रुही – एक पहेली: भाग-18

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13 फरवरी 2017
शबाना का बुके …रूही का टेक्स्ट..
“तू आएगा ना स्वीटी”
आप जानते हैं ना कि कुछ चीजों को ज्यादा देर “स्टेंड बाई” मोड पर छोड़ देने से वो खुद ही ऑफ हो जाते हैं।
“रिश्ते’ उनमें सबसे पहले आते हैं”

मोहित रूही को स्टैंड बाई मोड पर ज़्यादा देर तक नहीं छोड़ सकता था।

13 फरवरी 2017
उस रात मोहित ने खाना खाया,शबाना को थैंक्स कहा। शबाना की आँखों ने उस दिन,बहुत सालों बाद फिर कुछ कहा था ।सोने से पहले फिर मोहित के कमरे में आई।
मोहित चौंका, ये तो वही नाइटी है जो उस रात मोहित ने शबाना को दी थी। चार साल पहले उसके जन्म दिन पर जिस रात से वो दोनों अलग हो गए थे।
“काम कर रहे हो मोहित?”
“हाँ शबाना” मोहित लेपटॉप बंद करने वाला था, नहीं किया , शबाना से नज़रें नहीं मिलाईं।
जब दिल नहीं मिलते थे तो नज़रें क्या मिलाता। फालतू में टाइप करता रहा। शबाना थोड़ी देर बैठ रही सामने, फिर उठी, गहरी साँस ली और चली गयी। मोहित ने आँखें बंद, लाइट बंद की और सोने की कोशिश में लगा गया । पर आँखों के सामने कभी शबाना का बुके और कभी रूही का टेक्स्ट घूम रहा था।

“तू आएगा ना स्वीटी” आखिरकार मुस्कुराया।
एक करवट ली कुछ बुदबुदाया और सो गया।
सुबह अलार्म से आँख खुली तो फटाफट तैयार हुआ और निकल गया।

“कृपया अपने पेटी बांध ले, कुछ ही देर में आप पुणे इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर उतरने वाले है”

मोहित की आँख खुल गयी ,पुणे आ गया था। उसने तय कर लिया था कि जीना है फिर से।
ड्राइव करते-करते सुबह जब मोहित के दिल ने दिमाग पर डकैती डाल दी तो मोहित ने गाड़ी हवाई अड्डे पर मोड़ दी थी और 4 घंटे बाद वो पुणे हवाई अड्डे के बाहर खड़ा था।
दीवाना फिर जाग गया था।

14 फरवरी थी भाई, पहला वैलेंटाइन था मोहित और रूही का। कुछ स्पेशल तो बनता था ना।
“चल भाई मोहित कुछ मज़ेदार सा करते है” मोहित बुदबुदाया

लाइफ बहुत बोरिंग सी हो रही थी और बोरिंग सी लाइफ में मोहित की साँस घुटने लगती थी।
सिगरेट जलाई , कुछ सोचा और रूही के डैड को फ़ोन मिलाया। उन्हें वो तब से जानता था जिस दिन रूही ने मोहित को पहली बार फ़ोन किया था। रूही का कोई दूर का कज़िन मोहित की कंपनी में था और उसके ट्रांसफर के लिए मोहित को कॉल किया था। बातो-बातों में पता चला था कि रूही के पिताजी कभी रांची रहे थे किसी ज़माने में । बस सिलसिला निकल पड़ा था, गाहे बगाहे मोहित रूही के डैड को फ़ोन कर लेता था। रिटायर्ड बन्दे थे घूमने फिरने के शौक़ीन थे, मोहित अपने कॉन्टेक्ट्स से उनकी ट्रेवलिंग को आसान बना देता था। वो भी पुणे में ही रहते थे और साल में एक आध बार मोहित उनसे मिलने चला जाता था। रूही के डैड ने फ़ोन उठाया, यहाँ वहाँ की बाते हुईं और फिर उन्होंने कहा कि,
“हाँ बेटा मोहित देख लो, अगर हो जाए तो हेल्प ही हो जाएगी थोड़ी”
“जी हो जाएगा पापा जी”
पहला तीर निशाने पर लगा था। मोहित ने होटल फ़ोन किया , होटल वही “रेडिएंट”।
मोहित की ज़िंदगानी में हाहाकार मचा देने वाला होटल। होटल पहुँचा जब तक रूही के 18 टेक्स्ट आ चुके थे । कुछ तो वही कि,
“तू आएगा ना स्वीटी”
“तू आएगा ना स्वीटी”
“तू आएगा ना स्वीटी”
फिर
“मुझे पता है कि तू आएगा”
“आ रहा है ना”
इतना पागल मोहित ने रूही को कभी नहीं देखा था।
“आजा ना स्वीटी”
“जवाब क्यों नहीं दे रहा?”
“तू है कहाँ?”
“पागल जवाब दे”
“तू आ रहा है ना?
“बता ना”
“मत आ”
“अब कभी बात ना करियो मुझसे”
“क्यों कर रहा है ऐसे तू?”
“मैंने पहली बार बुलाया है तुझे”
“कहाँ है?
“अब कभी मत आइयो”
“जवाब तो दे स्वीटी”
मोहित मुस्कुराया , लिखा टिकट नहीं मिल पाये, सॉरी। बाद में बात करता हूँ, अभी मीटिंग में हूँ।
एक दम से रिप्लाई आया , “कॉल मी”

