जाल में उलझIते हुए जलपरी पास आई और खींच कर पानी में ले गयी।
“पसंद आया गिफ्ट हीरो?”
“बस इतना ही है?”अब मोहित की बारी थी ।
“नहीं और भी है,”खिलखिलाई रूही
“वो कब मिलेगा । ”
“जब कहो । ”
“अभी?”
“ले लो”

मोहित पास गया, रूही को बाँहों में लिया और अपने होंठ रूही के होंठो पर सटा दिए। बारिश आग लगा देती है अगर भीगने वाले दो जवां जिस्म हों तो और अगर वो दो जिस्म प्यासे हों तो वो आग को निगल ही जाते हैं। मोहित के दोनों हाथों ने रूही के दोनों हथेलियों को कस के जकड़ा हुआ था। आँखे दोनों की बंद कब से थीं। रूही के नाख़ून मोहित के हथेलियों पर गड़े जा रहे थे। कुछ पल बाद जब मोहित अलग हुआ तो हाँफ रहा था , रूही ने आँखे खोली और फिर दिखा कमीनापन उन आँखों में ।
“थक गया मेरा हीरो??” कब किस मर्द को बर्दाश्त हुआ है ये सवाल । इस बार मोहित ने रूही को तब अलग किया जब रूही छटपटाने लगी। मोहित के होंठ जब उसके होंठों से अलग हुए तो रूही की आँखें बाहर आने को थी।
“कुत्ते दम घोंट के मार देगा ? माफ़ कर मुझे, मैंने क्यों पंगा ले लिया”

अब मोहित की कहकहे लगाने की बारी थी।
“और कुछ मेरी जान को होना?” मोहित ने आँख मारी।
“मेरे बाप की तौबा, तू तो शिकारी कुत्ता है। इतने में ही जान निकाल दी”

पूल के रंग में रंगी रूही एक पेंटर का एक कैनवास लग रही थी जिस पर किस बच्चे ने पेंट का डब्बा गलती से गिरा दिया हो। बारिश जैसे आज सब कुछ तबाह करने पर उतारू थी। रूही पूल से निकली, बाहर खड़े हो कर उसने मोहित को बुलाया पर मोहित अब बाहर अIने को तैयार नहीं था। उसने इशारे से रूही को अंदर बुलाया। रूही ने गर्दन दाएँ बाएँ हिला कर मना कर दिया।
“प्लीज ???”
“नो”
“प्लीज जान”
“नो”
“आ जाओ ना थोड़ी देर”
“नो मीन्स नो, इत्ते पैसे में इत्ता ही मिलेगा बाबूजी”

1 thought on “रूही – एक पहेली: भाग-21

  1. ये हिन्दी वाला कैलेंडर भी माने तो अपने भारत में आदमी दो बार अपना जन्मदिन मना ले… ई तो गजब कांसेप्ट है… खैर हमरे यहाँ एक ही नहीं मनता.. दो ठो कौन कहे…
    ई पहेली पूरा पढ़ने पर ही सुलझेगी… हर भाग में चौंका जाती है ये रूही…
    अगले भाग का इंतजार रहेगा…

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