तबही ए बबुआ समाजवाद आई … पिछड़ा दिल्ली जाके करी ठकुराई अगड़ा लोगन के जब लस्सा कुटाई पिछड़ा अकलियत के शरबत घोराई तबही ए बबुआ समाजवाद… Continue reading “तबही ए बबुआ समाजवाद आई …”…
तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है खिड़की से छनती धूप अब बिस्तर तक आ रही है सिरहाने रखी चाय कब से धुआँ उठा रही… Continue reading “तेरी याद आ रही है, तू कब आ रही है”…
अनकही मैं कब डरी थी बारिश की उन बूँदों से, जो आकाश से मेरे घर के आंगन को भिगोने आती हैं।… Continue reading “अनकही”…
तो क्या मैं भी … ढ़ेले के मोल भी नहीं बिकती संवेदना तो क्या मैं भी चंट बनूँ बात बात में उठती निष्ठुर वेदना तो… Continue reading “तो क्या मैं भी …”…