एक अनोखा संवाद

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रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। शहर के दक्षिणी हिस्से में लोगों की आवाजाही कम थी। तीन सौ वर्ष पूर्व दक्षिण से आने वाले आक्रमणों को रोकने के लिए इस इलाके में हाथी, अश्व और गेंडे बांध कर रखे जाते थे। इसलिए शहर के इस इलाके को हाथी-गेट कहा जाता है। यहीं पर एक अँधेरे से कोने में चाय की टपरी है, जिससे आने वाली खुशबू हर राहगीर को रुकने पर मजबूर कर देती है।

वहाँ बैठा हुआ प्रणव पिछले एक घंटे में तीन कप चाय पी चुका था। टपरी से थोड़ी दूरी पर बैठे कॉलेज के कुछ युवा अपनी गप्पबाजी में मस्त थे। सामने खड़ा वॉचमैन शून्य भाव से राहगीरों की गतिविधियों को देख रहा था। प्रणव के पास में बंद दुकानों के आँगन में लगभग चालीस साल का निर्धन अपाहिज आदमी तीन साल की बच्ची को लेकर बैठा था। प्रणव का मन उद्विग्न था। उसके चेहरे पर चिंता के भाव स्पष्ट दिख रहे थे। उसके मानस-पटल पर पिछले वर्षों का गृहक्लेश किसी फ़िल्मी कहानी की तरह गुजर  रहा था।

इस नीरव माहौल को अशांत करते हुए प्रणव के मोबाइल की घण्टी बजने लगी। स्क्रीन पर प्रतीक्षा का नाम उभरा। प्रणव ने बेमन से फोन उठाया:

हेल्लो! — हाँ, ठीक हूँ! — नहीं आज मैं घर नहीं आऊँगा। — देखो प्रतीक्षा, ज़िदद् मत करो। मैं बहस नहीं करना चाहता। — मुझे भूख ही नहीं है, तुम खाना खा लेना! — सुनो… …….— (लंबा अंतराल… प्रणव के चेहरे के भावों में गुस्सा) हाँ, इसीलिए मैं घर नहीं आना चाहता। इस रोज-रोज की किचकिच से अब मैं तंग आ चुका हूँ!

फ़ोन बंद करते ही प्रणव के चेहरे पर परेशानी और निराशा के मिश्रित भाव उभरे और उसके मुँह से ‘हे राम!’ का उद्गार निकल गया। पास में ही बैठा अपाहिज आदमी कटाक्ष भाव से मुस्कुराया। प्रणव ने थोड़ी चिढ़ और थोड़े गुस्से से उसकी ओर देखा और पूछा, “इसमें हँसने वाली क्या बात है?” अपाहिज आदमी वही कटाक्षमय मुस्कान चेहरे पर बरकरार रखते हुए बोला, “राम का नाम लेते हो और छोटी-छोटी सांसारिक मुसीबतों से डरते हो?”

प्रणव ने अनमने भाव से कहा, “सभी मुश्किल समय में राम का नाम ही लेते हैं, राम नाम से मुसीबतों का हल मिलता है। इसमें हँसने वाली क्या बात है?”

अपाहिज आदमी ने फिर प्रश्न पूछा “जो स्वयं जीवन भर मुश्किलों से उबर नहीं पाए, चौदह वर्षों का वनवास और वापसी के बाद पत्नी और संतानों से वियोग। वही राम?”

“तुम कहना क्या चाहते हो?”

“बस इतना ही कहना चाहता हूं कि राम का नाम ले कर आहें भरने से क्या होगा?”

प्रणव चिढ़ गया। थोड़ी निराशा और थोड़े गुस्से से उसने अपाहिज आदमी की ओर देखा और बोला, “तुम जानते हो मैं किन परिस्थितियों से गुजर रहा हूँ?

