विपक्ष में भिया का कोई तोड़ नहीं
राजनीति में हमारे भिया का पक्ष-विपक्ष में कोई तोड़ नहीं है। उनके हर बयान में कूटनीति कूट-कूट कर भरी रहती है। यदाकदा जब भी वे क्षेत्र का दौरा करते हैं, क्षेत्र की जनता में उनकी लहर चरम पर रहती है। भिया एक जमाने में कबड्डी के राष्ट्रीय खिलाड़ी थे। आज राजनीति में भिया अपनी उसी प्रतिभा के दम पर राजनीति में गूँगी कबड्डी खेल रहे हैं। हर बार क्षेत्र में आते हैं और जनता की समस्याओं की लंबी रेखा को छूकर चले जाते है। रेखा को छूने पर मिले अंकों को वे मतों में परिवर्तित कर लोकतंत्र में अपनी सीट पक्की करते रहे है।
जब-जब भिया चुनाव जीतते हैं उनका दल हार जाता है। इस कारण भिया को विपक्ष में बैठना पड़ता है। अब भिया करें तो क्या करें, सिवाय विरोध के। उनका तो बहुत मन होता है कि सब कुछ लोकतांत्रिक तरीके से निपट जाए लेकिन विपक्ष में होने के कारण उन्हें कभी-कभी राजनीति की गूँगी कबड्डी खेलनी पड़ती है। वे बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर संसद में हंगामा हो, लेकिन वे यदि संसद में हंगामा न करें तो उनका दल उनकी राजनीति को दलदल में पहुँचा सकता है। इसी डर के कारण भिया को राजनीतिक बवासीर हो गया लगता है। इसलिए वे सदन में ज्यादा ऊँची आवाज़ में न बोलकर सिर्फ़ बिल फाड़कर ही जनता की आवाज़ उठाते रहते हैं।
संसद में जब अधिकांश बिल ध्वनिमत से पारित होते हैं तो इसका मतलब विपक्ष की आवाज़ में दम नहीं है। सिर्फ़ शोरगुल हो रहा है। जब भिया से ऐसा किसी ने कहाँ तो वे इसे लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा करार देते हैं। उनका मानना है कि सत्ता पक्ष बहुमत के बल पर राजनीतिक बाहुबल दिखाता रहता है। लेकिन भिया कभी स्वीकार नहीं करते हैं कि उनके दल ने कभी दलीय राजनीति से ऊपर उठकर भी राजनीति का कार्य किया हो। भिया जब राजनीतिक विरोध के चरम सीमा पर होते है तो अनशन पर बैठ जाते हैं। फिर इसी अनशन से थकने पर न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप बकते हुए या फिर अपनी पुरानी अनाम बीमारियों का हवाला देते हुए उठ जाते हैं।
भिया का राजनीतिक मत हमेशा भारी मतदान कराने तक ही सीमित रहा है। न जाने क्यों भिया आज तक अपने क्षेत्र में विकास पैदा ही नहीं कर पाए। विपक्ष में रहते हुए उनका हमेशा से एक ही जैसा वक्तव्य रहा है कि क्षेत्र के विकास के लिए उन्हें ऊपर से धन नहीं मिलता है। उपरी धन पर उनका हमेशा ध्यान रहता है। यदि उपरी धन की राशि जारी भी होती है तो नीचे आते-आते तक भ्रष्टाचार की खाई में खो जाती है। यह खाई खोदने में उनका योगदान पूछने पर भिया कन्नी काट लेते हैं।
इस कोराना काल में भिया की राजनीतिक गतिविधियों पर ‛मास्क’ लग गया है। फिर भी भिया ने हिम्मत करके एक-डेढ़ दर्जन वर्चुअल रैलियाँ कर ही दी हैं। उन्होंने मास्क और सेनेटाइजर भी अपने क्षेत्र की जनता को बाँटा लेकिन जनता से उनकी राजनीतिक रिपोर्ट में नैगेटिव अंक ही मिले। इस दौरान में भिया को संसद सत्र भी अटेंड करना पड़ा। भिया की विरोध करने की राजनीतिक शैली अलहदा रही है। अपनी अनूठी विरोध शैली से वे एक बार फिर संसदीय इतिहास में विपक्षी तेवरों के शिखर पर हैं। इस बार तो यूँ भी लाकडाउन में रेस्ट हाउस में पड़े-पड़े भिया राजनीतिक विरोध से लबरेज़ थे, तो सारा का सारा विरोध इस संसद सत्र में भिया ने एक बार में ही उड़ेल दिया। वे स्पीकर महोदय के गिरेबान तक पहुँचते पहुँचते बस थोड़ा सा रह गए। इसका उन्हें गर्व हुआ। इसके लिए उन्होंने पहले स्वयं अपनी पीठ थपथपाई और बाद में विरोध के लिए विरोध करते विरोध ने और सरकार का विरोध करने वाले विरोधियों ने।
स्वाभाविक है कि इसके बाद सत्ता पक्ष की ओर से भी भारी विरोध होना था। भिया पर कठोर कार्यवाही की माँग हुई। लेकिन इससे भिया को कोई फर्क नहीं पड़ा। उनका तो यह मानना है कि बदनाम होगें तो क्या नाम न होगा। आखिर में जब भिया के इस तथाकथित लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन के लिए उन्हें संसद की कार्यवाही से बाहर कर दिया गया।
भिया ने इतना सब होने के बाद भी अपना चिरपरिचित अंदाज़ में अनशन शुरू किया। अनशन पर कोई पूछने नहीं आया, भिया प्रतीक्षा करते रहे। अंत में भिया के स्वास्थ्य ने बिगड़ कर उनकी सुधि ली। ‘स्वास्थ्य ठीक नहीं है मेरा’ कहते हुए उन्होंने जाँच कराई। भिया कथित रुप से पॉजिटिव आए लेकिन अब भी भिया अपना राजनीतिक विरोध सोशल मीडिया के माध्यम से कोराना की तरह फैला रहे है। पॉजिटिविटी राजनीति पर दिखनी शेष है। हो सकता है कि थोड़ा समय लगे और भिया ही विपक्ष की राजनीति पॉजिटिविटी के वाहक बनें।
लेखक – भूपेन्द्र भारतीय (@AdvBhupendra88)
आवरण चित्र – अमर उजाला, सौजन्य – गूगल
बहुत बहुत धन्यवाद मंडली दल का मेरे लेख को मंडली पर प्रकाशित करने के लिए। 🌻🌻💐