हैप्पी न्यू ईयर 2020
नयी चीज़ों में एक प्रभावी ऊर्जा होती है। नयापन अक्सर मन को ख़ुश करता है। प्रायः नयी वस्तुओं और लोगों के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल होता है। शायद इसलिए ही उनके बारे में सोचना मन को अधिक रोमांचित करता है। सामान्य दिनचर्या अक्सर एकरस प्रतीत होती है। लगता है कि जीवन मे कुछ अलग और कुछ नया होता रहना चाहिए। पत्नी के लिए नयी साड़ी हो, बच्चों के पाठ्यक्रम की नयी पुस्तकें, नए कपड़े, नयी गाड़ी, नए नवेले रिश्ते हो या नया जीवन, सब बहुत सुंदर लगता है। हमारे समाज में ‘नए-पुराने’ की अपनी अलग परिभाषाएँ हैं। नव दिवस, माह या वर्ष सबके अपने महत्व भी हैं। जीवन की नई बातों का शुभारम्भ हम प्रसन्नतापूर्वक करते हैं, हर्ष और उल्लास मनाते हैं। सभी यह चाहते हैं कि जीवन में नवीनता बरकरार रहे क्योंकि एक दिन नयी चीज़ें पुरानी और पुरानी चीज़ें बोझिल हो जाती हैं।
भारतीय संस्कृति और परंपराओं की बात की जाए तो हिंदू वर्ष के अनुसार नया वर्ष चैत्र माह (शुक्लपक्ष) से शुरू होता है और रीति-रिवाजों के साथ नव वर्ष की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। आराध्य प्रभु की पूजा होती है। गेहूँ की बनी गुड़धनिया, पंजीरी, पूड़ी-पुवा और सोंठ की गुझिया का प्रसाद बनाया जाता है। चैत्र के महीने में पतझड़ के बाद पेड़-पौधों में नयी कलियाँ फूटती हैं, नयी फसल कटती है। मौसम में ना सर्दी और ना अधिक गर्मी होती है। ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि का निर्माण चैत्र माह में हुआ, इस बात को यदि नकार भी दिया जाए तो इस माह की हरियाली, शीतलता व सुंदरता से यह प्रतीत होता है, जैसे सृष्टि भी इस माह को पुनः नव-आवरण दे रही हो।
कुछ लोगों को इस बात से संतुष्टि अवश्य मिलेगी कि आज भी बहुत से भारतीय नव वर्ष को चैत्र से मनाते हैं। आज भी पुरनिया लोग तिथियाँ और हिंदी माह ही जानते हैं। लेकिन संस्कृति में योगदान दिए बिना मात्र अंग्रेजी नव वर्ष को हीन भावना से देखना या उस पर फट पड़ना हास्यास्पद है। हमारा नव वर्ष ‘न्यू ईयर’ की तरह हो-हल्ले से नहीं मनाया जाता क्योंकि हमारे नव वर्ष की संकल्पना अलग है। जो भी हो पर यह सत्य है कि बहुसंख्य भारतीयों ने पश्चिमी लोगों के साथ उनके दिए ‘न्यू ईयर’ को पूरे हृदय से अपना लिया है।
अंग्रेजी नव वर्ष की बात पर अक्सर लोग बिताए गए साल की झलकियों को एक सार में देखते हैं। कुछ अच्छे-बुरे व खट्टे-मीठे पल याद कर अपनी आँखों को खुशी या उदासी से ज़रा देर नम करके एक नयी स्फूर्ति के साथ नव वर्ष के स्वागत में जुट जाते हैं। बचपन तक ही ग्रीटिंग कार्ड्स और छोटे-मोटे गिफ्ट्स देने की रीति निभती है। बड़े होने पर बचपन का उत्साह ज़रूर कम होता है पर कुछ अन्य चीजें उत्साह का कारण बन जाती हैं। कई जन तो दिसंबर माह लगते ही अपने दोस्तों-रिश्तेदारों को फ़ोन कर नव वर्ष संबंधित तैयारियों में जुट जाते हैं तो कुछ बस प्लान पूछते हैं और एककत्तीस दिसम्बर की रात हाथ में पॉपकॉर्न लेकर टीवी पर अवॉर्ड शो देखकर बिताते हैं।
नव वर्ष पर कुछ अति उत्साही लोग स्वंय का अवलोकन कर अपनी बुरी आदतों का त्याग करने की सोचते हैं और नव वर्ष पर कुछ अच्छी आदत डालने की बात करते हैं। दिलवालों की दिल्ली (एनसीआर) में अक्सर लोग जमा कर आखिरी शाम जाम लड़ाते हैं और नए साल के दिन पर जाम त्यागने के संकल्प की बात करते हैं। एक मित्र का मानना है कि उप्र में दरुहे लोग अपेक्षाकृत कम होने के कारण प्रायः लोग ‘मसाला छोड़ देंगे’ से काम चला लेते हैं।
इस साल मौसम और माहौल देख कर लगता है जैसे विकराल ठंड और न्यू ईयर की मस्ती एक दूसरे से ‘किसमें कितना है दम’ पूछ रहे हैं। आसपास सभी नव वर्ष की शुरुआत अच्छी करने के तैयारियाँ कर रहे हैं। यह तैयारी नयी बात नहीं है पर परिणाम निश्चित नहीं रहते। इसलिए व्याकुलता सदैव बनी रहेगी। यह व्याकुलता अच्छी है। पिछला साल कम अच्छा रहा तो शायद यह अधिक अच्छा रहे। यह उम्मीद भी अच्छी है। बरसों से बुने गए कुछ सपने शायद इस वर्ष पूरे हों। ज़रूरी नहीं जिनका पिछला वर्ष अच्छा रहा, उनका यह वर्ष कम अच्छा जाए क्योंकि यह सब मस्तिष्क की उपज है। प्रायः कर्म ही भाग्य का निर्माण करते हैं, इसलिए कर्मठता के बीच प्रसन्न रहना और रखना अधिक आवश्यक है। ख़ैर, रंग में भंग ना पड़े इसलिए जोश में होश भी रखा जाए। याद रहे ‘चालान’ की दर दो से दस गुनी बढ़ चुकी है। इसी के साथ नव वर्ष की शुभकामनाएँ।। हैप्पी न्यू ईयर!