मेरी गर्लफ्रेंड: भाग-5

…गतांक से आगे
उसके यह कहने की देर ही थी कि मैंने उसका हाथ थाम लिया और मन ही मन कसम खा ली कि अब ये हाथ नहीं छोडूँगा। अविनाश भैया को एक पल के लिए ज़हन से निकाल ही दिया था पर उसकी सिसकियों से लगा कि उसका दुःख कुछ ज़्यादा ही बड़ा है। थोड़ा सा पानी गिलास में लाकर उसे पीने को दिया। उसने पानी पीने को चेहरा ऊपर उठाया तो मैंने देखा उसका चेहरा लाल था, नाक और आँखें सूजी हुई थीं। मुझे उस पर बहुत तरस आ रहा था। मैंने पूछ लिया,”अविनाश भैया बहुत अच्छे इंसान थे। तुम्हें उनकी कोई बात चुभ रही है क्या?” वह बोलने की हालत में नहीं थी। मैंने उससे फ़िर कहा,”देखो, प्यार का रिश्ता बस अभी अभी शुरू हुआ है, पर हम दोस्त काफी समय से हैं। तुम मुझे अपना समझकर कुछ भी बता सकती हो।” उसने कहा,”फ़िलहाल मुझे होस्टल छोड़ दो।”
महीने बीत गए, पूजा और मैं प्यार में कम्फ़र्टेबल भी हो गए पर कभी ऐसा लगा नहीं कि पूजा अविनाश भैया के जाने के दुःख से उबर पायी है। मैंने कई बार उसके मन की बात जानने की कोशिश भी की पर उसका यह कह देना कि रोहित, तुमसे ही प्यार है और हमेशा रहेगा, मेरे मन में उठने वाले सभी सवालों को रोक देता थे।
पूजा से प्यार होने के बाद मैं यह जान पाया कि मेरा स्वभाव डोमिनेटिंग है। मैं अपनी लगभग हर बात पूजा से मनवा ही लेता था। एक दिन फ़ोन पर बात करते वक़्त मैंने पूजा से कहा,”तुम कितनी सुंदर हो एकदम गुड़िया जैसी।“ फिर मैंने पूछा ,” मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ, तुमने कभी नहीं बताया।“ उसने कहा,”अच्छे लगते हो। बस हाँथ-पैर हाइट के कैम्परिजन में पतले हैं।“ बचपन से आज तक सिर्फ तारीफ़ सुनने वाले लड़के के लिए अपने जीवन के सबसे प्रिय इंसान से मिला यह फीडबैक थोड़ा अजीब लगने वाला था। इसलिए थोड़ा सा दिल पर लग जाना ज़रूरी था।
बात दिल पर क्या लगी कि अविनाश भैया की याद आ गयी। पूजा बात करते ही इमोशनल हो जाती थी, इसलिए एक दिन मैं अविनाश भैया के दोस्त से मिला। उन्होंने मेरे सवालों का जवाब कुछ ऐसे दिया,”देख रोहित, अविनाश घर से दुखी रहता था। माँ-बाप से ज़्यादा बात नहीं होती थी। बढिया इंसान था पर नशे की बुरी लत थी उसे। एक लड़की से बात भी करता था जिससे उसका रिश्ता शायद डिस्टेंस रिलेशनशिप जैसा था। उस दिन बस यह समझ ले कि नशे की डोज़ ज़्यादा हो गयी थी।“ मुझे यह जानकर एक पल को सुकून हुआ कि चलो पूजा और अविनाश भैया का कुछ सीन नहीं था। चलते चलते मैंने पूछ ही लिया,”अच्छा पूजा को आखिरी समय मे किसी ने कॉल किया था?“ उन्होंने जवाब दिया,” हाँ मैं ही था। अविनाश को वो पसंद करती थी और अविनाश भी आखिरी समय में उसे देखना चाहता था पर बाद में उसने मना कर दिया कि क्यों लड़की को परेशान किया जाये। अविनाश को बस फिक्र थी उस लड़की की।“
मुझे ख़याल आया कि अगर पूजा मुझे ‘हाँ’ नहीं बोलती तो शायद मुझे भी उसकी फिक्र ही रहती। वापस कमरे में आया तो देखा कपिल किसी से लेटा हुआ फ़ोन पर बात कर रहा था। मुझे ताज्जुब इस बात की थी कि लौंडे-लफाड़ियों में रहने वाला कपिल इतनी मुस्कान के साथ किससे बातें कर रहा है। मुझे देखकर भी उसने फ़ोन नहीं रखा तो मैंने उसे ज़रा सा घूर दिया। फिर भी दो मिनट तक बात ‘पहले तुम डिसकनेक्ट करो’ पर अटकी रही। शाम को खाना खाते वक़्त कपिल ने मुझे बताया कि कॉलेज में मेरी रेपो कुछ अच्छी नहीं है। आशिक लड़के मुझे गुंडा समझते हैं और गुंडा लड़के आशिक़ और जो समझदार हैं वो मुझे पहले पूजा का भाई और अब बॉयफ्रेंड समझकर इग्नोर करते हैं। यह बात बहुत परेशान करने वाली थी।
