आहुति – भाग: एक

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साठा की शादी

दशकों बाद गाँव की यह पहली कुबेरिया होगी जब नीम के पेड़ के नीचे चौपाल नहीं लगी थी। ना कोई हुक्का पी रहा था, ना ही अवधी गीत गाए जा रहे थे और ना ही बड़े-बूढ़े घर के बच्चों को किस्से-कहानियाँ सुना रहे थे। रात होते ही टिटहरी और घुघुओं की आवाजों ने यह सुनिश्चित कर दिया कि गाँव वालों के लिए आने वाली सुबह बहुत भारी होगी। माएँ बच्चों की पीठ थपथपाकर सुलाने की कोशिशें कर रही थी। घर के पुरूष ने दिए की लौ को देखते हुए बाती की तरह अपनी नींद जला रहे थे। परिवार की ताकत गट्टे की ताकत को बराबर चुनौती दे रही थी। कहीं पत्र लिखे जा रहे थे तो कहीं गवाही में क्या कहना है, यह बताया जा रहा था। कोई भी अपनी तैयारी में कसर रखने को राज़ी नहीं था। हद से आगे बढ़े कदम अंत विजय से कम भला क्या चाहें।

आधी रात को अपनी मुंडेर पर बैठा हुआ किशोर रह-रह कर बगल घर मे रहने वाली अपनी चचेरी भौजाई रजनी को देख रहा था। वह कभी रसोईया में जाती तो कभी एक्का-दुक्का समान लेकर अपने पति रज्जन के कमरे में जाती और आते-जाते नज़र बचाते हुए रजनी भी किशोर को देखकर आँखों से ही सांत्वना देती। जब तक किशोर को चैन से सोने का इशारा नहीं मिला, वह मुँह लटकाए वहीं मुंडेर पर बैठा रहा। आखिर रजनी को भी थोड़ी देर आराम करने का समय मिला। रज्जन जलते हुए दिए की रौशनी में एक पर्चे को टकटकी लगाकर देखे जा रहा था। रजनी ने किशोर की बेचैनी के बारे में रज्जन को बताया। रज्जन के दिमाग में समीकरण, चहरे पर पसीना और हाथ में रजनी का हाथ था।

इधर मँझिले अपने सोलह बरस के बड़े लड़के को कभी प्यार से तो कभी धमकाकर घटना के बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे। उसने मौत की रात किशोर को अपने खून से रंगे कपड़े पास की तलैय्या के किनारे गाड़ते देखा था। हर बार पूछने पर वह यही बात दोहरा रहा था। अम्मा अपने बड़े बेटे पर दया कर बार-बार उसको सोने देने की अर्ज़ी लगाने कोठरी के दरवाजे तक आती और बेबसी से वापस हो जाती। दस बरस का छोटा भाई कभी माँ की लाचारी, कभी पिता की चिंता तो कभी भाई की थकान देखता और फ़िर अपने खिलौने के साथ खिलवाड़ शुरू कर देता। भोर होने को है, जानकर मँझिले ने बड़के को जाने को कहा और खुद कुछ लिखा-पढ़ी में लग गए। बड़का अपनी पत्नी के पास जाकर सो गया। छुटके ने कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनी तो वह भी डर कर भाई के पास सोने चल दिया। भौजाई ने छोटे से देवर को देख अपना बिस्तर जमीन में बिछा लिया। घर के द्वारे दयाराम लाठी लिए पूरी रात रखवाली करता रहा।

किशोर अपने कमरे में करवटें बदल रहा था। बीच-बीच में उठकर घड़े से निकालकर पानी पीता रहा। कुछ क्षणों बाद वह बिस्तर से उठा और टीन के बक्शे को खोलकर चाचा के ब्याह में जाने वाली साड़ियों को देखता रहा। उसे लग रहा था कि किसी भी तरह रजनी भउजी उसे ज़रूर बचा लेगी। उसने सभी साड़ियाँ अखबार में लपेटकर दोनों तरफ़ लकड़ी की तख्तियाँ लगाकर बाँध दी। सुबह होने से कुछ क्षण पहले ही ये साड़ियाँ उसने रजनी की छत पर फेंक दी। वापस आकर वह कभी खुद को तो कभी औरों को कोसता था। बीच-बीच में चाचा के बारे में भी बुदबुदाता रहा, “साठ बरस में ब्याह करने चले थे बुढ़ऊ”।