“नहीं जानता, लेकिन अंदाजा लगा सकता हूँ। पत्नी और माता में अनबन रहती है, वृद्ध पिता और छोटे बच्चे परेशान रहते है। यही बात है ना? लेकिन राम भी तभी रास्ता दिखाएंगे जब तुम राम का चरित्र समझोगे क्योंकि रामजी का जीवन ही उपदेश है!”

यह सुनकर प्रणव का लहज़ा थोड़ा हल्का हुआ लेकिन फिर भी आवाज में उसी कड़वाहट से वह बोला, “रोज़ शाम घर पहुंचते ही वही किचकिच शुरू हो जाती है। दिन भर पड़ोस वाली सुधा आँटी माँ के कान भरती है। शाम को मेरे और प्रतीक्षा के घर पहुँचते ही माँ और प्रतीक्षा का झगड़ा होता है। कभी कभी तो सोचता हूं सुधा आँटी को खरी-खोटी सुना दूँ।”

“क्या तुम्हें पता है वनवास पर जाने से पहले श्री राम ने कैकेई से क्या कहा था? माता यदि आप मुझे अपना पुत्र मानतीं तो यह कठोर निर्णय कटु वचन से पिताजी को नहीं मुझे बतातीं। आप भी अपनी माँ से संवाद बनाएँ।शायद इससे सीधा संघर्ष टाला जा सकता है।”

“और प्रतीक्षा? माँ के बारे में उसके मन में जो वैमनस्य बढ़ता जा रहा है। उसका क्या करूँ?”

“कैकेई के प्रति लक्ष्मण का क्रोध शांत करने के लिए श्री राम ने उनसे क्या कहा था? माता कैकेई का प्यार गंगा मैया के प्रवाह जैसा है और कभी कभी गंगा में बाढ़ भी आ जाती है। मनोभावों में उतार चढाव मनुष्य की प्रकृति है। शान्त चित्त से और धैर्य से समझाया जाए तो आप अपनी पत्नी के मन से दुर्भावना दूर कर सकते हैं!”

यह सब सुन कर प्रणव का मन आश्वस्त हुआ लेकिन सुधा आँटी के बारे में सोचते हुए फिर से विचलित होते हुए वह बड़बड़ाया, “मेरी गृहस्थी में आग लगाने वाली सुधा आँटी से कैसे निपटें? उन्होंने ही मेरी गृहस्थी में विष घोला है।”

“यह गलती मत करना, भगवान राम ने सभी परिवारजनों और दरबारियों से संवाद किया था लेकिन मंथरा से नहीं।”

अपाहिज आदमी की छोटी-सी बच्ची प्रणव की ओर एकटक देख रही थी। उसकी मासूम सी आँखों से भूख झलक रही थी। प्रणव ने टपरी से चाय और बिस्कुट ऑर्डर किए। अपाहिज आदमी प्यार से बच्ची को चाय बिस्कुट खिलाता रहा। यह दृश्य देखकर प्रणव के मानस पटल पर अपने बच्चों के चेहरे उभरे। उसे अपनी पत्नी का स्नेहिल चेहरा और माँ का वात्सल्य याद आया। उसने बच्ची के सर पर हाथ फेरते हुए उस आदमी से पूछा : “यह बच्ची तुम्हारी है?” प्रत्युत्तर में वो अपाहिज आदमी शून्यभाव से बोला “नहीं, मेरी बीवी की है।” प्रणव ने प्रश्नवाचक द्रष्टि से उसकी ओर देखा। अपाहिज आदमी ने मुस्कुराते हुए कहा “दो साल पहले मैं किसी दुर्घटना में अपाहिज हो गया। नौकरी भी छूट गई, बीवी का पहले से किसी के साथ प्रेम-संबंध था। उसे मेरे अपाहिज होने का बहाना भी मिल गया, सो वह अपने आशिक के साथ चली गई और बच्ची मेरे पास छोड़ गई।”

प्रणव ने पूछा “क्या पत्नी छोड़ गई तब तुम रोये थे?”

