रूही – एक पहेली: भाग-12
रौशन यानी रूही का पति।
पर नाम का, काम घर के सारे रूही के ही जिम्मे थे। बैंक से लेकर गैस के सिलिंडर से तक, बच्चों के स्कूल से लेकर घर के राशन तक बस एक चलती फिरती मशीन थी रूही।
उस दिन जल्दी घर आ गया था रोशन, बाद में रूही का एक टेक्स्ट आया कि एक गुड न्यूज़ है। रौशन को बैंगलोर की किसी एक फर्म से बड़ा सा आर्डर मिला था जो कि एक बड़ी बात थी। रौशन का बिज़नेस ठीक नहीं चल रहा था उन दिनों , ऐसा रूही ने मोहित को बताया था। आर्डर कई लाख का था और साल भर का कॉन्ट्रैक्ट था। चूँकि लिखा-पढ़ी सारी रूही करती थी, उसने सारे कागज़ चेक किये और बस बात आई गई हो गयी। शाम को रौशन ने अपने दोस्तों को पार्टी दी। पार्टी के दौरान रूही का टेक्स्ट आया,
“ऐसा नहीं हो सकता कि किसी दिन मैं तुम्हारे साथ पार्टी करूँ? मैं चाहती हूँ तू मुझ देखे जब मैं खुश रहती हूँ, स्वीटी”
जवाब में एक स्माइली भेज दिया मोहित ने।
तीन बजे सुबह वॉईस टेक्स्ट आया, लड़खड़ाती हुई आवाज़ में, पीये हुई थी रूही।
“परसों अपना पहला वैलेंटाइन है न स्वीटी?”
“क्या गिफ्ट दे रहा है अपनी बबल को?”
सुबह देखा था मोहित ने, ऑफिस जाते हुए कॉल किया, रूही ने नहीं उठाया ,शायद हैंगओवर था।
हो जाता था रूही को हैंगओवर , शराब का, मोहब्बत का , खिलवाड़ का , उलझाने का अपनी ज़िंदगी को।
मोहित ने ऑफिस पहुँच कर टेक्स्ट किया “क्या चाहिए बब्बल?”
कोई जवाब नहीं। फिर एक घंटे बाद मोहित ने फिर चेक किया , कोई खबर नहीं।
टेक्स्ट पढ़ा भी नहीं था । शाम को जब ऑफिस से जा रहा था, कॉल आई एक,
“सुबह आई स्वीटी घर, बैटरी नहीं थी फ़ोन मे, फिर सुबह उठ के बच्चों को भेज कर फिर सो गयी, अभी उठी हूँ”
बस इतनी सी बात ही तो थी कि दस घंटे बात नहीं हुई थी बहुत दिनों बाद। बस मोहित बेचैन रहा दिन भर, बस इतनी सी बात ही तो थी।
तो क्या हुआ? बता तो दिया था रूही ने
“मेंरे वॉईस टेक्स्ट मिला था स्वीटी? क्या बकवास की थी रे मैंने, टुन्न थी मैं रे, मैंने डिलीट भी कर दिया था रे”
“कुछ नहीं बब्बल, तूने गिफ्ट माँगा था कल के लिए”
“चल हट्ट पगले”
“नहीं रे सच”
“अच्छा क्या माँगा था मैंने?”
“कुछ नहीं मुझसे गिफ्ट माँगा था तूने बब्बल, बता क्या चाहिए?”
रूही, रुकी, फिर बोली “कहाँ है तू स्वीटी?”
“बस ऑफिस से निकलने वाला हूँ”
“स्काइप कर मुझे अभी एक मिनट को”
मोहित को समझ नहीं आती थी ऐसी पहेली , कठपुतली सा हो जाता था ।
स्काइप ऑन किया,
“रूही ऑनलाइन”
मोहित ने कॉल लगाया, रूही सामने थी , “बोल बब्बल क्या हुआ”
“गिफ्ट देगा न मुझे स्वीटी?”
