कौन कहता है कि जीवन सुन्दर नहीं!
हर दूसरा व्यक्ति यह कहते हुए मिल जाएगा कि आजकल लोग पहले की अपेक्षा प्रसन्न नहीं रहते। कुछ लोगों ने जीवन के कई दायरे दरी की तरह लपेटकर समेट लिए हैं। क्षण में भावनाएँ आहत होती है। भावों का अभाव प्रत्यक्ष दिखता है। भागते दौड़ते जीवन को हम सरलता से क्यों नहीं देख पाते हैं? मेरे विचार से प्रसन्न रहने के लिए जीवन में नए-नए दृष्टिकोण खोजते रहना आवश्यक है, नये परिप्रेक्ष्य ढ़ूँढ़ना भी।
बचपन से आज तक कई बार पिताजी ने अपने मौसा जी के बारे में बहुत सी अच्छी-बुरी, खट्टी-मीठी घटनाएँ सुनायी पर मुझे सिर्फ़ मज़ेदार बातें याद रहती हैं। जैसे वह हर रात को तैयार होते थे। आजकल जिसे आज फॉउंडेशन कहते हैं, उसे मुर्दाशंख कहकर मुँह पर पोतकर और धोती कुर्ते के ज़माने में सफारी सूट पहन कर सोते थे। कारण था कि उस समय चोर-डकैत कभी भी आ जाते थे। ऐसे में कभी मौसा जी को रात में उठकर दूसरे गाँव भागना पड़े तो कम से कम उस गाँव की औरतें उन्हें टिप-टॉप रूप में देखकर अधिक सांत्वना व्यक्त करेंगी। उनके बारे में एक और बात प्रसिद्ध थी कि वह गाँव में हर दूसरे माह मेला लगवाते थे और सबसे बड़ा शीशा लेकर मेले में औरतों की ओर पीठकर बैठ जाते थे। एक बार मेले में एक नाचने वाली उन्हें इतनी पसंद आ गयी कि उसके जाने पर मौसा जी ने तीन दिन खाना नहीं खाया।
55 वर्ष की अल्पायु में मौसा जी चल बसे थे। कहते हैं कि उनका मोह ही उनके परम दुख का कारण बना। बारह गाँव का जमींदार होने के कारण सभी प्रजा महिलाओं की सहूलियत के लिए उन्होंने सूती धोती की दुकान खोली थी। वैसे तो दुकान नौकर संभालते थे पर दूर से मौसा जी की निगाह भी बनी रहती थी। एक दिन नौकर किसी कारणवश दुकान से कहीं और चला गया। मौसा जी ने ग्राहक महिला के कंधे पर धोती रख कर कह दिया कि यह रंग आप पर जँचेगा। औरत इतना प्रेम नहीं संभाल पायी और बेवफ़ाई में उसने मौसा जी के नर्म गालों पर थप्पड़ जड़ दिया। यह कुकृत्य मौसा जी को प्रेम का सत्य बतला गया। प्रेम का यह रूप मौसा जी सह नहीं सके और उन्होंने एक माह बिस्तर पर बिता कर प्राण त्याग दिए। कम ही लोग इस दुख में भी प्रेमसुख की अनुभूति कर पाएंगे।
अपने जीवन में होने वाली अजीबोगरीब घटनाओं को देखती हूँ तो लगता है कि मुझे प्रेम पर से अधिक विश्वास पर सुंदर चेहरों पर है। मेरे कुछ मित्र और संबंधी कहते हैं कि अच्छा व्यवहार देखो, चेहरा नहीं। मेरा उत्तर यही होता था कि आप कैसे कह सकते हैं कि जो अच्छा दिखता है, वह अच्छा इंसान नहीं होता। क्रश की उपस्थिति में इतनी ताकत है कि वह आपके उदासी भरे चेहरे को भी खिला सकती है और इतनी सी ख़ुशी पाने के लिए हमें किसी के नाम अपनी ज़मीन का बैनामा भी नहीं करना पड़ता।
क्रश बनने में क्षण भर का समय लगता है। एक उदाहरण देकर बताना चाहूँगी कि लगभग सत्रह की उम्र में एक बार मैं झकरकटी से टेम्पो से गुरदेव चौराहा जा रही थी। टेम्पो में चार-चार लोग बैठाने का चलन था। मैं पिछली सीट पर बैठी थी। सामने मेरे एक लड़का बैठा था और उसकी बगल में एक महिला। कानपुर की सड़कों पर गड्ढे जगजाहिर हैं। टेम्पोचालक कट मार-मार कर चला रहा था। मैंने दाएं हाथ से टेम्पो खिड़की के एक रॉड पकड़ा हुआ था कि अचानक एक बड़ा गड्ढा आया और टेम्पो वाले ने इतनी जोर से उस गड्ढे में टेम्पो कुदाया कि मेरे दोनों हाथ सामने बैठे लड़के की दोनों घुटनों पर पड़े और मेरा सर उसके कंधों के बीच मे स्थापित हो गया। पुनः झटका लगने पर मैं अपने स्थान पर वापस तो आ गयी पर अत्यधिक लज्जित हुई। गुरदेव आने की जल्दबाजी मेरे चेहरे पर उस लड़के ने पढ़ ली और वह हँस दिया। बताना आवश्यक नहीं है कि उसी क्षण लज्जा से उपजे क्रश ने क्षणिक प्रेम का रूप धारण कर लिया।
