आहुति – भाग:2
लाठी का जोर
दिन का पहला पहर ही था। मँझिले के घर में किशोर दयाराम के द्वारा घसीटकर लाया गया, जहाँ मास्टर और पाहुन पहले से विद्यमान थे।
किशोर पर पड़ने वाली गालियों की बौछार और धीमे-धीमे छू रही बेंत की मार से मास्टर की लाचारी मसहरी पर पड़े मँझिले को साफ दिखायी दी। दयाराम का भुंइ मा बैठे हुक्का बनाते हुए मुस्की मारना साफ बता रहा था कि ऐसी मार और गारी से कोई असर नहीं होगा। पाहुन पलंग पर पड़े कभी अपना गुस्सा तो कभी मँझिले द्वारा दिया गया हुक्का पीते। किशोर के दिमाग में चलने वाली कहानियाँ मास्टर की बातें कानों तक कहाँ पहुँचने दे रही थीं। तिदुवारी में पड़े पलंग, मसहरी, मोढ़े और अंडुरि सब मँझिले के उठने की प्रतीक्षा में थे। खूंटी पर टँगे कपड़े मँझिले के क्रोध को मापते हुए जमीन पर गिरने को तैयार थे। छत की धन्नियों में बसे घोंसले चिड़ियों को कुछ देर के लिए उड़ने जाने का सुझाव दे रहे थे। फ़िर एक चीख ने मानो हवा में उड़ रहे धूल के सभी कण हिला दिए। यह चीख सिर्फ़ किशोर की नहीं थी। मास्टर भी साँस रोक कर रह गए थे। मँझिले की एक लाठी का वार इतना असर तो रखता ही था।
मँझिले ने अपने शब्द जाया करते हुए मास्टर से कहा, “गारी कम मार ज़्यादा, अबहीं बोलिहैँ।”
किशोर को साँस आ रही होती तो अब तक वह स्वयं ही बोल चुका होता। टूटे-फूटे शब्दों में उसने बताया, “मैं रज्जन दद्दा के घर पर था। यह याद नहीं, रात को चाचा के पास कब गया। सुबह जब मैं उठा था तब चाचा मारे जा चुके थे। उनको जगाने के चक्कर में मैं उन्ही के उपर लड़खड़ाकर गिर गया जिससे खून मेरे कपड़ों पर लगा और मुझे वहाँ से भागना पड़ा।”
तिद्वारी की तरफ़ पैरों की बढ़ती धमक से सब ठिठके। यह स्वरूप था। उसने मँझिले से कहा “किशोर दद्दा नामज़द धराए गए हैं।“ मंझिले ने मामला समझते हुए स्वरूप को कहा, “तुम्हारे मास्टर चाचा आशिक़ पैदा किये हैं। रज्जन जब यहाँ डकैती डाल रहे थे और उसकी दुलहिन किशोर को दारू पिला रही थी।” सब के चेहरे पर शून्य भाव थे।
मँझिले ने ठिठककर किशोर से एक आखिरी सवाल किया, “रज्जन की दुल्हिन रज्जन का ज़्यादा मानत है या तुमका? किशोर ने बिना झिझके उत्तर दिया, “हमका”। दयाराम, स्वरूप, पाहुन और मँझिले सब इस बात पर हँसे और मास्टर ने किशोर की खोपड़ी पर एक टीप लगायी।
स्वरूप ने आगे कहा, “ख़बर है कि गिरिजा सिंह रपट लिखने रज्जन दद्दा के साथ गए थे।” मँझिले मुस्काए और बोले, “जाओ गिरिजा की जीप ले आओ। बोल देना किशोर बुआ के घर जा रहा है।” साथ ही दयाराम के हाथों अहीर सरपंच और दलित चौधरी को घर बुलाया। पंचों के आने पर मँझिले ने अपनी पूरी बात रखी और किशोर को अपनी छोटी बहन के घर भेजने का निर्णय सुनाया। पंचों ने इस बात का समर्थन किया।
जीप देते वक्त गिरिजा सिंह ने स्वरूप से कहा, “मैंने पुलिस को दूसरे पहर आने को कहा था, किशोर को कम से कम आधा घंटा मिल जाएगा। कक्कू से कहना मेरी चिंता ना करें, मैं कुछ दिन ट्रैक्टर चला लूँगा।”
जीप में बैठा-बैठा किशोर रजनी के बारे में सोच रहा था। रजनी की आँखों में उसे अपने लिए ही प्रेम दिखता था। महसूस करने की कोशिश में था कि नर्म हाँथो की छुवन कितनी आरामदायक थी। “वह रज्जन दद्दा से नहीं मुझे प्रेम करती है। और करे भी क्यों? रज्जन दद्दा एक लालची और कमज़ोर इंसान हैं। प्रेम उनके बस का नहीं।“ किशोर अपनी बुआ के गाँव पहुँचने तक मन में रजनी को भगाने का निर्णय ले चुका था।
