रूही – एक पहेली: भाग-13

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“दारु कौन सी पिएगा बे कमीने?”
ये तो भानु की आवाज़ थी, मोहित ने एकदम से आँखे खोली।
सामने उसकी जान, उसका जिगरी भानु दोनों हाथ फैलाए खड़ा था। कितने साल बाद देखा था उनसे भानु को ??
दौड़ा मोहित , जाकर भानु के गले लग गया। बारिश की बूँदों की जगह अब भानु की आँखों से बूंदे टपक रही थी।
“साले, मर जाता तो अच्छा था, रोज़-रोज़ हमें मरने से तो बचा लेता” गालियों की बौछार लगा दी थी भानु ने। ये वो भानु था जो अपने इमोशंस किसी को नहीं दिखाता था, रोने की तो बात जाने दीजिये, मुस्कुराना भी मुश्किल से होता था। बारिश धीमी सी होने लगी थी , भानु की आँखों से भी और आसमान से भी।

“डार्लिंग, हमसे गले नहीं मिलोगे???”
“हम भी तो तरस गए जानेमन”
मोहित मुड़ा, पीछे भरी-भरी आँखे लिए दीपाली खड़ी थी, मोहित की सखी। मोहित भाग के गया, दीपाली के हाथ थाम लिए और बस आँखें बंद। दीपाली समझ गयी थी। भानु आया,
“छोड़ बे साले, बंद कर अब फ़्लर्ट करना,मेरी बीवी को तो छोड़ दे बे”
मोहित ने आँखे खोली, मुड़ा, दीपाली से पूछा,
“जानेमन, कौन है ये आदमी?”
और फिर तीनो कस के ठहाका लगा कर हँस पड़े। कुछ भी तो नहीं बदला था, सिवाए इसके कि कुछ ज़िंदगियाँ बर्बाद हो चुकी थी या होने वाली थी या कहीं किसी दुनिया में हो रही थी। दोनों का हाथ पकड़ कर मोहित उनको लेकर कॉटेज की तरफ बढ़ा, तभी अंदर से आवाज़ आई,
“जीजी, आप आ गयी??” ये थी राधा की आवाज़।
“जीजी???” तो दीपाली जानती है राधा को?
मोहित ने दीपाली की तरफ सवाल भरी निगाह से देखा,दीपाली मुस्कुरा दी। मोहित कुछ पूछने वाला था, दीपाली ने राधा को शांत रहने का इशारा किया। गहरी साँस भरी मोहित ने, वो दीपाली से बहस नहीं कर पाता था कभी।
“छोटी, चाय पिला दे एक बढ़िया सी”, दीपाली की आवाज़ सुनाई दी मोहित को।
अब ये छोटी कौन थी ?? सब गड्डमड्ड हो रहा था फिर से। भानु ने हाथ पकड़ा मोहित का और सीढ़ियों से ऊपर की और बढ़ गया, मोहित समझ गया की भानु पहले यहाँ आ चुका है। पहाड़ों की शाम कब रात में बदल जाती हैं पता ही नहीं चलता । कभी बादल कभी धूप कभी बारिश, सब आँख-मिचोली खेलते रहते है। एक कोने में आसमान लाल हो रहा था और एक कोना घने काले बादलों से ढका हुआ था।
गीली-गीली सी शाम होती हो रही थी जैसे इक नशीली सी खुशबु सब जगह फैली हुई हो। तभी दीपाली अपने चाय का गिलास शाल में पकड़ कर ऊपर ले आई। रामसिंह ने कॉफ़ी का मग भानु और मोहित के सामने रख दिया। तीनो ने एक दूसरे के तरफ देखा। कितने सवाल, कितने जवाब ,कौन देगा किसको।

“सुट्टा निकाल बे”, ये दीपाली थी।
वो कई सालों से मोहित की सुट्टासखी थी, ये एक और नाम उसने ही दिया था मोहित को। भानु को खासी नफरत थी सिगरेट से तो दीपाली नहीं पीती थी और तभी एक दो कश लगा लेती थी जब मोहित घर आता था। मोहित ने सिगरेट जला कर दीपाली को दी। तुझे पता है मोहित,जब से आज पी रही हूँ।
“जब से” ये वो रात थी जब उनकी आखिरी महफ़िल जमी थी कुछ साल पहले और फिर मोहित का एक्सीडेंट हो गया था। मोहित,भानु और दीपाली तीनो दीवार से टिके बैठे सामने ताके जा रहे थे।
शाम गहरा रही थी और वो चुप्पी बहुत कुछ बयान का रही थी। दीपाली ने चाय खत्म की और पूछा,
“महफ़िल कहाँ जमेंगी बॉस?”
मोहित बोला, “यहीं खुले में” दीपाली नीचे चली गयी इंतज़ाम करने ,महफ़िल जमने को बेताब थी।