“हाँ साहब, एक हफ्ते तक बहुत रोया था क्योंकि मैं भी एक इन्सान हूँ, मैं श्रीराम नहीं हूँ।”

प्रणव नि:शब्द हो गया। उसने बच्ची के हाथ में कुछ पैसे थमाए, अपाहिज आदमी चुपचाप देखता रहा। प्रणव उठा, उसने अपनी जेब से मोटरसाइकिल की चाबी निकाली। अपाहिज आदमी ने अपनी अन्तिम बात रखते हुए कहा, “मुश्किलें आवर्धक शीशे जैसी होती हैं साहब, जो वास्तविकता से बड़े रुप में नजर आतीं हैं। यदि हम डर रूपी शीशा हटा दें तो मुश्किलें अपने वास्तविक छोटे स्वरूप में दिखेंगीं!”

प्रणव ने कार का इग्निशन लगाया और हाथी-गेट से होते हुए वह घर की ओर बढ़ा, घर पर प्रतीक्षा खाना लगाए उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।

लेखक – तृषार (@wh0mi_)

लेखक पौराणिक और ऐतिहासिक कथा संदर्भों के पार्श्व में सामयिक और दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढने की कोशिश करती कहानियाँ लिखते हैं। उनके कुछ वृत्तांत उनकी अनवरत चलने वाली यात्राओं के भाग हैं। इसके अलावा उनकी रुचि लघुकथा, भारतीय मंदिर स्थापत्य और ललित कला से संबद्ध लेखन में भी है। उनकी शब्दावली में तत्सम शब्दों के अतिरिक्त गुजराती और मराठी का पुट भी होता है। लेखक पेशे से एक फ्रीलांस आइटी कंसलटेंट और डेटाबेस आर्किटेक्ट हैं।

10 thoughts on “एक अनोखा संवाद

  1. “यह गलती मत करना, भगवान राम ने सभी परिवारजनों और दरबारियों से संवाद किया था लेकिन मंथरा से नहीं।”
    बहुत गहरी बात कह दी आपने इस पंक्ति में,संवाद उसी से करना चाहिए जो आपके लिए महत्व रखता हो|
    वर्तमान समय में पारिवारिक कलह से उबरने का मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी के जीवन के प्रसंगों के माध्यम अद्भुत उपाय सुझाया है आपने,सबसे अनोखी बात ये है कि यह व्यवहारिक भी है|

  2. Touched me deeply.
    Tushar ! How deep analysis about RAM you could do is really heartwarming…..
    We remember RAM yet fail to follow HIM.
    Never burn any bridge in life communication can erase many waves of bitterness.
    Manthara should be avoided because will not take you anywhere.
    Greetings to Mandali and young Tushar!
    Very nice to read and practice.

  3. माता कैकेई का प्यार गंगा मैया के प्रवाह जैसा है और कभी कभी गंगा में बाढ़ भी आ जाती है।
    अद्भुत वाक्य संयोजन।

  4. मुश्किलों की इस घड़ी में इतना अच्छा एक संदेश देने के लिए धन्यवाद तुषार भैया।

  5. कभी-कभी समस्याएं सिर्फ दिखती बड़ी है, होती नहीं है। समस्याओं पर बहस करने से अच्छा समाधान पर विचार किया जाए। बहुत ही मनभावन लेख।
    साधुवाद ❣️

  6. Waaaah ” kaikeyi ka pyar ganga k prawaah ki trh hai, kbhi kbhi usme bhi baadh aa jati h”…..Kitni gehri baatein kahi aapne 👌 lajwab🙏🙏

  7. अदभुत …… ये भी और युद्ध का अंतिम दिन भी। इन पात्रो को लेकर जो आप पिरो देते है। सब अदभुत है। 🙏🏻

  8. राम ने मंथरा से बात नहीं की थी…बहुत बड़ा ज्ञान दे दिया आपने!जो अपने हमारे जीवन में मायने रखते हैं उनसे संवाद बना रहे ये बहुत आवश्यक है! एकाकीपन संवादशून्यता अवसाद बढ़ाती है और इसकी परिणति विनाशकारी ही होती है।

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