पूरा दिन गिरिजा सिंह के मुँह पर खिसियाहट रही। मुंधेर होते ही वह घर के पिछुवारे रज्जन से मिलने गए। रज्जन के आने पर गिरिजा ने अपनी लाचारी का कारण कहा, “मँझिले कक्कू को पंचों और चौधरी का समर्थन है। जब तक यह समर्थन नहीं टूटेगा वह कमज़ोर नहीं होंगे। पहले मुकदमा दायर कर दो। जब तक बात तुम पर आएगी तब तक किशोर को कातिल साबित कर देंगे।”
रज्जन ने कुछ देर यह सोचकर कहा, “तुमको मेरी मदद करनी होगी। आज किशोर को ढूँढते हुए पुलिस आयी और उसे मेरी छत पर पड़ी साड़ियों की गठरी मिल गयी है। गाँव और पंचायत मुझे कभी समर्थन नहीं देगी और गवाही उनकी तरफ़ से देगी। किसी भी तरह मँझिले कक्कू को समाज में गिराओ। पेशी मुकदमा मैं देख लूँगा।”
गिरिजा सिंह सोच में पड़ गए। रज्जन ने आगे सुझाया, “बाबू के घर पर मँझिले का हाथ है। तुम्हारा भाई गुनी और बाबू दोनों उस भगोड़ी काम वाली के चक्कर में हैं। कुछ भी करके बाबू का हुक्का बन्द करवा दो। मँझिले बाबू को समर्थन देंगे और इसी के साथ मँझिले का हुक्का भी बंद किया जाएगा। सामाजिक बहिष्कार होगा तो हमारी आधी जीत वहीं हो जाएगी।” गिरिजा सिंह इस बात पर अधूरी हुँकारी भरकर वहाँ से निकल गए।
गाँव में प्रेम की आँधी फ़िर कौंधी जब किशोर रजनी का डोला लेने गाँव वापस आ गया। रज्जन को इस बात की भनक लगते ही वह पुलिस बुलाने चला गया। वह रजनी को बोलकर गया था कि किशोर आए तो उसे जाने मत देना। रजनी बेबस तो नहीं थी पर आज लग रही थी। रजनी का रज्जन की किसी बात पर समर्थन ना देने पर रज्जन का उसके बाल पकड़कर खींचना सबसे अधिक चुभता था। वह किशोर के बारे में सोच रही थी कि घर के पीछे से सांकेतिक आवाज़ें आनी शुरू हो गयीं। हड़बड़ी में किशोर सीधा रजनी को लेने ही आ गया। रजनी बेचैन हुई। उसने निजी बक्से को खोलकर जेवर और कुछ कागज़ात छिपाने की कोशिश कर ही रही थी कि कुछ आदमियों के घर में कूदने की धमक हुई। वह झट से पीछे के जीने से होकर छत पर गयी और दूर से किशोर को देखते हुए बगल के घर में कूद गयी। मन औऱ शरीर दोनों चोटिल थे।
किशोर अपने गुर्गों के साथ घर में कूदते ही सब तरफ़ नज़र दौड़ाकर रजनी को ढूँढा और उसकी नाकाम नज़र सहमे बैठे हुए बूढ़ी माँ और बच्चों पर रुकी। वह उन सबसे नज़र मिलाते हुए रजनी के कमरे में घुस गया। उसे वहाँ ना पाकर वह बक्से का सामान उलटने-पलटने लगा। उसे चाचा के लाए हुए जेवर रजनी के बक्से में मिले। इसके साथ ही कुछ पत्र भी जो अंग्रेजी भाषा में लिखे हुए थे। एक पल उसने यह सोचने में खर्च किया कि यह पत्र उनसे नहीं लिखे थे और रज्जन ना तो प्रेमी है और ना अंग्रेजी पढ़ा हुआ। वह जेवर वहीं छोड़कर सारे पत्र जेब में रखकर वहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा था। तभी गाँव में मची गूँज को सुनकर उसे आभास हो गया है कि पुलिस आ चुकी है।
उसने झट से अपने घर भागकर अपनी पत्नी को वे पत्र थमा दिए और कहा कि पत्र मँझिले को ही दे। किशोर ढ़ीले हाँथ पैर लिए घर से बाहर निकला। उसकी साँसे उसे बहुत भारी लगीं। उसके सीने की धकधक से कान बहरे होते गए। बढ़ता हुआ रक्तचाप आँखे की रोशनी कम कर रहा था। ज़रा से होश में पुलिस का हाथ उसकी गर्दन पर महसूस हुआ। उसे कत्ल की रात कहे गए शब्द याद आये, “भैया कहाँ लिए जा रहे हो!” कनपटी पर पड़े झापड़ ने उसका कुछ होश वापस आया। रज्जन को वहीं खड़ा देखकर किशोर ने उसे घूरा। रज्जन ने भी उसे हूल दी और कहा, “साहेब पहिलेक क़ातिल रहे और अब डकैत बनिगें।”
अगली सुबह मँझिले को सुनने में आया कि रात भर पुलिस वाले किशोर से जुर्म कुबुलवाते रहे और किशोर रात भर मना करता रहा।
आहुति – भाग:1 का लिंक http://mandli.in/post/aahuti-2