“रूही कहाँ है?????”
मोहित ने गिलास उठाया और सबसे पहला यही सवाल था दोनों से ।
भानु और दीपाली ने एक दूसरे की और देखा । भानु चुप था ,दीपाली बोली,
“कौन रूही? मैं किसी रूही का नहीं जानती”
मोहित समझ गया, अभी मौका नहीं था रूही के बारे में जानने का सुनने का। बारिश थम चुकी थी, नीचे से राधा की हलकी-हलकी आवाज़ें आ रही थी। रामसिंह को शायद रात के खाने की तैयारी करा रही थी,
“कैसा काम चल रहा है तेरा”, भानु से पूछा उसने
“बढ़िया”, भानु बोला
कुछ समझ नहीं आरहा था तीनों को कहाँ से शुरू करें और फिर चुप्पी छा गयी। माहौल भारी सा होने लगा था, दीपाली समझ रही थी,बोली,
“मैंने कहा था राधा को तुझे यहाँ लाने को, पता था मुझे कि अच्छा लगेगा तुझे यहाँ शोरगुल से दूर”

“राधा”
बात शुरू हो चुकी थी,
कौन है ये राधा, कैसे जानती है मुझे ये दीपाली?
मुझे क्या हुआ था? मेरा एक्सीडेंट कैसे हुआ था?
ढेर सारे सवाल थे जिनके जवाब मोहित पाने को परेशान हो रख था इतने दिनों से पर राधा कुछ नहीं बताती थी । भानु, चुप था ,दीपाली शुरू हुई,

“18 फरवरी , 2018 को कैसे भूल पायंगे हम कभी,
सत्रह तारिख की रात को हम सब ने पार्टी की थी घर पर, तू दुबई से मुंबई आया था चौदह फरवरी को। उसी दिन दोपहर को तू पुणे चला गया था रूही से मिलने और सत्रह को फिर लौटा था मुंबई। याद है ना?”
मोहित ने दिमाग पर ज़ोर डाला, कुछ याद आ रहा था, सर दर्द होने लगा, फिर कुछ याद आया ,चेहरा लाल हो गया । भानु देख रहा था,
एकदम से बोला,” दीपाली रहने दे, मना किया था ना डॉ ने कुछ बोलने को। क्यों कर रही है फिर शुरू?”
दीपाली नहीं चुप हुई, बोलती रही।

“तेरी फ्लाइट थी अट्ठारह की सुबह की। तू घर से एयरपोर्ट जाने के लिए निकला था। तेरे दुबई पहुंचने के बाद हमेशा टेक्स्ट आता था, नहीं आया अट्ठारह को तो शाम तक भानु को चिंता होने लगी थी। उसने दुबई फ़ोन किया था तो पता चला तुम ऑफिस नहीं पहुंचे थे। इन्द्र को फ़ोन किया था, तो तुम घर भी नहीं थे, पर इन्द्र को अट्ठारह को आखिरी कॉल आई थी तुम्हारी इंडिया वाले नंबर से।
तुम कुछ कहना चाह रहे थे पर फिर फ़ोन कट गया था और फिर बंद हो गया था। इन्द्र ने बहुत मिलाया था पर नहीं बात हुई। शाम को जब इन्द्र से भानु को ये बात पता चली तो सर चकरा गया था हम सभी का।
तुम घर से दुबई जाने को निकले थे पर पहुंचे नहीं थे। भानु ने सारे दोस्तों को फ़ोन कर लिया था, तुम्हारे इंडिया ऑफिस भी पर कुछ पता नहीं चला। फिर भानु ने एयरपोर्ट फ़ोन किया, अपने दोस्त से बात की और एक घंटे बाद पता चला कि तुम तो बोर्ड ही नहीं किये थे फ्लाइट पर। शाम तक भानु पागलों की तरह ढूंढ़ता रहा, सारे थानों में कोशिश की, जितने आसपास के अस्पताल थे सब जगह मालूमात किये पर कहीं से कुछ पता नहीं। अचानक मुझे कुछ झटका लगा। मैंने भानु से रूही को फ़ोन करने को कहा उसने मना कर दिया था। थक-हार कर मैंने रूही को फ़ोन किया था मोहित इस दिन”
मोहित चुप होकर सब सुने जा रहा था, दीपाली बोले जा रही थी।
“मेरा शक सही था,
अट्ठारह फरवरी को मोहित सीधे एयरपोर्ट नहीं गया था, दो बजे रूही से मिला था, रूही से कुछ बहस हुई थी और मोहित चला गया था । उसके बाद रूही को नहीं पता था मोहित का। भानु ने कार निकाली, दीपाली को लेकर निकलने ही वाला था कि वो फ़ोन कॉल आई थी।

