जय शिव शंकर

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सनातन में त्रिदेव के अन्य देवों से देवों के देव महादेव को भिन्न माना गया है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है, लेकिन महादेव अपनी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, पशुपति, गंगाधार आदि कुछ भी कह लें पर ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’ ही शाश्वत सत्य है।

महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव तथा माँ पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है। अलग-अलग प्रदेशों में इसकी अलग मान्यताएं हैं। हमारे आसपास परिवेश में महाशिवरात्रि का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है। एक, जो पूरा दिन आराध्य ईश की पूजा व व्रत रख पूरा किया जाता है और दूसरा आधुनिकता से प्रेरित, जो सुबह ही पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण कर लिया जाता है। अधिकतर बच्चे दूसरा व्रत ही रखते हैं, जिसमें कुछ माताएँ बच्चों का मन रखते हुए यह कहती हुई पायी जाती हैं कि भगवान शंकर की ओर से बाराती लोग पहले भोजन कर सकते हैं। पार्वती माँ की ओर रहने वाले जानाति पूरा दिन व्रत रखेंगे। अदम्य श्रद्धा और उत्साह के बीच मनाए जाने वाले किसी भी पर्व में आजकल भौतिक दिखावे के भी तत्व होते हैं, महाशिवरात्रि भी अपवाद नहीं।

व्रत कई प्रकार के होते हैं। कुछ मन को बहलाने वाले, तो कुछ पेट को जलाने वाले होते हैं। पेट जलाने का उद्देश्य पावन होता है। प्रायः व्रत की कथाएं उसे रखने वाले को होने वाले लाभ के बारे में बताती हैं। लाभ भी कुछ देह को दुरुस्त करने के तो कुछ मन को मुग्ध करने के होते हैं। मनचाहा वरदान तो लगभग सभी व्रतों को रखने से मिलते हैं। तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो तो मनचाही वस्तु पाने के लिए व्रत मात्र ही नहीं रखना होता है बल्कि उसके अनुरूप कार्य भी सिद्ध करने होते हैं। कार्य सिद्ध करने की इच्छाशक्ति और सकारात्मक ऊर्जा मन में रहे तो आधा काम वहीं हो जाता है। इस प्रकार व्रत का प्रभाव आशावादी और कर्तव्यनिष्ठ मनुष्य पर अधिक होता है और कार्य भी सिद्ध होते हैं। दूसरी ओर यदि ईश्वर के आशीर्वाद से ही कार्य सिद्ध कराना हो तो ब्रह्माण्ड में भगवान शिव से भोला और मनचाहा वर देने वाला कोई और नहीं है। महादेव तो इतने भोले हैं कि रावण और कई अन्य राक्षस तक भी उनसे वर पाने में सफल रहे। यहाँ वर का अर्थ वरदान मात्र से है।

पारम्परिक रुप से कुवाँरी लड़कियों का वर उनके लिए विवाह योग्य लड़का ही माना जाता है। बताया जाता है कि शिव भक्ति करने से कन्याओं को सुंदर वर व सम्पन्न घर मिलता है। कन्याएँ आज बेर, गट्टा, धतूरे का फूल, बेलपत्र और भाँग थाली में सजाते हुए दिखती हैं। बेलपत्र कहीं से कटा-फटा हो तो अन्य सखियाँ यह मानती हैं कि ऐसा बेलपत्र चढ़ाने वाली का वर भी उसी अनुरूप होगा। अनेक लड़के/ पुरुष भांग का सेवन कर व्रत के दिन को सफल करने में प्रयासरत होते हैं। कुछ बड़े बुजुर्गों में भगवान शिव के लोकगीत गाने की प्रतिस्पर्धा रहती है। शिव विवाह के गीतों की परम्परा हमारी समृद्ध सामाजिक और सांस्कृतिक थाती है। भगवान शिव का दिन सोमवार माना जाता है। कुछ लोग मन्नत माँगकर सोलह या इक्कीस सोमवार का व्रत रखते हैं।

यह बात विचार करने के योग्य है कि जैसा भगवान शिव का भेष है, वैसा ही उनको अर्ध्य देने वाले फल-फूल भी हैं। व्रत या धर्म से जुड़ी बातों को तोड़-मोड़कर सुविधानुसार निभाने की आदत के बीच यह बताया जाता है कि भगवान पर बासी पुष्प ना अर्पित करें, थैली वाला दूध ना चढ़ाकर गाय का कच्चा दूध अर्पित करें। गाय का दूध ना मिले तो जल अर्पित कर भूल-चूक की क्षमा माँगे। अगले वर्ष यह क्षमा माँगना ना दोहराएं अपितु वर्ष दोहराने से पहले ही घर में एक गाय पाली जा सकती है। सुबह ही स्नान कर पूजा-पाठ करना उत्तम समझा जाता है। बिना नहाए पूरा दिन भूखे रहने से भगवान क्या, कोई नहीं मानेगा।

श्रद्धा मूक होती है जिसकी गूँज चहुँ ओर होती है। आइए, आस्था को वाचाल होने से बचाएं। भांग के नशे से नहीं बल्कि भगवान शिव की अराधना से उनका परम भक्त बनें एवं हर प्रकार की नकारात्मकता त्याग कर शिव की सृष्टि में विश्वास रखें और मनुष्य के रूप में अपना वांछित योगदान दें।

मंडली की ओर से आप सबको महाशिवरात्रि की मंगल कामनाएँ!

।।जय शिव शकंर।।

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