ट्रॉलिंग के कुछ अध्याय

कुछ साल पहले फ़ेसबुक पर अचानक एक पोस्ट आँखों के सामने आया। कई बार पढ़ा, हर बार हँसी आयी। यह पोस्ट किसी के ट्वीट का स्क्रीनशॉट था। मन में विचार आया कि यह व्यक्ति तो हमेशा इतनी ही चुटीली बातें लिखता होगा, इसलिए क्यों ना ट्विटर हत्था बनाया जाए। एक मिनट की बात थी। लो हो गया ट्विटर इंस्टॉल। फिर क्या था, प्रोफाइल बनाकर सबसे पहले अमिताभ बच्चन और फिर उस व्यक्ति को फॉलो किया। एक दो दिन तक अमिताभ बच्चन और अन्य प्रसिद्ध लोगों के ट्वीट के नीचे दिल इमोजी और अच्छी अच्छी बातें लिखीं। फिर 2 साल तक हत्था याद नहीं रहा। 2 साल बाद ऐसे ही प्रोफाइल देखने का मन हुआ तो इस बार नयी बातें ध्यान में आयी। जैसे प्रिय व्यक्ति की अपेक्षा अप्रिय व्यक्ति के ट्वीट के नीचे कॉमेंट्स अधिक थे। गाली-गलौज, ‘विचित्र चित्र’ तथा उस पर लिखे मनचाहे शब्द और कुछ जज्बाती लोगों के कटाक्ष। उसी में किसी ने लिखा था, “वाह भाई! क्या ग़ज़ब ट्रॉल किया।“ मुझे समझ आ गया कि ट्रॉलिंग से सब हँसते हैं।
राजनीति में रुचि होने की वजह से टॉल और ट्रॉलिंग की परिभाषा मुझे देशप्रेमी ट्रॉल्स ने सिखायी। मेरे निजी मत के अनुसार देशप्रेमी ट्रॉल्स महारथी हैं, क्योंकि इन्हें सब कुछ आता है। इन्होंने स्वयं को मुख्यतः दो भागों में बाँट रखा है। समय-समय पर ये एक दूसरे को ‘गद्दार’, ‘नीच’, ‘गुलाम’ और ‘बिका हुआ’ कह कर विचारधारा का विरोध जताया करते हैं। हालांकि पड़ोसी देश के लाल-लाल मुलायम गालों पर चपोटा चिपकाने के लिए कभी कभी दोनो भाग एक दिशा में भी दिखायी देते हैं। ये दोनों भाग बहुत ही धार्मिक हैं। सबके अपने-अपने धर्म हैं, कोई तिलक लगाता है, तो किसी का धर्म सिर्फ तिलक का विरोध करना है। कोई शांति का संदेश देता है तो कोई लाल कपड़ा सर पर बांध कर क्रांति की मशाल जलाता है। सबसे रोचक वे कटाक्ष होते हैं जिनमें एक ट्रॉल दूसरे से प्रश्न करता है कि जब जेसीबी की खुदाई चल थी, तब तुम कहाँ थे। दूसरे भाग का ट्रॉल उत्तर देता है कि तुम्हें क्या लगता है 2014 से पहले कभी जेसीबी की खुदाई नहीं हुई। यहाँ मैंने ट्रॉलिंग का दूसरा पक्ष समझा।
मेरे मन पर संस्कारी ट्रॉल्स का प्रभाव भी पड़ा। इन्हे मैंने संस्कारों का अनुसरण करते व ट्विटर की मर्यादा भंग होने से बचाते देखा। काव्य, कथा, गद्य, संगीत, खेल तथा अन्य कलाओ में लोगों की रुचि जागृत करना इनका कर्तव्य होता है। ये ट्वीट के नाम पर उर्दू शेर, फिल्मी गीत, पुरानी यादें, चाय-कॉफी, कौनसा भोज्य कहाँ से तथा खेल से जुड़ी बातें ट्वीट करते हैं। ऐसे संस्कारी ट्रॉल्स का ट्विटर पर लगी किसी आग से मतलब नहीं होता है। महिलाएं और ज़मीन से जुड़े लोग इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इनसे मैंने ट्रॉलिंग पर नियंत्रण समझा।