“आप भानु बोल रहे हैं?
“हाँ जी”
“आप किसी मोहित को जानते है?”
“हाँ जी, क्या हुआ”
“उनका बहुत बुरा एक्सीडेंट हुआ है, आप तुरंत आ जाइये”

मोहित दीपाली को सुने जा रहा था। उसे याद आगया था सब। दीपाली, बोले जा रही थी,खून में लथपथ थे मोहित तुम। दीपाली चुप थी अब, गला भर आया था उसका ,मोहित उठा,
“शश्श्श् शससश” करके दीपाली को चुप कराया, अपना और भानु का गिलास भरा।
बोला, “इसके आगे की दास्ताँ फिर कभी, आज जश्न का दिन है, आज रोनागाना नहीं”

“उल्लू के पट्ठे, साले हम मर-मर गए इतने दिन और तुझे फिर चुहल पड़ी है”
भानु से रहा नहीं गया था, भभक ही पड़ा था वो
“ओ, भाई लाइट ले ना,आज जश्न का दिन है,एक गाना सुनवाता हूँ”

मोहित ने भानु से उसका मोबाइल लिया और यू ट्यूब पर गाना लगा दिया था। मोहित ने फिर से माहौल हल्का कर दिया था। गिलास तीनों के हाथ में थे, दीपाली अब मुस्कुरा रही थी, भानु का गुस्सा गायब हो चुका था।

मोहित के अंदर ज्वालामुखी धधकने लगा था फिर। सुबह करीब चार बजे नीचे आये थे सब पी-पा कर ,
भानु और मोहित जब भी साथ होते थे तो बोलने वाला सेक्शन सिर्फ मोहित का होता था, भानु सिर्फ हम्म…हाँ-हूँ करके साथ देता था। नहीं तो मोहित और भानु दोनों चुपचाप पीते रहते थे बिना कुछ बोले।
उन दोनों का साथ होना ही उन दोनों के लिए सब कुछ होता था। एक अनकही भाषा थी दोनों के बीच जो सिर्फ मोहित और भानु समझते थे। जब दोनों साथ होते थे, तब दीपाली भी डिस्टर्ब नहीं करती थी दोनों को । एक आध घंटे बाद आती थी वो ऐसे मौके पर। आकर हमेशा ताना मारती थी,

“हो गया हो प्रेमालाप तो मैं भी आ जाऊं?”
उस रात भी दीपाली नीचे चली गयी थी घण्टे भर को और फिर राधा के साथ ऊपर आगयी थी। बारिश थम चुकी थी और थोड़ी देर बाद रामसिंह आकर अलाव जला गया था। भानु दीवार से टिका हुआ था सर लगा के, दीपाली अपना गिलास लेकर, भानु के पैरों पर सर रख के लेटी हुई थी। राधा,मोहित और भानु के दाएँ हाथ की तरफ थी और मोहित उसके बिलकुल सामने। मोहित और राधा के बीच में सिर्फ आग का फासला था।
“जीजी, कब तक है आप लोग यहाँ? पूछा राधा ने
“जीजू से पूछ छोटी”, दीपाली ने कहा
“जीजू, कब तक है आप?”
“क्यों?” जवाब आया, भानु का।
दीपाली ने और मोहित ने कस के ठहाका लगाया। ऐसा ही था भानु। ऐसे जवाब होते थे उसके की बाप रे बाप । पर राधा जानती थी भानु को तो फिर पूछा,
“बताओ ने जीजू, कब जाना है?”
“क्यों? हम डिस्टर्ब कर रहे है तुम दोनों को?”
मोहित ने देखा, राधा का चेहरा एक दम से लाल हो गया था, आग की तपिश थी या उस एक डायलॉग की जो भानु ने मारा था।
“मैं नहीं बात कर रही आपसे, आप हमेशा ऐसे ही करते हो”
“कल शाम को निकल जायेंगे”
“अरे, ऐसे नहीं, इतनी जल्दी नहीं”
“मीटिंग्स छोड़ कर आया हूँ, दीपाली से पूछ लो अगर उसे रुकना है”
“जीजी, आप रुक जाओ न”
दीपाली उठी, मोहित को इशारा किया,मोहित ने सिगरेट जलाई ,दीपाली को दी। दीपाली,आज बहुत अच्छे मूड में थी, दिख रहा था,बोली,
“भानु,बाबू बहुत प्यार करते हो मुझसे?” भानु ने कोई जवाब नहीं दिया, “बोलो न भानु बाबू”
“क्या देखा था मुझे में ऐसा जो तुम जैसा बन्दा मुझे दिल दे बैठा?”
भानु उठा,
“बोला, हो गया साला ड्रामा चालू तुम दोनों का”
आज दीपाली हार मानने वाली नहीं थी, ये वो सवाल था जो दीपाली अकेले में भी पूछ चुकी थी और मोहित के सामने भी पर भानु कभी जवाब नहीं देता था। पर आज लगता था कि दीपाली मानने वाली नहीं थी।
मोहित ने उकसाया,
“कहो ना भानु बाबू, बताओ ना, हम भी जाने कि इस पत्थर को मोम कैसे बना दिया दीपाली ने?”
“अबे मान जाओ तुम दोनों क्यों ड्रामा कर रहे हो, चढ़ गयी क्या ज़्यादा?”
अब राधा भी शामिल हो गयी थी गैंग में,वो भी बोली,
“जीजू बताओ ना, प्लीज”