ऐसे एक दो और अध्याय जीवन में जुड़कर जीवन को एक सुगम दृष्टिकोण देने लगे। मेरी एक दोस्त के अनुसार जब भी वह किसी सुंदर लड़के को देखती है, उसके मन में स्वतः ‘मुझे तुमसे प्रेम है’ भाव आ जाता है। उसका कहना है कि प्रेम एक बार नहीं होता है। जितनी बार आपको अच्छे लोग मिल जाएं, उतनी बार होता है। उसका यह सच जानने के बाद हम स्वतः परम मित्र भी बन गए। सबसे अच्छी बात यह है कि इस विशेष आदत से आपकी आम दिनचर्या खराब नहीं होती। आप सही समय पर अपने घर-विद्यालय-कार्यालय का काम कर पाते हैं और स्वयं को स्व-प्रेरित भी पाते हैं।
मेरे विद्यालय की हिंदी अध्यापिका ने एक बार कक्षा में बताया कि वह लखनऊ से दिल्ली जनरथ बस से जा रही थीं। खिड़की की ओर वह स्वयं बैठीं और दूसरी सीट पर एक सुंदर युवक आकर बैठ गया। रात भर बस चली और मेरी शिक्षिका मन कठोर करके आंखों की नींद मारती हुई दिल्ली की ओर बढ़ती रहीं। उन्हें पता नहीं चला, साहिबाबाद पहुँचते ही कब उनकी आँख लग गयी और सर अपने आप उस युवक के कंधे पर पहुँच गया। यही नहीं उस युवक ने भी इनके सर पर अपना सर रख लिया। जब जागने पर उन्होंने यह देखा तो वह एकदम व्याकुल हो गयीं। हम सभी लड़कियों ने इस सब का कारण उनकी आठ घंटे की थकान भरी यात्रा को बताया पर उनका ऐसा मानना नहीं था। उनका एक मत था कि नींद में भी साधारण व्यक्तित्व वाले युवक के कंधे पर सर रखकर उनका यात्रा करना नामुमकिन था।
इस बात पर मेरा एक मत रखना चाहूँगी कि डर और थकान चेहरा देखकर सहायता नहीं लेते हैं। एक बार मैं अकेले भूतिया घर देखने गयी थी। मुख्य दरवाज़ा पार करने के बाद वापस आने की कोशिश की तो कर्मचारियों ने ज़ोर देकर कहा कि नहीं पूरा घूम कर ही दूसरी ओर निकल सकते हैं। मैं आगे बढ़ी तो मैंने जाना मेरे पीछे एक प्रेमी युगल है। पूरा रास्ता डर डराकर निकला और बाहर आने पर मैंने पाया कि प्रेमिका अकेले मेरे आगे-आगे चल रही है और मैंने डर के कारण अनजाने में उसके प्रेमी का हाथ पकड़ा हुआ था।
सहायता करने वाले व्यक्ति से भी आलौकिक प्रेम हो सकता है। कुछ साल पहले मैं एक सहकर्मी के साथ रामलीला मूवी देखने एमजीएफ मॉल गयी। सिनेमाघर के अंदर बैठे हुए मैं गौर से मूवी देख रही थी कि एक लड़का किनारे से दोनों हाथों से ट्रे पकड़े हुए अपनी महिला मित्र के लिए कुछ खाने-पीने का समान ला रहा था। मेरे साथ बैठे साधारण व्यक्तित्व वाले सहकर्मी ने सीट को पार करने वाले रास्ते में अपना बैग रखा हुआ था। ट्रे लेकर लड़का मेरे पास से जा रहा था और अंधेरे में उस बैग की वजह से वह लड़खड़ा गया। वह एकदम गिरने वाला ही था कि बैठे-बैठे मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे और ट्रे को गिरने से बचा लिया। वह जाकर अपनी सीट पर बैठ गया पर अब उसका मन उसकी महिला मित्र में ना लगा।
बाहर निकल कर मैं ऊपर वाले फ्लोर की रैलिंग के पास खड़ी हो गयी और वह व्याकुलता से मुझे इधर-उधर ढूंढ रहा था। मुझे समझ आ गया था कि क्षणिक प्रेम की ताकत जन्म जन्मान्तर साथ बिताए गए प्रेम से कम नहीं होती है। जीवन को रंगों भरा बनाये रखने के लिए एक कोमल व चंचल दृष्टिकोण होना भी आवश्यक है। ऐसे छोटे-छोटे सुखद भाव जीवन रूपी घर की चोट और विश्वासघातों से आयी हुई दरार की मरम्मत करते हैं और यह जीवन रूपी घर जीने व रहने योग्य है यह भी समझाते हैं। अग्नि सी सुंदर, जल सी जीवंत, वायु सी सघन और आकाश सी व्यापक लौ कम तेल से फड़फड़ाते हुए दिए को एक हाथ की ओट सा सहर देती है। कौन कहता है कि जीवन सुंदर नहीं बचा, इच्छशक्ति से इधर-उधर दृष्टि घुमाओ तो मित्रों।
ग़ज़ब
Very nice
Nice short stories stringed together.