रूही – एक पहेली: भाग-11

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सन 2008, महीना सितम्बर, तारीख याद नहीं।
“सर, मैं रूही बोल रही हूँ”
“क्या मैं मोहित जी से बात कर सकती हूँ?”
वो बातचीत 2 मिनट की थी पर न तो मोहित को पता था और ना रूही को की ये 2 मिनट की बातचीत आगे आनेवाले बीसियों सालों तक चलने वाली थी*

मोहित को वो कॉल उसके पटना ऑफिस की कैंटीन में आई थी ।
सन 2008, महीना सितम्बर, तारीख याद नहीं।
और रूही???????
वही रूही ,एक पहेली, जिसे शायद ऊपर वाला बना कर कुछ भूल सा गया था।

बारिश ने मोहित को मजबूर किया कि वो नीचे चला जाए। नीचे जा कर मोहित कॉटेज से निकलकर बाहर बरामदे में बैठ गया। इतनी देर में शबाना की धुंध छंट चुकी थी। मोहित ने डायरी रखी और राधा को ढूँढ़ने की कोशिश में लग गया।
कोई जादूगरनी थी राधा कि सोचो और हाज़िर, हाज़िर ही नहीं पर इच्छा भी पूरी कर डालती थी।
“काफी पीना है न?”
मोहित मुस्कुराया
“अभी लायी” पाँच मिनट में राधा,काफी रख कर चली गयी।
अंदर से आवाज़ आई,
“रामसिंह साहब का रूम तैयार कीजिये”
मोहित आँख मूँद कर पीठ टिका कर बैठ गया। भानु क्यों नहीं आया?दीपाली कैसी होगी? एक त्रिकोण था मोहित, भानु और दीपाली का। एक बात मोहित को समझ नहीं आई कभी कि भानु ने शादी कैसे कर ली दीपाली से? ये प्यार-व्यार तो भानु का सिलेबस था ही नहीं।

एक दिन अचानक रात को भानु ने फ़ोन करके मोहित से दीपाली से बात करवा दी थी। दूसरे दिन मोहित भानु से मिलने ही चला गया था जब भानु ने कहा था कि उसे “भी” प्यार के कीड़े ने काट लिया है और वो दीपाली से ही शादी करेगा। भानु ठाकुर परिवार की औलाद जिनका बड़ा रसूख था और दीपाली ठहरी चंचल तितली। भानु को वो तितली के रंग भा गए थे और उन रंगो से वो घर को रंगना चाहता था।
आसान तो नहीं थी पर बात मनवा ली गयी। दीपाली को जब तक मोहित और भानु कि नज़दीकियों का पता नहीं था । पता तब चला जब मोहित ने कहा कि हनीमून पर वो भी जाएगा साथ में।
दीपाली को तो जैसे सांप सूंघ गया ,बोली, ये क्या नाटक है?
मोहित ने कहा, ये ही क्या कम है कि शादी होने दी। शादी हो गयी ठीक है,पर हनीमून पर मैं भी चलूँगा।
दीपाली ने भानु को बताया,भानु का जवाब था, जैसा मोहित कह रहा है होगा तो वैसा ही। मैं मोहित को मना नहीं कर सकता। दीपाली को लगा मज़ाक कर रहा है भानु और बात आई गयी हो गयी ।
जब लंच हो रहा था तब फिर दीपाली ने बात शुरू की ,
“भानु बताओ न क्या कपड़े रखने है?”
भानु ने कोई जवाब नहीं दिया बस चुपचाप खाता रहा।
दीपाली ने फिर पूछा, इस बार मोहित उठा, अंदर गया, टिकट का लिफाफा लाया और वहीं फाड़ दिया।
अगर मैं नहीं जाऊंगा तो कोई कहीं नहीं जाएगा । दीपाली हक़्क़ीबक्की रह गयी, सकपका गयी, भानु की तरफ देखा,वो चुप मुंह करके नीचे बैठा था।
उस रात दीपाली देर रात तक भानु का इंतज़ार करती रही और मोहित भानु बैठ कर ड्रिंक पर ड्रिंक चढ़ाते रहे । दूसरे दिन शाम को जाना था और कोई पैकिंग नहीं थी। तीन बजे सुबह मोहित कमरे में आया।
दीपाली को कहा “दीपाली, कुछ कहना है अपने और भानु के बारे में”
दीपाली वैसे ही तपी बैठी हुई थी,
बोली “कहो”
मोहित ने सीरियस सा मुंह बनाया,
“देखो, मुझे नहीं पता है कि, भानु ने तुम्हे बताया या नहीं पर….”
दीपाली अब चौंकी बोली क्या बात है साफ़ साफ़ कहो ,
मोहित ने फिर शुरू किया “देखो दीपाली, पता नहीं तुम कैसे लोगी इस बात को लेकिन….”
अब दीपाली फट पड़ी मोहित जो कहना है साफ़ साफ़ कहो पहेली ना बुझाओ।
मोहित बोला, “तुम्हे भानु ने नहीं बताया कि मेंरे और भानु के बारे में, उसे तो शादी के पहले बता देना चाहिए था ना?” तुम्हे धोखे में रखना ठीक नहीं था।
मोहित ने भानु को आवाज़ लगायी,
“भानु……………” भानु अंदर आया , नज़रे नीचे।
“लो इसी से पूछ लो दीपाली तुम”,मोहित बोला
अब दीपाली से नहीं रहा गया, फूट-फूट कर रो पड़ी,
“मुझे तब ही शक हुआ था जब ये मोहित बोला था कि हनीमून पर अकेले नहीं जाने देगा। भानु तुमने मेंरे साथ ऐसा क्यों किया, बोलो जवाब दो। अगर तुम पहले कह देते तो मैं तुम दोनों के बीच में नहीं आती, तुम ने मुझे अँधेरे में क्यों रखा? क्या कसूर था मेरा”
तभी भानु की आवाज़ सुनाई दी उसे,
“बस कर साले कमीने पहले हफ्ते में ही तलाक़ करवाएगा क्या?”