मोहित ने शबाना को टेक्स्ट किया।
“अचानक से इंडिया में काम आगया है शाम को पार्टी में नहीं आ पाउँगा, माफ़ कर देना”
फिर एक फ़ोन किया उस नंबर पर जो रूही के डैड ने दिया था।
“हूँ, हाँ, हाँ जी, ठीक है, बढ़िया है, हो जाएगा”
“ओके, बारह बजे मिलते हैं?”
मोहित ने टाइम देखा, साड़े दस हो गए थे। आधा घंटे में तैयार हुआ, टैक्सी बुलाई और निकल गया।
रूही के टेक्स्ट पर टेक्स्ट आ ये जा रहे थे।
“कॉल मी”
“कॉल मी”

“कॉल मी”

“कॉल मी”
“कॉल मी”
“कॉल मी”
“पिंग”
“पिंग”
“पिंग”
“पिंग”
“पिंग”

फिर एक टेक्स्ट शबाना का भी आया, “कोई ना, मोहित, मेरी किस्मत ”
मोहित ने जवाब नहीं दिया ,क्या तो भी जवाब देता। किस्मत किसकी किसके बस में रही है।
रूही का फिर टेक्स्ट आया , “अब कभी शक्ल नहीं दिखाउंगी तुझे आज के बाद”
मोहित ने फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया।

बेल बजी रूही के घर की।
एक बार ,दो बार।
“कौन है????” रूही किचन से चिल्लाई।
“मैं, रौशन” खुला है ना यार, अंदर आ जाओ।
रौशन अंदर आ गया। पल्लू, साड़ी के कोने में खोंसती हुई रूही बाहर आई किचन से तो पानी की ट्रे हाथ से गिरते गिरते बची। सामने सोफे पर मोहित बैठा था। वही कमीनी मुस्कराहट लिए हुए।

एक दम से सम्भाला रूही ने अपने आप को । ट्रे टेबल पर रखी और एक दम से किचन में वापिस।
दीवार से टिक गयी ,साँस रुक सी गयी , पसीना माथे पर , अपने हाथ में च्यूंटी ली , सपना नहीं था।
“ये स्वीटी ही था क्या?”
फिर धीरे से फ्रिज के पीछे से झांकर देखा , स्वीटी ही था।
रूही को तो काटो तो खून नहीं ,आँखें वही बड़ी-बड़ी।
“ये क्या कर रहा है यहाँ?”
“कब आया?”
“रौशन को कैसे जानता है?”
रूही की जान निकली हुई थी ,सम्भाला उसने, पल्लू ठीक किया। एक पानी का गिलास और लेकर आई मोहित के सामने रखा और साथ में बैठ गयी।

“ये मोहित हैं, डैड के जानने वाले, दुबई में रहते हैं”, रौशन ने बताया।
“हम्म्म”,रूही बोली
“इंडिया आये हुए थे काम के सिलसिले में”
“ओके”
“एक्सपोर्ट का काम है”
“हम्म्म्म”
रूही कनखियों से मोहित को देख रही थी । फ़ोन निकाला, मोहित को टेक्स्ट किया।
“कुत्ता है तू, मार डालेगा किसी दिन देखना तू मुझे”
“हार्ट फेल करवा के दम लेगा तू कमीने”
मोहित की पॉकेट में वाईब्रेट हुआ फ़ोन, वो समझ गया पर उसने फ़ोन नहीं निकाला। रूही उठ गयी वहाँ से और फ्रिज के पास से इशारा किया कि फ़ोन उठा। मोहित ने टेक्स्ट पढ़ा और रिप्लाई में एक स्माइली भेज दी ।

रूही ने बुलाया था , मोहित कैसे ना आता।
मोहब्बत ने बुलाया था, कैसे ना आता।
किस्मत ने दस्तक दी थी, कैसे ना खोलता दरवाज़ा।
वक़्त ने करवट ली थी, कैसे ना कसमसाता मोहित।
ऊपर वाले ने अपनी डुगडुगी फिर बजायी थी , कैसे ना कान खड़े होते मोहित के।

