Author: राकेश रंजन
लेखक गद्य विधा में हास्य-व्यंग्य, कथा साहित्य, संस्मरण और समीक्षा आदि लिखते हैं। वह यदा कदा राजनीतिक लेख भी लिखते हैं। अपनी कविताओं को वह स्वयं कविता बताने से परहेज करते हैं और उन्हे तुकबंदी कहते हैं। उनकी रचनाएं उनके अवलोकन और अनुभव पर आधारित होते हैं। उनकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है।
लेखक ‘लोपक.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी एक समीक्षा ‘स्वराज’ में प्रकाशित हुई थी। साथ ही वह दैनिक जागरण inext के स्तंभकार भी हैं। वह मंडली.इन के संपादक है। वह एक आइटी कंपनी में कार्यरत हैं।
कोहबर में क्वोरंटीन
घोड़वहिया
जय बंगला
बिहार चुनावों की पड़ताल-8-स्वर्णिम चुनाव परिणाम
बिहार चुनावों की पड़ताल-7-बिहार किधर
बिहार चुनावों की पड़ताल-6-जदयू
बिहार चुनावों की पड़ताल-5-भाजपा
बिहार चुनावों की पड़ताल-4-राजद
बिहार चुनावों की पड़ताल-3-छोटे दल
बाट जोहते अनगिनत ‘बाबा का ढाबा’
बिहार चुनावों की पड़ताल-2-लोजपा फैक्टर
बिहार चुनावों की पड़ताल-1-गठबंधन
अपनी जयन्ती पर गाँधी बाबा की भारत यात्रा
भाषा का भुरकुस
एक अनूठा कवि सम्मेलन
पंडित नरेन्द्र नाथ मिश्र – वर्तमान के साँचे में भविष्य को ढालते कर्मयोगी
स्मार्टफोन की शोक सभा
काँग्रेस कार्यसमिति बैठक – एक बार फिर टाँय टाँय फिस्स
स्वच्छता सर्वेक्षण में गया गुजरा बिहार
सनसनी समाज में है चैनल में नहीं
स्मृति शब्द-चित्र – स्व. नगनारायण दुबे
लोकतंत्र का हासिल सिर्फ लोकतंत्र
बाउंसर विपक्ष का
पॉलिटिक्स – पुल और पैनडेमिक की
भेटनर भईया
बकैती बंगले पर
आस के चार बूँद
मैं लेखक बनते बनते रह गया
ढकलेट
एक खुला पत्र ‘पत्रकारों’ के नाम
लॉकडाउन-4 जारी है …
भोजपुरी सिनेमा के तीन अध्याय
हेलो इंडिया! मैं एक डॉक्टर बोल रहा हूँ …
टिकटॉक: वाह वाह या छि छि
लॉकडाउन-3: पहला दिन धूमगज्जर का
फिर एक क्रांति
खुशामद की आमद
छटाक भर क्रिकेट
लॉकडाउन पर कुछ मीठा कुछ खट्टा
सीता राम चरित अति पावन
शोले को लाल सलाम
संपूर्ण लॉकडाउन – स्पष्ट संकल्प साफ संदेश
जनता कर्फ्यू – न भूतो न भविष्यति
भोजपुरी सिनेमा के तीन अध्याय – भाग: तीन
होली पर दो शब्द …
तबही ए बबुआ समाजवाद आई …
भोजपुरी सिनेमा के तीन अध्याय – भाग: दो
लिट्टी-चोखा के बहाने बिहार की राजनीतिक पड़ताल
भोजपुरी सिनेमा के तीन अध्याय – भाग: एक
कॉमरेड केसरिया
मैं सेफोलॉजिस्ट बनूँगा
चुनावनामा दिल्ली का
आम बजट पर आम आदमी की आम समझ
विकास को प्रतिबद्ध स्वत: स्फूर्त मानव श्रृंखला की आस
दिल्ली से आइजॉल: भाग-3
दिल्ली से आइजॉल: भाग-2
न्यू ईयर रिजॉल्यूशन
दिल्ली से आइजॉल: भाग-1
उफ्फ, एक और आन्दोलन!
नाम में क्या रखा है!
महाराष्ट्र का थ्रिलर: क्लाइमेक्स या एंटी-क्लाइमेक्स
जेएनयू: बौद्धिक विमर्श केन्द्र या स्वयं बहस का विषय
सौहार्दपूर्ण और समावेशी न्याय
महाराष्ट्र सरकार या वीरबल की खिंचड़ी
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का स्मॉग
जय छठी मईया!
तरुण भवतारिणी नाट्य कला परिषद
मुस्कुराइए, आप मंडली.इन पर हैं!
व्यंजनों पर घमासान का समाधान
मंदी है या नहीं?
150 वीं जयन्ती पर गाँधी की भारत यात्रा
पर्यावरण का डमरू
विश्व पटल पर भारत की गूँज: #HowdyModi
माइक महारथी बनने का संघर्ष
राष्ट्र भाल की बिन्दी: अपनी हिन्दी
चालान पर चर्चा
उजड़े दरबार के बेराग दरबारी
वैशाखनन्दन का भाषण
कांग्रेस कार्यसमिति बैठक – टाँय-टाँय फिस्स
फूड ऐप पर फुटेज
एक अधूरा प्रेम पत्र
बाढ़ राहत की महिमा
तो क्या मैं भी …
पुस्तक समीक्षा: गंजहों की गोष्ठी
राकेश रंजन

लेखक गद्य विधा में हास्य-व्यंग्य, कथा साहित्य, संस्मरण और समीक्षा आदि लिखते हैं। वह यदा कदा राजनीतिक लेख भी लिखते हैं। अपनी कविताओं को वह स्वयं कविता बताने से परहेज करते हैं और उन्हे तुकबंदी कहते हैं। उनकी रचनाएं उनके अवलोकन और अनुभव पर आधारित होते हैं। उनकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है।
लेखक ‘लोपक.इन’ के लिए नियमित रुप से लिखते रहे हैं। उनकी एक समीक्षा ‘स्वराज’ में प्रकाशित हुई थी। साथ ही वह दैनिक जागरण inext के स्तंभकार भी हैं। वह मंडली.इन के संपादक है। वह एक आइटी कम्पनी में कार्यरत हैं।
ट्विटर संपर्क सूत्र: @rranjan501