दीपाली ने मुंह उठकर देखा तो मोहित पेट पकड़-पकड़ कर हँस रहा था। दीपाली की समझ में आ गया था । ये उसका मोहित की तरफ से स्पेशल स्वागत था जिसके बारे में भानु ने पहले ही चेतावनी दे दी थी पर फिर भी दीपाली झांसे में आ गयी थी। उठी और कस के उसने मोहित को पीठ पर घूँसा मारा। मोहित ने जेब से एक पैकेट निकला और दोनों को गले से लगा कर दीपाली के हाथ में थमा दिया।
दीपाली ने खोल कर देखा, यूरोप ट्रिप का पैकेज था पंद्रह दिन का हनीमून स्पेशल।
दीपाली को बोला, मेरी सुबह आठ बजे की फ्लाइट है, निकल रहा हूँ और हाँ इस इडियट का ख्याल रखना, दिल का बुरा नहीं है पर कभी-कभी कड़वा बोल जाता है”
फिर से दोनों को गले लगाया और दरवाजे से बाहर, मुड़ा और बोला,
“अच्छा दीपाली ये बताओ , क्या लगा था, हम दोनों में कौन टॉप था कौन बॉटम???”
भानु कस के हंसा और दीपाली ने चप्पल उतार ली थी।

रूठी हुई ज़िन्दगी थोड़ी सी मानमुनव्वल के बाद मान सी गयी लगता था पर मोहित अभी भी रूठा सा ही था। चाहत से पास आते हैं लोग पर दूर जाते हुए बिरले ही होते है। आपका प्यार करना, आपका नाकाबिले माफ़ गुनाह, करार दिया जाए तो किस से शिकायत कीजिये जनाब? ना अब उस ज़िन्दगी के ख्वाब थे और ना उन ख्वाबों की तलाश। इन ख्वाबों ने जी भर के लूटा था, नोचा था, खसोटा था, दिल लहूलुहान किया था। आँखें कमबख्त फिर भी इंतज़ार में थी । मोहित आँख बंद करे, बारिश को सुन रहा था, वो बारिश जो मोहित की पहली मोहब्बत थी और बाद में उसकी जान की दुश्मन बन चुकी थी।

बारिश से प्यार उसे रूही ने करवाया था और नफरत ?
जाने दीजिये नफरत को, नफरत का मोहित की ज़िंदगी में कोई काम नहीं था, वो तो बस प्यार करने के लिए बना था। शिर्डी से आने के बाद मोहित और रूही दोनों बदल चुके थे और रही सही कसर उस होटल के कमरे ने पूरी कर दी थी जहाँ मोहित ने एक नयी रूही को देखा था और रूही ने अपने स्वीटी के नाम को सही साबित करवाया था। पल पल की दास्ताँ फिर सुनाने लगे थे दोनों। अब बच्चों का ज़िक्र भी होता था और मोहित के काम का भी।