उसको तो आना ही था। रूही का चेहरा बदल चुका था। वो थकान जो चेहरे पर दिख रही थी जब मोहित आया था, जा चुकी थी और रौनक दिख रही थी।

हुआ कुछ यूँ था कि मोहित ने फ़ोन करके रूही के डैड को हिंट दिया था कि उसे कुछ कपड़ों का आर्डर मिला है और अगर उनका कोई जानकार है तो बताये। जबकि मोहित को ये पता था कि रूही के पति का काम वही था। डैड ने तुरंत रोशन का नाम लिया, कहा उस से बात कर ले, मोहित ने रोशन का नंबर लिया। बात हुई, मोहित कहानी बनने में तो कलाकार था ही और रोशन ने मोहित के चमत्कार को नमस्कार कर लिया था।
बारह बजे मुलाक़ात हुई। थोड़ा सा डिटेल्स में बात चीत हुई। अब चूँकि डैड का रिफरेन्स था तो “घर” वाली बात ही थी। रोशन ने लंच का ऑफर किया, मोहित ने बोला वो बाहर का खाना नहीं खाता है।
रोशन ने कहा, अरे तो क्या घर पास ही है, वहीं कुछ रूखा सूखा खा लेते है। मोहित ने “बहुत” मना किया “बहुत”समझाया पर रौशन नहीं माना और इस तरह आज रूही का हार्टफेल होते होते बचा था।

मरते-मरते ज़िंदा हो गयी थी। मोहित को जो करना होता था, वो होता था। अगर उसे कुछ चाहिए होता था, तो वो मिलता था।
साम-दाम-दण्ड-भेद मोहब्बत में कुछ भी नाजायज़ नहीं होता और मोहब्बत में तो वैसे भी हर गुनाह माफ़ ही होते हैं।
रूही किचन में जुट गयी। उसे पता था कि मोहित क्या खायेगा। रोशन किचन में आया।
“ज़रा कुछ अच्छा सा बना लेना” रूही मुस्कुराई।
खाने की टेबल पर वही सब था।
“घर का खाना” रूही के हाथ का।
एक बार रूही ने यूँ ही कहा था,
“स्वीटी बड़ा मन है मेरा कि कभी तुझे अपने सामने बैठा कर खिलाऊं”
अब रूही का मन था तो मोहित को तो वो करना ही था। चाहे उसका हश्र कुछ भी हो।
बीच में रोशन हाथ धोने के लिए उठा,तो मोहित बोला,
“खुश अब मेरी बब्बल?”
रूही ने यहाँ-वहाँ देखा, धीरे से उठी और मोहित के कान को मरोड़ कर चली गयी।

14 फरवरी, पहला वैलेंटाइन मोहित और रूही का।
रूही के घर में,रूही के हाथ का खाना ,मोहित उसके सामने बैठा हुआ ,खाता हुआ ,मुस्कुराता हुआ।
रूही की साँसे रुक रुक सी जाती थी।

ऊपर वाले से कुछ और भी माँग लेना था उसे ,थोड़ा और ,थोड़ा और। उसे उम्मीद हो चली थी मिलने की। उसका स्वीटी फिर से आ गया था उसे खुशियां देने। लंच के तुरंत बाद रोशन मोहित को लेकर चला गया। शाम को रूही और रोशन को वैलेंटाइन पार्टी में जाना था। पर रूही का वैलेंटाइन मन चुका था।
“थैंक यू स्वीटी”
“तू कितना प्यारा है रे”
मोहित होटल चला गया। रूही का बहुत मन था एक बार मोहित से फिर मिलने का।
पर बस। शायद इतना ही था आज के दिन। रूही ने घर के मंदिर में सर टेका। बाबा पर फूल चढ़ाए। रोशन थोड़ी देर बाद घर आ चुका था और आराम कर रहा था कि तभी रौशन को एक फ़ोन आया।

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

1 thought on “रुही – एक पहेली: भाग-18

  1. आप जानते हैं ना कि कुछ चीजों को ज्यादा देर “स्टेंड बाई” मोड पर छोड़ देने से वो खुद ही ऑफ हो जाते हैं।
    “रिश्ते’ उनमें सबसे पहले आते हैं”
    अद्भुत कला है आप में भावों को शब्दों द्वारा अनुभूति कराने का… इन्हीं जीवंत उपमाओं से आप बहुत गहरी बात कह जाते हैं, जो जीवन में अतिआवश्यक है… मन मोहे हुए है आपकी यह पहेली… अगले भाग का इंतजार रहेगा

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