“हाँ बब्बल, पक्का, माँग ना”
रूही ने धीरे से आँखें बंद की, अपने दायां हाथ बाएँ कंधे पर और बायां हाथ दाएँ कंधे पर रखा, गर्दन धीरे से हिलाई ऊपर से नीचे, मुस्कुराई और बोली,
“तू आजा कल मेरे से मिलने, ये मेरा वैलेंटाइन्स का सबसे बड़ा गिफ्ट होगा इस ज़िंदगी का स्वीटी”
फिर धीरे से अपनी बड़ी बड़ी आँखें खोली ,मुस्कुराई और लैपटॉप बंद कर दिया।
मोहित वहीं का वहीं खड़ा रह गया। ये क्या कर देती थी रूही एक मिनट में मोहित का? एक सेकेण्ड में मोहित को कहाँ से कहाँ पहुँचा देती थी। स्मैक का नशा सा बन गयी थी वो मोहित के लिए। एक दिन पहले वो भाई के पास थी। वो भाई जो उसकी ज़िंदगी था, जान था, साँस था ।
उसी दिन शाम को अपने पति के साथ फैमिली के साथ दोस्तों के साथ एक शानदार पार्टी में
और वैलेंटाइन उसे मोहित के साथ मनाना था।
और मोहित ??
वो जब रूही कुछ माँगती थी तो, मोहित कल, परसों और उस से एक मिनट पहले की सारी बातें भूल जाता था। याद रहती थी तो बस, रूही की काजल वाली आँखें, रूही की मुस्कुराहट , रूही का धीरे से आखें झपकाना , रूही का धीरे से गर्दन हिलाना।
रूही का टेक्स्ट आया ,
एक लाइन
“आएगा न स्वीटी?”
मोहित ने जवाब नहीं दिया।
चौदह को शबाना ने एक पार्टी रखी हुई थी, शबाना ने कई सालों बाद कुछ ऐसा किया था। कल रात ही शबाना करीब चार साल बाद उसके कमरे में आई थी। मोहित बालकनी में था, नॉक किया था आने से पहले, “मोहित, मैं आ जाऊं अंदर?”
“हाँ बोलो शबाना”, मोहित एक दम चौंक गया था।
वहीं खड़े-खड़े शबाना बोली, “मैं कुछ कहना चाहती हूँ”
“बोलो शबाना”
“ऐसे नहीं, कल एक पार्टी रखी है वहीं कहूँगी सबके सामने”
मोहित को कुछ सालों पहले वाली पार्टी याद थी, मुस्कुराया, बोला,
“ठीक है”
चौदह फरवरी को शबाना ने कुछ कहना था मोहित को, चार सालों बाद।
चौदह फरवरी को रूही ने मोहित को बुलाया था फिर, चार सालों बाद।
मोहित ने रूही का टेक्स्ट फिर पढ़ा।
“आएगा ना स्वीटी?” जवाब नहीं दिया मोहित ने।
बैग उठाया, कार स्टार्ट की और घर की ओर चल दिया।
शबाना को क्या कहना था उस से?
तेरह तारीख, शाम आठ बज चुके थे जब मोहित घर पहुँचा,शबाना ने आज मोहित की पसंद का खाना बनाया था मोहित के लिए। मोहित के लिए सबसे बड़ा आश्चर्य था ये। मोहित ने चेंज किया आकर टेबल पर बैठा, इस बार शबाना बाजू में नहीं थी, सामने थी,बेल बजी,बड़ा सा बुके था।
“हैप्पी वैलेंटाइन्स डे डियर मोहित” – फ्रॉम योर्स शब्बो जान।
मोहित शब्बो कहता था शबाना को पहले ।
मोहित ने बुके लिया, शबाना की और बढ़ा । ऊपर वाला फिर अपने खिलोने से खेलने के लिए पूरी फुरसत में था। मोहित ऊपर वाले का सबसे प्यारा खिलौना था। जब कभी ऊपर वाला रोज़ के काम से बोर हो जाता था,तो मोहित का नंबर डायल कर लेता था।
फिर टेक्स्ट आया एक
“तू आएगा न स्वीटी??”
मोहित के एक हाथ में शबाना का बुके और एक हाथ में मोबाइल पर चमकता हुआ
“तू आएगा न स्वीटी??”
“ऊपर वाला फिर अपने खिलोने से खेलने के लिए पूरी फुरसत में था। मोहित ऊपर वाले का सबसे प्यारा खिलौना था। जब कभी ऊपर वाला रोज़ के काम से बोर हो जाता था,तो मोहित का नंबर डायल कर लेता था।”
सच में…
अगले भाग के इंतजार रहेंगा…