मोहित बहुत संभल चुका था इस बार और दोबारा से टूटना नहीं चाहता था। मोहब्बत, प्यार, जज़बात ये सब वो अंदर कहीं दिल के तहखाने में दफ़न कर चुका था और रूही ने उस तहखाने की पहली सीढ़ी पर कदम रख दिया था। चाभी हमेशा से उस दरवाज़े की रूही के पास ही थी। मोहित के दस टेक्स्ट तो रूही के चालीस आते थे। काम वाली बाई के काम करने के तरीके से लेकर कबाड़ी वाले पर गुस्सा होने तक सारी दास्ताँ मोहित को सुनाती थी। सुबह उठना, अलसाई सी आँखों वाली एक फोटो मोहित को भेजना, फिर किचन में आकर एक हेल्लो कॉल फिर बच्चों के स्कूल जाने के बाद कोल्ड कॉफ़ी पीते हुए दस-पंद्रह मिनट की बातचीत जिसमें उसके दिन भर का शेड्यूल और फिर जिम जाना, रूही के जिम से आने तक मोहित अपने सारे काम निपटा लेता था, जिम से अIते ही स्काइप पर बैठ जाना।

और फिर रूही का बोलते रहना और मोहित का सुनते रहना।
“स्वीटी, तुम दिन भर अपना स्काइप ऑन रखा करो जब तक मैं घर पर हूँ, मुझे देखना है तुम कैसे काम करते हो?”
“रूही, यार ऐसे पॉसिबल नहीं है”
“मुझे नहीं पता, तुम काम करते जाओ बस और कैमरा मेरी और”

नहीं मानती थी रूही, मोहित मान जाता था। मोहित काम करता रहता, रूही अपना काम करती रहती। बीच-बीच में मोहित भी फिर से ज़िंदगी को उलझाता रहता। रूही की एक मुस्कराहट, एक बार उसे स्वीटी कह कर पुकारना, मोहित को एक दम से हिला देता था। क्या खाया, क्या पीया, सब मालूम करना होता था रूही को। कभी-कभी लंच पर उस के मियां जी आ जाते थे सो उस दिन रूही अजनबी हो जाती थी ।
मोहित पुछता कि ऐसे क्या इतना बिज़ी तो जवाब होता था,
“वो पति है मेरा”

मोहित पूछ नहीं पाता था कि “फिर मैं क्या हूँ?”
“क्या हूँ रूही का”, मोहित अपने से पूछता था और जवाब में उसको मिलता था सन्नाटा, या कभी कभी ढेर सारी चीखें जो जाने क्या-क्या सुनाना चाहती थी, कभी दिल के अंदर से एक महीन सी आवाज़ आती थी पर उस आवाज़ को मोहित अनसुनी कर देता था, सर झटक देता था और काम में बिज़ी कर लेता था, यकीन करने को तैयार नहीं होता था कि…..
रूही एक बार जा चुकी थी उसकी ज़िंदगी से और फिर दोबारा आ चुकी थी और फिर से जा सकती थी।

मोहित का घर फिर से ऑफिस आ गया था। इस सब के दौरान मोहित को ये भी पता चला कि महीने में एक बार रूही भाई से मिलने ज़रूर जाती है। कहाँ जाती है? मोहित को नहीं पता था और पूछने की हिम्मत जुटा नहीं पाया था पर जिस दिन जाती थी, अचानक से बताती थी, बहुत खुश होती थी उस दिन
“सुन, स्वीटी, आज भाई से मिलने जा रही हूँ” मोहित की जान निचोड़ के कोई ले जाता था।

कहता कुछ नहीं था, बस ऑफिस से निकल कर टेरेस पर आकर बैठा रहता था घड़ी के साथ। दिल कहानियां बुनता रहता था कि अब क्यों जाती है रूही भाई से मिलने, जवाब नहीं मिलते थे।
भाई के पास पहुँचने के बाद रूही का टेक्स्ट आ जाता था, “
पहुँच गयी हूँ, अब टेक्स्ट मत करना और न कोई फ़ोन, मेरा फ़ोन अब बंद है कुछ देर के लिए”

ये टेक्स्ट मोहित की रही सही कसर भी पूरी कर देता था।
“टिक टिक टिक टिक टिक”
मोहित बस मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र गड़ाए रहता था।
अब आई रूही ,अब आया रूही का टेक्स्ट।
रूही कभी एक घंटे में आती थी, कभी दो घंटे में, कभी तीन या चार भी। भाई कौन था, क्या करता था, मोहित ने कभी नहीं पूछा पर रूही ने एक दिन पूछा था, “भाई को देखेगा स्वीटी?”
मोहित ने कसम दे दी थी कि अगर ज़िंदा देखना चाहती उसे है तो कभी नहीं शक्ल दिखना भाई की पर जब तक रूही फोटो भेज चुकी थी।