इनके बीच दबे कूचे जज्बाती ट्रॉल्स भी हैं जो किसी सुंदर कन्या के ट्वीट आरटी करते पाए जाते हैं। ये महिला मित्र को समय-समय पर प्रोफाइल पिक चेंज करने तथा नए नए ट्रेंड्स के जरिये चित्र ट्वीट करने को प्रोत्साहित करते हैं। जज्बाती ट्रॉल्स दूध के जले होते हैं। छांछ फूंक-फूंक कर पीने के लहजे में ये प्रायः कम फ़ॉलोवर्स वाली नाइस डीपी को ढूंढकर उसका ट्वीट आरटी करते हैं। सोच यह रहती है कि जिस दर से नाइस डीपी सेलेब बनेगी, उसी दर से भाव बढ़ेंगे और उत्तर कम होते जाएंगे। ब्लॉक होने पर इनमे से कुछ जज्बाती ट्रॉल्स तेजप्रताप जी की राह पर बढ़कर ‘ठुकरा कर मेरा प्यार मेरा इंतक़ाम देखेगी’ भाव मन में प्रज्ज्वलित करते हैं। सुबह-शाम महिलाओं पर कटाक्ष करते हैं तथा नवयुवकों को न पिघलने की सलाह देते है किन्तु भूले भटके यदि कोई महिला इन्हें मेंशन कर दे तो मन ही मन ‘दोनों किसी को नज़र नहीं आएं, चल डी एम में छुप जाएं’ गीत गाते हैं। इस सबसे मुझे समझ आया कि ज़रूरी नहीं है कि ट्रॉलिंग की गोली सीने पर खाना, नज़रअंदाज़ करने के नियम भी याद रखने चाहिए।
एक बार एक महिला को समस्त परुष समाज को कान झन्ना देने वाले अपशब्द लिखते पाया। मित्रों ने समझाया कि यह मानसिक रोगी हैं और स्वयं को नारीवादी कहती हैं। मैंने उनकी ट्विटर डीपी पर क्लिक किया कि उसे देखते ही मुझे मानो एक ज़ोर का धक्का लगा। इतना प्रभावशाली ब्वॉय कट बालों वाला चेहरा जैसे एक सांस में मुझे सौ अपशब्द कह रही हो और ‘जीसस डाइड फ़ॉर योर सिन्स’ की तर्ज़ पर कह रहा हो, “यह मैं तुम सब के लिए कर रही हूँ।“ इन सबमे हकीम ट्रॉल्स भी हैं। ट्विटर पर उपलब्धता और नए नए पैतरों से ट्रॉलिंग को नए मुकाम पर पहुचाने में इनका योगदान सराहनीय है। हकीम ट्रॉल्स हैं तो ज़ाहिर है कि मरीज़ ट्रॉल्स भी होंगे। मरीज़ ट्रॉल्स प्रायः हकीम ट्रॉल्स से दिल का रोग दूर करने की दरख्वास्त करते रहते हैं। यहाँ कुछ प्रोफेसर ट्रॉल्स भी हैं जो अपने परम ज्ञान से ट्विटर की जिज्ञासु जनता पर ज्ञानवर्षा करते रहते हैं। मेरे लिए यह ट्रॉलिंग के अध्याय में ‘सब माया है’ जैसा भाग है।
क्या यह विचित्र बात है कि अपनी ट्रॉलिंग अच्छी और दूसरे की बुरी लगती है? अधिक फॉलोवर्स वाले ट्रॉल्स अक्सर स्वयं को ट्रॉल मानने से कतराते हैं। कई लोगों का मानना है कि ट्रॉलिंग को व्यवसाय बनाने वाले लोग बेहतर हैं, उन लोगों से जो कार्यालय में उत्पादकता कम करके ट्विटर पर ज्ञानी बनने में समय खर्च करते हैं। लेकिन क्या वो बेहतर हैं? निजी विचारधारा को नकार कर एक पक्ष की बात रखना और धीरे-धीरे उसी में स्वयं को घोल देना। अन्य पक्ष पर हमला करना तथा अपने को बचाते फिरना, भले कितना ही गलत हो। दूसरे पक्ष के हास्य पर स्वयं को हँसने से रोकना। इन सभी बातों से उनके मन मे हो रही कांव कांव क्या उन्हें अन्य लोगों की तरह सहज महसूस होने देती होगी?