उस दिन कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए घर पर ही रहा। पूजा ने शाम को कॉल किया। उससे फोन पर बात करने का सुकून अलग ही होता था। बातों ही बातों में मैंने उससे पूछा कि उसके ज़िंदगी से जुड़े क्या सपने हैं। उसने जवाब दिया,”मैं अपने टैलेंट के बेसिस पर वर्ड फेमस होना चाहती हूँ।“ मैंने उसकी बात पर ज़रा भी ध्यान न देकर पूछा,”अच्छा, अब मुझसे पूछो”। उसने जैसे ही मुझे ‘बताओ’ कहा तो मैंने उत्तर दिया,”तुम्हारे साथ एक अच्छी लाइफ और उस लाइफ में मैं खुद को तुम्हें दुनिया में सबसे ज़्यादा चाहने वाला इंसान देखता हूँ।“ वह इस बात पर खुश ज़रूर हुई पर प्रतिक्रिया देने में कच्ची रही। अब फ़ोन रखने की बारी थी। उसने मुझे फ़ोन रखने को कहा तो मैंने पलटकर उसे रखने को कह दिया, यह सोचकर कि यह सिलसिला कुछ देर तक चलेगा पर मेरे कहते ही उसने लाइन डिसकनेक्ट कर दी।
पूजा को छेड़ने वाले सीनियर्स के ग्रुप से मुझे ख़तरा था इसलिए कपिल से बीच-बचाव कराकर मैंने उनसे कोम्प्रोमाईज़ कर लिया। इधर पूजा और उसकी रूमी को चिड़ियाघर, JK टेम्पल, परेड, स्वरूप नगर, बिठूर, गुमटी नंबर पाँच और कानपुर का लगभग हर कोना घुमा डाला। उधर पूजा भी भिंडी, भरवा करेला, और मसालेदार कटहल टिफ़िन में भेजकर मुझे प्यार परोसती रही। एक दिन गुरदेव पैलस पर हम तीनों बर्गर कॉर्नर पर पैटीज खा रहे थे कि सीनियर्स का ग्रुप आ गया। ग्रुप लीडर लपककर हाथ मिलाने आया और मैं ठिठक गया। पूजा और उसकी दीदी को कवर करते हुए मैं ग्रुप लीडर से बतियाने लगा। पूजा ने बुदबुदाकर उसे लफाड़ी कहा। ग्रुप लीडर ने दाएं-बाएं सर घुमाकर पूजा को देखने की कोशिश की। फ़िर थोड़ी ही देर में वहाँ से निकल गया। मैंने महसूस कर लिया था कि पूजा की त्यौरियां चढ़ गई हैं। ‘लोहे को लोहा काटता है’ की तर्ज़ पर मैंने भी मुँह बना लिया।
हॉस्टल छोड़ते वक़्त उसने पूछ ही लिया,”तुम किस बात पर मुँह बनाये हो?” मैंने जवाब दिया,”कुछ नहीं, तुम नहीं समझोगी।” उसने कहा,”रोहित, तुम मुझे बहुत पसंद हो पर यह बिना बात रूठने वाली आदत अच्छी नहीं लगती।“ मैंने उस पर दोष मढ़ने के हिसाब से जानबूझकर कहा,”अच्छा मेरी आदत छोड़ो और एक बात बताओ। अविनाश भैया तो किसी और को चाहते थे। फिर तुम उनके नाम पर इतना इमोशनल क्यों हो जाती हो? मैं कुछ पूछता हूँ तो बताती भी नहीं। अपना फ़ोन भी छिपाती हो। कुछ और चल रहा है क्या?” मेरी इस बात पर उसने मुझे ‘घटिया’ कहा। उसका यह कहना मुझे माँ की गाली से भी ज़्यादा चुभा। मैंने पलटकर कहा,”मैं घटिया क्यों? किसी और को चाहती हो ना? उसके साथ क्यों नहीं हो?”
वह रोने लगी पर उसने जवाब दिया,”ज़िंदा होता तो उसी के साथ होती।“ मुझे गुस्से में कुछ नहीं सूझा तो उसका फ़ोन छीनकर अपने रूम पर आ गया।
क्रमश: …
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