मोहित ने हलकी सी नज़र डाली फिर एक दम डिलीट कर दिया था। भाई से मिलने के बाद रूही आती,
आते ही साथ फिर मोहित के सामने स्काइप पर। वही अपनापन, क्या खाया, कहाँ था दिन भर । और मोहित बस पागल सा ही हो जाता था उस दिन।
“क्या थी ये रूही? कैसी पहेली थी?”
खुश रहती थी इस दिन बहुत वो।
“भाई का काम बहुत अच्छा चल रहा है”
“एक आर्डर मिला है बहुत बड़ा”
‘चाइना जा रहा है”
“घर बनवा रहा है”
मोहित को कुछ नहीं सुनाई देता था। वो रूही को देखता रहता था मानो अंदर उसके दिल में झाँक लेना चाहता हो कि अंदर है क्या इस लड़की के?
“क्या है ये?
“क्यों कर रही है ऐसा?”
एक दिन जब रूही लौट कर आई तो बहुत खुश थी, भाई ने एक नया घर लिया था, बहुत खुश थी।
मोहित से नहीं रहा गया उस दिन, पूछ लिया उसने।
“बबल, तू कहती है, भाई से अब पहले जैसा कोई रिश्ता नहीं, कुछ नहीं रहा तुम दोनों के बीच तो फिर अब क्यों मिलने जाती हो ?”

मुस्कुराई थी, तकिया, गोद में रख कर दीवार से टिक गयी थी, आंखें बन्द कर के बोली,

“स्वीटी, मेंरे में भाई की जान बसती है। उसकी साँसे जब तक चलती है जब तक मैं हूँ। मैं हूँ तो वो है। मेरा होना उसके लिए बहुत ज़रूरी है, वो जी नहीं पाएगा अगर मैं दिखना बंद हो गयी तो। उसको वादा किया था मैंने स्वीटी कि मैं उसे कभी नहीं छोड़ कर जाउंगी। बहुत कुछ है हमारे बीच में जो अब नहीं है फिर भी इतना कुछ बाकी रह गया है अभी भी जो कभी खत्म नहीं होगा”

मोहित के कानो में जैसे पिघला सीसा घुल रहा था,
“स्वीटी,मैं आज ज़िंदा ही इसलिए हूँ कि भाई को देखना है, उसने मेंरे लिए जो किया है वो शायद ही कोई किसी के लिए करेगा, वो प्यार से अलग था स्वीटी, बच्ची थी जब मिली थी, उसने मुझे बड़ा होना सिखाया है, जीना सिखाया है”

“ये,वो, ऐसा, वैसा”
मोहित ने धीरे से कैमरा एक सेकंड को बंद किया, पलकें साफ़ की और फिर सुनने बैठ गया रूही और भाई की मोहब्बत की दास्ताँ। किसी के प्यार की दास्ताँ, किसी की तबाही की गिनतियाँ।
रूही की ऑंखें बंद थी, वो भाई के साथ थी,मोहित रूही के साथ रहना चाहता था ,शबाना मोहित के साथ रहना चाहती थी और …
ऊपर वाला कुछ और चाहता था।

तभी रूही के घर की बेल बजी और रूही ने स्काइप ऑफ कर दिया। मोहित की गीली पलकें दिखी नहीं उसे , ना तो उस दिन और न कभी और।
शायद रौशन था दरवाज़े पर …

लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं की उनकी तलाश की यात्रा है। लेखक ‘मंडली.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी रचनाएँ 'ऑप इंडिया' में भी प्रकाशित होती रही हैं। उनके प्रकाशित उपन्यास का नाम 'रूही - एक पहेली' है। उनका एक अन्य उपन्यास 'मैं मुन्ना हूँ' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। लेखक एक फार्मा कम्पनी में कार्यरत हैं।

1 thought on “रूही – एक पहेली: भाग-11

  1. “आपका प्यार करना, आपका नाकाबिले माफ़ गुनाह, करार दिया जाए तो किस से शिकायत कीजिये जनाब? ”
    बहुत गहराई है इस पंक्ति में….
    अगले भाग-१२ का इंतजार है….

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