इधर अधेड़ गिरिजा सिंह अपनी नई-नवेली पत्नी को चाचा की कहानी बता रहे थे, “लगभग तीस बरस पूर्व गाँव के सबसे सुंदर नवयुवकों में चाचा की गिनती होती थी। इस सुंदरता में चार चाँद उनका गाँव के गँवारों के बीच अंग्रेजी भाषा बोलने से लग जाते थे। एक सुंदर पत्नी और पुत्र के साथ उनका एक संपन्न परिवार था। चाचा ने हरिद्वार और अयोध्या में अपने नाम से कुटिया और धर्मशालाएँ बनायी थीं। गाँव से अधिक वे सपरिवार तीर्थ स्थलों पर रहते थे। चाचा लगभग तीस-एकत्तीस बरस के होंगे कि दुर्घटनावश चाची और पुत्र गंगा में नहाते वक्त बह गए। कुछ दिनों के लिए उन्होंने अपना मानसिक संतुलन खो दिया था। उसी पागलपन में उन्होंने पाँच-पाँच रुपये देकर अपनी दाढ़ें उखड़वा दीं। अभी एक बरस पहले ही रज्जन ने जाने क्या पढ़ा दिया कि उन्हें दुबारा शादी करने की इच्छा हुई। घर ठीक कराया, बुलेट लाये, जेवर और कपड़े भी लेकर आए। विवाह तो ना हुआ बुढ़ापे में पर गोली खाकर मौत हो गयी।” बतलाते-बतलाते जब गिरजा सिंह का थूक सूख गया तब उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखा तो वह सो चुकी थी। वह भी दिया बुझाकर सो गए।

सुबह होते ही मँझिले के छोटे भाई और किशोर के मास्टर पिता गोंडा से वापस आ गए। गरीब घर की रजनी का विवाह अपने सबसे बड़े भाई के एकलौते बेटे रज्जन से इन्होंने ही कराया था। घर पहुँचते ही मास्टर अपने मँझिले भाई से मिलने गए। इसके साथ ही इन्होंने घटनास्थल का भी मुआयना किया जहाँ इनके छोटे भाई की हत्या हुई। इधर रज्जन गिरिजा सिंह को लेकर बाजार गये। वहाँ अपने अन्य मित्रों को बुलाकर गुटबाजी की। मित्रों ने सुझाव दिया कि यदि कत्ल का कोई नामजद कातिल नहीं बना तो रज्जन भी लपेटे में लिए जा सकते हैं क्योंकि चाचा का रहन-सहन आखिरी समय में रज्जन के घर ही था। रज्जन के माथे पर चिंता की शिकन स्वाभाविक थी। गाँव वापस आते समय ही रज्जन ने गिरिजा सिंह के पाँव पकड़ लिए और उसे इस सब से बचाने को कहा। गिरिजा सिंह प्रधान थे। उनकी बातें नजदीकी थाने में बहुत मायने रखती थीं। गिरिजा के पूछने पर रज्जन ने बताया कि चाचा के ब्याह में ले जाने वाले जेवर और बुलेट उसी के पास हैं और डाल की साड़ियाँ किशोर ने रखी हैं।

थोड़ी देर सब सोचने-बूझने के बाद गिरजा और रज्जन थाने गए। वापस गाँव आकर दोनों अपने-अपने घर आ गए। रज्जन के घर पर किशोर घबराया हुआ रजनी के पास बैठा हुआ था और रजनी उसका सर दबा रही थी। माँ रसोई में रोटियाँ सेंक रही थी और बच्चे पीछे की कोठरी में खेल रहे थे। रज्जन को देखकर रजनी पानी लेने गयी। रज्जन ने किशोर को घर जाने को कहा। रजनी पानी लेकर आयी और रज्जन से सवाल करने लगी। रज्जन ने बताया कि किसी ना किसी को नामजद धराना ज़रूरी था वरना वह भी लपेटे में आ जाता। चोर-डकैत दोस्त बनाकर उसने ऐसी पहुँच बनायी है कि गाँव के लोग उससे डरते हैं पर इस घटना का दोषी भी मानते हैं। उसने आगे कहा कि कोई भी कसर छोड़ना मतलब खुद को फाँसी लटकाना।

रजनी का आखिरी सवाल था, “किसे धराया” और उत्तर मिला, “किशोर”।

क्रमश: …

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