डिवोर्स रेट डिबेट

हां, डॉक्टर! उस उत्तेजना में मैं यह भूल गयी कि वह एक नशे में धुत ट्रक ड्राइवर है। मुझे इस बात का बहुत दुख है और ऐसी स्थिति पुनः ना हो, इसलिए मैं आपके पास आयी हूँ। ऐसी घटनाएं मेरा मन झकझोर देती हैं। यह सब मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। क्या मैं जानवर बन गयी हूँ?डॉक्टर: ठीक है ऐलिस। अगली बार जब तुम्हे यह महसूस हो कि उत्तेजना बढ़ने के कारण इंद्रियां तुम्हारे वश से बाहर हो रही हैं, तब तुम 1 से 10 तक की उल्टी गिनती गिनोगी।
उपर लिखा गया भाग मैंने स्नातक में मनोविज्ञान की एक किताब में पढ़ा था। लेकिन यह सब मुझे अचानक कैसे याद आया?
एक महिला का ट्वीट मष्तिष्क पर इतना असर कर गया कि ऐसी कई घटनाएं सहसा आँखों के सामने छा गयीं। ट्वीट उसका निजी विचार था कि डिवोर्स रेट बढ़ने में उन्हे नारी उत्थान दिखायी देता है। इस विचार से प्रभावित मष्तिष्क क्यों नारीवादी संसार मे चला जाता है जहां झांकने पर आप एक अव्यवस्थित घर देखते हैं। टेबल पर अधखुली किताब, फर्श पर गिरा हुआ गिलास और कपड़े अस्त-व्यस्त। कुछ सुयोजित क्यों नहीं दिखता? इसका यह भी कारण हो सकता है कि हमारा दृष्टिकोण नारीवादियों के लिए यही है और यह भी कि नारीवादी अलगाव तो बताते हैं पर यह नहीं बताते कि अकेला जीवन कैसे जिया जायेगा और इस पथ पर अग्रसर महिलाओं के लिए क्या मातृत्व आवश्यक होगा? यदि होता है तो रहन-सहन और व्यवस्था कौन करेगा? क्या कुछ जानवरों की भांति मातृत्व मात्र हेतु नर सहयोग लिया जाएगा? मैं यहां महिला उत्थान के दृष्टिकोण से इसलिए बात नहीं कर रही क्योंकि देश मे लगभग 90 प्रतिशत महिलाएं अभी भी विवाह और गृहस्थ जीवन मे विश्वास रखती हैं।
इसके अलावा क्या याद आया? कुछ चोटिल चेहरे! आसपास की घटनाएं, जहां ‘सब्जी में नमक कम है’ के नाम पर थाली मुंह पर फेंक दी गयी। बात काट देने पर पत्नी को गाली दी गयी या किसी बात की जिरह करने पर धक्का दे दिया गया। ऐसा क्यों हुआ? पुरुष में बल अधिक होने के कारण? यह जीवन कैसा जीवन है जो किसी पर निर्भर होकर जिया जाए? क्या ऐसे लोगों का अलग होना सही नहीं है? समाज के बनाए गए नियम का क्या हाल हुआ है। यहां पत्नी को बातों-बातों या हंसी मज़ाक में गालियां दी जाती हैं और आशा की जाती है कि यह सहना उसका परम कर्तव्य है। कुछ लोगों के लिए सज़ा के तौर पर पत्नी को थप्पड़ मारना भी बड़ी बात नहीं, जब तक हाथ या पैर टूट ना जाएं या चेहरा मार से सूज ना जाए। इस प्रकार की हिंसा का भुक्तभोगी समाज को अलगाव के अलावा क्या राय देगा?
भावना, त्याग और बलिदान सिर्फ महिलाओं को समझना चाहिए? यह सार्थक प्रश्न है। समाज ने त्याग, बलिदान, प्रेम, धैर्य, आशा और स्वाभिमान पुरुषों को भी सिखाया गया है जिसमें अधिकतर इनका पालन करते हैं। एक मित्र ने बातों ही बातों में कहा कि ये भावनाएं मिथ्या हैं। पर पुरनियों को ज्ञानी मानकर मैंने यह समझने का प्रयास किया कि आखिर इन भावों को मष्तिस्क में सहेजने की आवश्यकता क्यों पड़ी होगी। उत्तर में मैंने बस यह अनुमान लगाया कि वे जानते होंगे कि इन भावों की कमी जीवन को कितना जटिल बना देती है।
इसी के साथ कक्षा 10 की अंग्रेजी की एक कहानी याद आती है जिसमें एक सेवक अपने अफसर की सुनहरी घड़ी चुरा लेता है। उस कहानी में स्पष्तः बताया गया है कि सेवक वह घड़ी उत्साहपूर्वक नहीं चुराता है बल्कि उन परिस्थितियों में घड़ी चुराना उसकी सभी परेशानियों का निवारण था। वह घड़ी चुराकर भी संतुष्ट नहीं होता है। उसे इस प्रकार की व्याकुलता होती है कि उसकी ओर बढ़ने वाला एक-एक कदम इस प्रकार हृदय की गति तीव्र करता है, जैसे धमनियां फटने वाली हों और आसपास सभी यह जानते हो कि उसने ही घड़ी चुरायी है। सेवक वह घड़ी वापस अफसर की डेस्क पर रख देता है। निश्चित ही ये भाव उसके मन मे डर के कारण आ रहे थे। उस समय सीसीटीवी ना होने पर भी मुझे पूरा यकीन है कि उसकी चोरी पकड़ी जाती जिससे उसे कई नुकसान होते। आप मे से कितने लोग यह मानेंगे कि एक आत्मसम्मानी पुरुष/ स्त्री एक रोटी कम खाकर गुजारा करेगा पर भावना के विपरीत नही जाएगा। ये सभी भाव हमें स्वंय को अनिश्चित खतरे से बचाने के लिए हैं और निराशा को दूर करने के लिए। हां और यह सबसे बेहतर गृहस्थ जीवन में सुनिश्चित होता है।
गृहस्थ जीवन मे किसी एक की भी वरीयता कम नहीं आंकी जा सकती है। प्रेम, समर्पण व गृहस्थ जीवन में विश्वास रखने वाले लोग अभी भारी संख्या में है और डिवोर्स भी इसलिए हो रहे हैं क्योंकि शादियां हर हफ्ते हो रहीं है। समाज आत्मनिर्भर महिलाओं से आशा रखता है कि वे अपने लिए उचित निर्णय लें। स्वयं का एहसास होना आवश्यक है और उससे समझौता कर के गलत व्यक्ति के साथ जीवन बिताना भी सही नहीं है पर विवाह या पुरुषों को बिना कारण दोष देना बिल्कुल गलत है।
एक दृष्टि में मुझे स्त्री हंसती-खिलखिलाती पति, बच्चों व परिवारजनों के साथ दिखती है, वहीं दूसरी दृष्टि में अन्य स्त्री अंधेरे कमरे में आधा चेहरा और उस पर चोट के निशान दिखाती हुई दिखती है। मस्तिष्क मन से ज़्यादा चंचल और प्रवाहमान होता है। इसके पास स्वयं को तंग करने की विशिष्ट कला होती है। यह कई बार तब तक उसी विषय का विश्लेषण करता है, जब तक विषय की कांव कांव उसे परास्त ना कर दे।