भानु ने अपनी वो रेयर वाली मुस्कराहट दी जिस से तीनों को समझ आ गया कि भानु का गुस्सा नकली था। भानु मुस्कुरा रहा था, दीपाली का हौसला बढ़ा थोड़ा, खड़ी हुई, लड़खड़ाई तो भानु ने थाम लिया। मोहित ने सीटी मारी , “वाह वाह, मेंरे शेर”
वो रात कुछ अलग सी ही थी । सब कुछ ऐसा जो कभी ना हुआ था। भानु ने दीपाली को बाँहों में थामा और आँखों में आँखे डाल कर पूछा,
“पूछो जान, क्या पूछना है आज सब जवाब दूंगा, बहुत खुश हूँ मैं”
दीपाली की एक दम से उतर गयी, चौंक गयी वो,
भानु के माथे पर हाथ रख कर पूछा,
“हेल्लो, तबीयत ठीक है?”
“हाँ, क्या हुआ?”
“क्या बोले तुम?”
भानु हंसा, बोला,
“बहुत खुश हूँ मैं”
“नहीं उस से पहले”
भानु बोला, “आज सब जवाब दूंगा”
“नहीं नहीं, उस से पहले”
अब भानु को मज़ा आ रहा था,
बोला, “मैंने ये कहा कि क्या पूछना है आज सब जवाब दूंगा, बहुत खुश हूँ मैं”
दीपाली ने भानु के दोनों हाथ पकड़े और अलाव के पास बिठा कर बोली,
“वो फिर से कहो जो सब से पहले कहा था”
भानु फिर मुस्कुराया, शायद क़यामत आने वाली थी उस दिन,बोला,
“पूछो जान, क्या पूछना है आज सब जवाब दूंगा, बहुत खुश हूँ मैं”
दीपाली ने कस के गले लगा लिया भानु को,
“इतने साल लगा दिए ये सुन ने को मैंने, आस ही खो बैठी थी की कभी तुम ऐसे भी पुकारोगे”
आँखें भर आई थी दीपाली की।
भानु धीरे से अलग हुआ ,दीपाली को पूछा “एक गिलास और बनाऊँ जान?”
अब दीपाली से नहीं रहा गया ,बोली, “तुम ऐसा करो आज मार ही डालो भानु बाबू”
सारी तमन्नाएँ तो आज पूरी हो ही गयी , रहा क्या बाकी आज ?
राधा मुसकुराए जा रही थी । उठी राधा, मोहित का एक गिलास बनाया, अपने लिए थोड़ी और वाइन ली और आकर दीपाली के पास बैठ गयी ,बोली जीजी ,
“आज तो आपका गाना बनता है”
दीपाली बहुत अच्छा गाती थी पर बहुत कम गाती थी, भानु को ज़्यादा शौक नहीं था तो दीपाली ने भी धीरे-धीरे अपने को भानु के हिसाब से ढाल लिया था।
“जीजी” सुनाओ ना गाना।
मोहित ने भी कहा, पर दीपाली सिर्फ मुस्कुरा दी। आज कुछ और भी होना था, अब भानु बोला,
“मेरा मन है, कुछ सुनाओ ना आज जान”
अब दीपाली कैसे मना कर सकती थी। दीपाली, ने गिलास उठाया, भानु के बाजू में जा के बैठी।
मोहित की नज़र राधा पर गयी तो पाया कि एकटक मोहित की ओर देखे जा रही थी।
झेंप गयी अपनी चोरी पकड़े जाने पर , और मोहित मुस्कुरा दिया।
बादल छंटने वाले थे ,थोड़े-थोड़े तारे दिखने लगे थे। एक कोने से चाँद भी बादलों में से झाँक रहा था।
दीपाली ने शुरू किया , “नाम गुम जायगा …”

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

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